पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४२४

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अनसन ७ शोक, 1 स।

-अनहङ्कारिन् अनस् (स० क्लो०) अनिति गच्छति, अन्-असुन् । दूसरी बात यह है,- अनोरमायस् सरसां जातिसंजयोः । पा ५।४।१४। १शकट, गाड़ी। "एकमेव तु शूद्रस्य प्रभुः कर्म समादिशत् । २ माता, मा। ३ उत्पत्ति, पैदायश। ४ सन्तान, एतेषामेव वर्णानां शूथ षामनस्यया ॥” (मनु १।६१) औलाद; जो जीव जीता-जागता हो। ५ भात, 'ब्रह्माने यह आदेश दिया है, कि अनसूया न कर उबाला हुवा चावल । ६ जल, आब। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य-इन तीनो वर्णको सेवा अफसोस। करना शूद्रका एकमात्र कर्म है।' अनसखरी (हिं० वि०) पवित्र, पाक ; जो जूठी न २ शकुन्तलाको सहचरी और अत्रि मुनिको पत्नीका नाम: हो। जिस रसोई में जलंका संयोग नहीं रहता और अनसूयु (सं० त्रि०) न-असु उपतापे कण्डादि. जो केवल दूध और घीसे बनती, उसे अनसखरी कहते यक्-उ, नज-तत्। असूयाशून्य, बिला हसद ; जिसे हैं। (पु.) अनसखरा। डाह न लगे। अनसढ़ (हिं० वि० ) कुत्सित, अधम, खराब, बुरा, अनसूरि (वै त्रि०) बुद्धिमान्, मूर्खतारहित ; अक्ल- छिछोरापन दिखानेवाला। मन्द, बेवकूफ नहीं ; जो बेसमझ न हो। अनसत्त (हिं० वि०) सत्यरहित, अनृत; झूठा, अनस्तमित (सं० त्रि.) न अस्तम् इतं गतं, अलुक् सच्चा नहीं ; जिसमें सचाई न हो। १ अधोभागमें न पहुंचा हुआ, जो नीचे न अनसन (हिं०) अनशन देखो। चला गया हो। २ अस्त-रहित, अधोगतिविहीन; अनसमझा (हिं० वि०) १ न समझा हुवा, जो समझमें लागुरूब, लाजवाल ; जो डूब या खराब न हो जाये। न आया हो। २ न समझनेवाला, जिसे समझ न पड़े। अनस्तित्व (सं० लो०) अस्तित्वका अभाव, हस्तीको अनसहत (हिं० वि०) न सहा जाता हुआ, जो बर नामोजूदगी ; न होने या रहनेको होलत । दाश्त न होता हो। अनस्थ (सं० पु०) अनेन जोवनोचितचैतन्यमात्रण अनसाना (हिं. क्रि०) बुरा मानना, चिढ़ना, तिष्ठति नतु शरीरावयवेन इति, अन-स्था-क। १ विना नाराज होना। शरीर अस्तित्वमात्र रखनेवाला पुरुष, जिस शख्शके अनसुनी (हिं० वि०) न सुनी हुई, जो सुन न पड़ो जिस्म न हो, लेकिन सिर्फ रूहके सहारे वह अपनी हो। (पु.) अनसुना। हस्ती कायम रखे ; बेशरीर रहनेवाली चीज़ । अनसूय (सं० त्रि.) नास्ति असूया परगुणो दोषा २ निरवयव, सांख्य प्रसिद्ध प्रधान, ईखरमाया, परमे- रोपो यस्य, बहुव्री। परके गुणमें दोषारोपशून्य, खरको कुदरत जो अजा नहीं रखती। दूसरेके हुनरमें ऐब न लगानेवाला। अनवत् ( वै० त्रि०) अनः शकटमस्त्यस्य-मतुप मस्य वः अनसूयक (सं० त्रि.) न असूयकम्, नत्र-तत् । सान्तत्वान्न पदत्वम्। शकटयुक्त, गाड़ीमें जुतां हुवा। असूयाशून्य, जिसे किसी के हुनरपर हसद न रहे। अनहक (हिं० क्रि०-वि०) नाहक, बेफायदा, बेजा अनसूया (सं० स्त्री० ) न असूया, अभावार्थे नत्र -तत् । तौरपर , अनधिकार। कखादिभ्यो यक् । पा २।१।२०। १ असूयाशून्यता, हसदका अनहङ्कार (स'० पु.) न अहङ्कारः, अभावार्थे नत्र- न होना। स्म तिमें लिखा है,- तत्। १ अहङ्कारका अभाव, फखरका न पैदा होना। "न गुणान् गुणिनी हन्ति स्तौति मन्दगुणानपि । (त्रि०) नञ् -बहुव्री०। अहङ्कारशून्य, फखसे न हसञ्चान्यदोषांश्च सानुसूया प्रकीर्तिता ॥" खाली ; जिसे घमण्ड न धेरे। "गुणी व्यक्तिका गुण नष्ट न करना, मन्द गुणोकी | अनहङ्गारिन् ( स० त्रि०) अहमिति गर्व करोति, भी प्रशंसा करना और दूसरेके दोषपर उपहास न अहं-व-णिनि ; न अहङ्कारी, नञ्-तत्। गर्वशून्य, करना यह सभी बात अनसूया कहाती है।' बेफख्र ; जो घमण्ड न करे। 105