पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४२८

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अनाथपिण्डद-अनादीनव ४२१ अनाथपिण्डद-शाक्य बुद्धके समसामयिक श्रावस्ती, अनादर (सं० पु०) विरोध अभावार्थे वा नञ्-तत् । वासी एक महाधनी और धार्मिक बणिक् । इनका १ अवज्ञा, बेतकल्लुफो। २ तिरस्कार, बेइज्जती। असली नाम सुदत्त रहा। अनाथ-दोन-दुःखोके प्रति ३ काव्यालङ्कारविशेष। इसमें मिली हुई वस्तुका असीम दानशीलताके कारण यह 'अनाथपिण्डद' अनादर उसी-जैसी वस्तुसे किया जाता है,- नामसे प्रथित हुये थे। भगवान् बुद्धके राजगहमें राधाको मुखचन्द्र लखि भूले फिरत चकोर । अवस्थान लेते समय अनाथपिण्डद उनसे मिले और रेन-दिवसको जान नहिं कहा सांझ कह भोर ॥ भगवान् बुद्धको श्रावस्तो पहुंचानेके लिये अनुरोध | अनादरण (सं० क्लो० ) अपमानसूचक व्यवहार, उठाया। उस समय श्रावस्ती नगरमें भिक्षुके ठहरनेका बेअदब बरताव ; अनादर, हिकारत । उपयोगो कोई आराम या उद्यान न रहा। बुद्धक अनादरणीय (सं० त्रि०) १ अनादरके योग्य, हिकारत- उपदेशसे अनाथपिण्डदने श्रावस्ती-नगरमें एक के काबिल। २ निन्दा, हकौर। उद्यानके स्थापनका आयोजन लगाया। उस समय | अनादरित (सं० त्रि०) अनादर किया हुवा, हकोर प्रसेनजित् श्रावस्तौके राजा रहे। उन्होंने हठ बांधी, समझा गया। कि जितनी जमौन सोनेसे मढ़ दी जाती, उतनी | अनादि (सं० पु०) आदिः कारणं पूर्वकालो वा स ही जमौन वह उद्यानके लिये लगाते। अनाथ नास्ति अस्य । १ ब्रह्म, परमेश्वर, आदिरहित, उत्पत्ति- पिण्डदने वही किया। राजा प्रसेनजित्ने सोचा, कि शून्य। २ नास्ति आदिः प्राथमिको यस्मात् । हिरण्य- बुद्धके लिये बणिक सुदत्त इतना सुवर्ण फेंक रहे थे ; गर्भ ब्रह्मा, जिनसे पहले दूसरा कोई न था। (त्रि.) उन भगवान्के लिये उन्हें (राजाको) भी कुछ करना ३ आदिशून्य, बिला आगाज । इसलिये राजाने अनाथपिण्डदको अनादिक (स क्लो०) अनादिशब्दात् स्वार्थे कन्। प्रार्थनाके अनुसार जो ज.मीन खाली पड़ी थी, आदिरहित पुरुष, आगाज़ न रखनेवाला। उसे अलग रख छोड़ा ; थोड़ोसी उद्यानके लिये प्रदान अनादित्व (सं० क्लो०) अनादि होनेको स्थिति, को। बुद्धदेवके परामर्शसे सारौपुत्रको बुला अनाथ आगाज़ न रखनेको हालत ; नित्यता, हमेशगी। पिण्डदने उद्यान खड़ा कर दिया । वह उद्यान अनाथ- अनादिन् (सं० त्रि.) शब्द न करता हुवा, जो पिण्डदके नामसे ही प्रसिद्ध हुवा । सारीपुत्रके नालन्द आवाज न निकाल रहा हो। में देह छोड़नेपर भिक्षु उनको देहका सत्कार साध अनादिनिधन (सं० त्रि.) आदि-अन्त-रहित, आगाज. उनका भस्मावशेष ले राजग्रहमें बुद्धदेवके पास जा ओ अञ्जाम न रखनेवाला; जिसका शुरू या अखौर पहुंचे। अनाथपिण्डदने वही भस्म अनाथपिण्ड न हो। दाराममें बृहत् चत्य बनवा उसके बीच में रख दौ। अनादिमत् ( स० त्रि०) आदिमत् कार्य तद्भिन्नम् । अनाथानुसारौ ( सं पु०-त्रि०) अनाथके पीछे चलने कार्यभिन्न, शुरू न होनेवाला। वाला, जो यतीमके पौछ रहे। अनादिमध्यान्त (सत्रि०) आदि, मध्य और अन्तसे अनाथालय, अनाथाश्रम (सं० पु.) अनाथ व्यक्तियों के शून्य ; शुरू, बीच और अखौरसे खाली। रखनेका स्थान, यतीमोंके रहनेको जगह; अनादिष्ट (सं० त्रि.) न आदिष्टं सविशेषमुपदिष्टम् । यतीमखाना। १ विशेष रूपसे अकथित, ज्यादातर न बताया गया। अनाद (सं० पु०) नाद या शब्दका अभाव, आवाज २ शिक्षा न पाये हुवा, जिसे तालीम न दी गई हो। कान आना। ३ आदेशरहित, हुक्मसे खाली। अनाददान (सं० त्रि०) न सकारते हुवा, जो मन र अनादौनव (सं०नि० ) निर्दोष, बेऐब ; जिसमें कोई न करता हो। बुराई न रहे। 106 आवश्यक था।