पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४१७

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४१. अनलशिला-अनलेख इनका वजन पन्द्रह रत्तीसे साढ़े तीन सेर तक किसी कारणवशत: यह प्रज्वलित हो पृथिवीपर निकलता है। सन् १८३३ ई० में उत्तर-अमेरिकापर गिर पड़ते हैं। नौ घण्टे के बीचमें न्यूनाधिक दो लाख अस्सी हजार सन् १८८५ ई० को २७ वी० नवम्बरको कलकत्तेमें अग्निमय क्षुद्र पत्थर बरसे थे। नव हावेनके अध्यापक और शहरको चारो ओर असंख्य नक्षत्रपात पड़ा असतेद इस विषयका वर्णन कर गये हैं, था। तिथि कृष्णपक्षकी षष्ठी थी, चारो ओर कि इस प्रकार नक्षत्रपात अनेक स्थलमें सामयिक अन्धकार आच्छन्न हो गया था। वैसे ही समय घटना-जैसा देख पड़ता है। किसी किसी वत्सरके आकाशमैं तोप-जैसी गड़गड़ाहट घहराने लगी। एक-एक निर्दिष्ट दिनमें प्रायः यह उत्पात उठा करता उसके बाद झड़-झड़ उल्काका पड़ना आरम्भ हुआ। है। हम्बोल्टने स्थिर किया, कि ऐसा उपद्रव उठने हजारोंपर हजार, एक-एक बारमें ही लाखोंपर को सम्भावना निम्नलिखित समयमें हो सकती है, लाख,-किसको देखते, किसकी ओर ताकते ; अनन्त २२ वींसे २५ वीं अप्रेल, १७ वीं जुलाई ; १०वों आकाशमें असंख्य-असंख्य नक्षत्र निकल रहे थे। इस अगस्त ; १२ वींसे १४ वीं नवम्बर ; २७ वींसे २८ वों नक्षत्रपातको देख टिण्डल साहबने लिखा है, कि नवम्बर और ६ ठीसे १२ वी दिसम्बर । आकाशमें अनेक छोटे-छोटे ग्रह रहते हैं। वह इस विषयमें अब कोई सन्देह नहीं, कि आकाश पृथिवीकी तरह सूर्यको चारो ओर घूमते-फिरते हैं। से यथार्थ हो अग्निशिलाको वृष्टि होती है। किन्तु यही कारण है, कि सूर्यका आकर्षण भी उन्हें ज़ोरसे यह अग्निशिला क्या है? कोई-कोई अनुमान करते खींचता है। इसलिये घूमते-घूमते अन्तमें वह सूर्य- कि यहांके आग्नेयपर्वतसे प्रस्तरखण्ड ऊपरकी ओर मण्डलमें जा पहुंचते हैं। सूर्य आप ही तेजःपुञ्ज- उड़ जाते हैं; उड़-उड़ाकर कुछ काल पृथिवीके धूमराशि है। इस सकल ग्रहादिके संघर्षसे उसका साथ वह घूमते रहते हैं। उसके पीछे वह फिर प्रकाश और सन्ताप उत्तम तौरपर रक्षित रहता है। इसी पृथिवीपर आ गिरते हैं। अन्य पक्षका किन्तु वह पृथिवीके किनारे पहुंच बाष्पके संघर्षसे जल मत दूसरी तरह है। उसके अनुसार जिस सकल जाते हैं। इसोको हमलोग नक्षत्रपात कहते हैं। उपादानसे अग्निशिला उठती, वह सकल उपादान अनलस (सं० त्रि०) आलस्यरहित ; फुरतीला, जो आकाशमें बाष्यरूपसे अवस्थित रहता है। पौछे सुस्ती न करे। किसी कारणवशतः वह जमकर नीचे गिर पड़ता अनला (सं० स्त्री०) १ दक्षप्रजापतिको एक कन्या, आजकल इन दो मतोंमें एकका भी आदर नहीं जो कश्यप ऋषिको पत्नी रहीं। लोग इन्हें सकल अड़ता। फिर एक पक्षके लोग यह सिद्धान्त साधते, वृक्षोंकी माता बताते हैं। २ माल्यवान् राक्षसको कि चन्द्र के अाग्ने य-गिरिसे पत्थर उड़कर पृथिवीपर एक बेटी। आ पड़ते हैं। किन्तु अब उत्कृष्ट दूरवीक्षणको सृष्टि अनलायक, (हिं० वि०) अयोग्य ; बुरा, जो लिया- हो है। उसके द्वारा चन्द्रलोक खूब स्पष्ट दिखाई कत न रखे। देता है। चन्द्रमें जो आग्नयगिरि हैं, आजकल उन अनलि (सं० पु.) अनिति-अन्-अच् ; अनः अलिः सबका निर्वाण हो गया है, किसीसे भी कोई अग्न्युत् भ्रमरो यत्र, शाक• बहुव्री । वकपुष्प-वृक्ष ; अगस्त, पात नहीं उठता। आजकल अनेकोंने यह सिद्धान्त (Sesbana grandiflora)। इस फलमें मधु अधिक किया है, कि ग्रह-नक्षत्रके मध्य असंख्य पदार्थ पृथक् होता है। भ्रमरोंके उसे पीकर प्राण पालनेसे इसका पृथक् पड़े हैं। उनके मध्य निरेट और बाष्यवत् नाम अनलि पड़ा पदार्थ भी पाये जा सकते हैं। यह सकल द्रव्य अनलेख (हिं० वि०) १ जो देख न पड़े। २.जिसका क्रमागत घूम-फिरकर चक्कर लगाया करते हैं। पीछे वर्णन लिखा न जा सके।