पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४१९

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४१२ अनवद्यरूप -अनवराय

अनवद्यरूप (सं० वि०) अनिन्दनरूप-सम्पब, बेऐबको पाश५७। १ प्रभावशून्य वाद न बढ़ाता हुआ, जो सूरत-शल्लका। बेअसर बात न बनाता हो। २ प्रमाणसे बोलता अनवद्या (सं० स्त्री) किसी अप्सराका नाम । हुआ, जो सुबूतके साथ कुछ कह रहा हो। अनवद्याङ्ग (सं० त्रि.) अनिन्दा-अङ्गवाला, जिसके अनवभ्र (वै० त्रि.) न अवशते । १ जिसे कोई अजामें कोई ऐब न हो। ले न गया हो, रखा हुआ। २ अवधशशून्य ; कम अनवद्राण (वै० त्रि.) शयन संभालने न जाता न पड़ा, जैसेका तैसा रहा। ३ सहता हुआ, जो हुआ, जो सोने न जा रहा हो; निद्रारहित, बेनींद। बरदाश्त कर रहा हो। अनवधर्थ (स.नि.) धमकानेक अयोग्य, जिसे अनवधराधस् (वै• त्रि०) १ अक्षय धन रखता हुआ, धमकी न दी जा सके। जिसके पास लाज़वाल दौलत भरी हो। २ स्थायी अनवधान (स. ली.) न अवधीयते मनः संयुज्यते पुरष्कार पहुंचाने योग्य, जो टिकाऊ इनाम दे सके। कर्तव्यकर्मणि अनेन ; अव-धा-करणे ल्युट, अभा अनवम (सं० त्रि.) न अवमः । न्यूनताहीन, जो बार्थे नत्र तत्। १ अवधान या मनः संयोगविशेषका कम न हो ; श्रेष्ठ, बड़ा ; अनन्तिक, आला। अवमका अभाव, खयाल या गौरको नामौजूदगी ; वह हालत अन्तिक और अनवम शब्दका अर्थ अनन्तिक है। जिसमें किसीका ध्यान न बंधे,-प्रमाद पागलपन ; यास्कने अनवम शव्दके ग्यारह पर्याय लिखे हैं,-- असावधानी, गफलत ; अमनोयोग, दिलका उखाड़ ; १ तड़ित्, २ आसात्, ३ अण्वरम्, ४ तुवंश, ५ अस्त- चित्तविक्षेप, बावलापन। (त्रि.) नञ् -बहुव्री। मौक, ६ आके, ७ उपाके, ८ अर्वाके, ८ अन्नमानाम्, २ प्रमादविशिष्ट, पागल , जिसे किसी बातका ख्याल १० अवमे, ११ उपमे। न रहे। अनवमर्शम् (सं• अव्य०) बिला छुये, बे हाथ अनवधानता (स. स्त्री०) नास्ति अवधानं यस्य तस्य लगाये। भावः । १ प्रमाद, पागलपन । २ अज्ञानता, बेवक फो। अनवय (हि.) अन्वय देखो। अनवधि (सं० त्रि.) १ असीम, बेहद; जिसको अनवर (सं. त्रि०) न अवरम्, नञ्-तत् । अवर- कोई मुद्दत न मालूम पड़े। भिन्न, श्रेष्ठ, अजघन्य, असभ्य नहीं; जो नीचे दरज- अनवष्य (सं० त्रि०) दबाने या क्षति पहुंचाने के का न हो, बड़ा, शायस्ता । अयोग्य, जो दबाया या मारा न जा सके। अनवर खां-युक्त प्रदेशके एक कविका नाम। यह सन् अनवन (सं० त्रि०) रक्षा या शरण न देता हुआ, १७२३ ई० में पैदा हुए और इन्होंने विहारीलालको जो हिफाजत न करता या पनाह न पहुंचाता हो। सतसईको एक टौका बनाई थी। अनवर-चन्द्रिका अनवनामितवैजयन्त (स० पु०) १ जैनमतानुसार नामक जो पुस्तक इन्होंने लिखा, वह शायद सतसई- भविष्थ संसार, आयन्दे को दुनिया । २ जिसने जीतका को टीकाका ही नाम है। झण्डा न झुकाया हो, जो बराबर बढ़ता जाये। अनवरत (स' त्रि.) अवरम-भाव त, अवरतं अनवपुराण (वै० त्रि.) न अव-पृच् सम्पर्क क्त; विरामः तन्नास्ति यस्य, नञ्-बहुव्री । १ निरन्तर, छान्दसत्वात् इडाद्यभावः, नञ्-तत्। असंपृक्त, अयुक्त, विश्रामशून्य ; बराबर, लगातार, जो ठहरता न हो। असंलग्न ; जुदा, मुख्तलिफ़, अलग, बेजोड़; जो (अव्य०) २ सदा, हमेशा। किसीसे छ न गया हो। अनवरथ (सं० पु.) कुरुवत्सके पिता और मधुके अनवबध्यमान (सं० त्रि०) क्रमशून्य, बेतरतीब ; पुत्वका नाम। जो उलट-पुलट गया हो। अनवराय (सं० त्रि०) अवरस्मिन् अर्धे भवं, नञ्- अनवब्रव (वै० त्रि०) ब्रूज-अण, नज-तत्। ऋदोरम् । तत्। उत्कृष्ट, श्रेष्ठ ; ऊंचा, बड़ा। इस शब्दके