पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४२९

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४२२ अनाहत-अनाप्त अनादृत (स० क्लो०) आदृतम् आदरः, नपुंसके भावे क्त, अनानुकृत्य (सं० वि०) अनुपम, लासानी, बेजोड़; इति त प्रत्ययः ; ततोऽभावार्थे नञ्-तत् । १ अनादर, जिसको होड़ न हो सके। अवज्ञा बेइज्जती, बेअदबी। (त्रि.) कर्मणि त । अनानुद (सं० त्रि.) अनुददातीति, अनु-दा-क; २ अवज्ञात, तिरस्कृत ; इज्जत न किया गया। अनुदस्ततो नञ्-तत्-पृषोदरादित्वात् दीर्घः अनादृत्य (सं० अव्य०) आदर न देकर, बेलिहाज़ौसे। १ अतुल्यदानशील, बखशिशमें लासानी, देनेमें बराबरौ अनादेय (सं. क्लो०) १ वस्तु जिसके लेनेका धर्म न रखनवाला। २ अधीन न बनते हुवा, मातहत न शास्त्र में निषेध है, अप्रतिग्राह्य द्रव्य ; न ली जाने- होनेवाला। ३ आक्रमण न पहुंचाया गया, जिसपर वाली चीज । (त्रि.) २ ग्रहणके अयोग्य, लेने के हमला न हुवा हो। नाकाबिल। अनानुपूर्व्य (सं० क्लो० ) दूसरों के बीचमें पड़नेसे मिश्रित अनादेश (सं० पु०) न आदेशः, अभावे नञ्-तत् । शब्दवाले विभिन्न अवयवोंका पृथक करण, मिले हुए उपदेशका अभाव, तालीमका न मिलना। लफ्जके मुख्तलिफ़ हिस्सोंका दूसरेके दखलसे अलग अनादेशकर (स त्रि) आज्ञारहित कार्य करने किया जाना। २ संयत नियममें न रहना, बंधे वाला, जो बेहुक्म काम करे। कायदेसे निकल भागना। अनाद्य (स• त्रि.) न अद्यं भक्ष्यम्। १ अभक्ष्य, | अनानुपूर्व्यसंहिता (सं० स्त्री०) मिश्रित शब्दके विभिन्न खानेके नाकाबिल ; शास्त्र जिसे खानेकी आज्ञा नहीं अवयव पृथक्कर वाक्यका बनाना, मिले हुए लफ्ज- देता। न आद्यं । २ आद्यशून्य, अनादि; बिला आगाज। को तोड़-फोड़ जुमलेका जमाना। अनाद्यनन्त (सं.वि.) आदि-अन्त विहीन, आगाजो अनानुभूति (सं० स्त्री०) ध्यानका न लगना, बेखयालो अञ्जाम न रखनेवाला। त्रुटि, गफलत। अनाद्यन्त (सं० वि०) १ आदि-अन्त-शून्य ; बेआगाजो अनापद (स. स्त्री०) अभाग्य अथवा बाधाका अभाव, अञ्जाम। (पु०) २ शिवका एक नाम । बदकिस्मती या आफतका न रहना। अनाधार (स.नि.) नास्ति आधारो यस्य । आधार- अनापत्र (स. त्रि.) अप्राप्त, लाहासिल ; न शून्य, बेबुनियाद ; जिसका कोई सहारा न रहे। पाया हुवा। २ न्यायमतस-नित्यद्रव्य । अनाप-शनाप (हिं० वि०) बेनाप-जोख, इधर-उधर- अनावृष् (सं० वि०) आ-वृष-क्विप, नञ्-तत्। का, गड़बड़-सड़बड़। (पु.)२ बक-झक । अनभिभूत, न रुकते हुवा। अनापा (हिं. वि.) १ नापा या तौला न गया । अनादृष्ट (सं० त्रि.) न आकृष्टम् । अपरिभूत, २ असोम, ब हद; अतुल, जिसका वज़न न हो सके। नागालिब ; रोका न गया। अनापान-नृपतिविशेष। यह अङ्गके पुत्र रहे। अनावृष्टि-१ शूरके किसी पुत्रका नाम । २ उग्रसेनके अनापि (सं० त्रि०) प्राप्यते आप-कर्मणि इण आपिः एक पुत्र और यादवोंके सेनापति । आप्तः बन्धुश्च ; नास्ति आपिः यस्य, नञ्-बहुव्री । अनाधृष्य (स. त्रि०) आ-कृष्-कर्मणि क्यप् ; न आप्तशून्य, अबन्धु ; बे अजीज, बिलाबिरादर; जिसके आष्यम्, नज-तत्। अनभिभवनीय, दबानेके घरवाले या दोस्त न हों। नाकाबिल ; जो जौता न जा सके। अनापूयित (वै त्रि०) दुर्गन्ध न देता हुवा, जिससे अनानत (वै० त्रि.) १ अनवनत, भुका नहीं; बदबू न निकलती हो। अधीन न हुवा, जो काबूमें न आया हो। (पु.) अनाप्त (सं• त्रि.) नञ्-तत् । १ अप्राप्त, न मिला २ ऋषि-विशेष, किसी ऋषिका नाम । हुवा। २ अकृतकार्य, नाकामयाब । अनाना (हिं० क्रि.) मंगाना, तलब लगाना। नालायक। ४ यथार्थ निश्चयभिन्न, बेठौर-ठिकाना ।

३ प्रयोगा,