पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४३२

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अनार-अनारी ४२५ अनारभ्य मधुर लगता और हृदयको शीतल कर बल अनारका कलम भी लगाते हैं। साल-साल खाद बढ़ाता है। डालनेसे फल अच्छा निकलता है। अनारके ३ भेद होते हैं :-(१) स्वादु, (२) स्वादु २ आतिशबाजी। अनार-जैसे मट्टीके एक गोलेमें एवं अम्ल, और (३) केवल अम्ल । इन तीनोंके गुण लोहेका बुरादा और बारूद भर ऊपर काग़ज.से मुंह भावप्रकाशमें इस प्रकार बतलाए गए हैं :- बन्द कर देते हैं। जैसे ही मुंहपर आग लगाते, वैसे १- खादु ( मोठा):-तौनो दोष हरता, तृष्णा, ही चिनगारियां पेड़की शक्ल में फूट पड़ती और चारो दाह, ज्वरको दूर करता, हृदय, कण्ठ और मुखको ओर फूल-जैसे झड़ने लगते हैं। दुर्गन्धको निकालता; फिर वीर्यवर्धक, अनारत (सं० लो०) आ-रम्-त-आरतं विरतिः, किञ्चित्कषाय रसयुक्त, ग्राही, स्निग्ध, मेधा तथा अत्यन्ताभावे नत्र-तत् । १ सतत, अविरत, अनवरत । बलको बढ़ानेवाला है। (त्रि.) बहुव्री। २ अनवरतयुक्त, मुदामी; जो २-स्वादु एवं अम्ल अर्थात् खटमिट्ठा :-जठराग्नि सदा बना रहे। (अव्य०) ३ सदा, हमेशा। को दीप्त करनेवाला होता है। अनारदाना (फ.ा. पु०) अम्ल दाडिमका वीज, ३-अम्ल (खट्टा):-पित्तको पैदा, वात और खट्टे अनारका दाना। इसे लोग सुखाकर अपने पास कफको दूर करनेवाला है। इसकी जड़ कृमियोंको रखते हैं। नष्ट करती है। (सं० अव्य०) आ-रभ्-ल्यप, प्रारभ्य। अनारका फ ल भारतवर्षके विभिन्न स्थानों में कपड़े १ विना आरम्भ, शुरू न करके । (त्रि०) नज-तत्। पर लाल रङ्ग चढ़ानेके काम आता है। किन्तु रङ्ग २ आरम्भ होनेके अयोग्य, शुरू करनेके नाकाबिल। टिकता नहीं, कच्चा होनेसे जल्द उड़ जाता है। अनारभ्यत्व (सं० लो०) आरम्भ होनेको असम्भवता, इसका कसैला बकला रङ्ग चढ़ानेको कीमती सामान शुरू करनेका महाल ; हालत जिसमें कोई काम शुरू है, जो हलदी या नीलके रङ्गमें भी पड़ता है। अकेला करना मुमकिन न हो। बकला कपड़ेपर हरा-जैसा रङ्ग लाता, जिसे लोग अनारभ्याधीत (स० वि०) न आरभ्य किञ्चिद् अधौतम् । युक्तप्रदेशमें काकरजी कहते हैं। जब बकला रङ्ग पृथक् विषयकी भांति पढ़ा गया, जो अलग करके पढ़ा चढ़ानेके काम आता, तब उसे पानौमें डाल खूब हुवा हो। इसका उल्लेख वर्तमान है, कि वैदिक कार्यमें उबालते और चौथाई पानी बच जानेपर भट्टीसे उतारते वेदक कोई-कोई मन्त्र किसी कर्ममें विनियोग पाते हैं। हैं। इसके बाद कपड़ेको उस खिंचे हुये काढ़ेमें किन्तु अनेक स्थलमें फिर विनियोगको कोई बात नहीं डुबा देते हैं। यद्यपि बकला कपड़ा रंगनेके काम लिखी। उस स्थलमें मन्त्रका अनारभ्य अर्थात् किञ्चित् आता, तथापि चमड़ेपर उसका रङ्ग बहुत अच्छा अनधिकृत्य अधौत कहाता है। चढ़ता है। टञ्जीयर्सका मोरोक्को नामक चमड़ा इससे अनारम्भ (सं० पु. ) न प्रारम्भः, अभावार्थे नत्र तत्। अधिक सिझाया जाता है। युक्तप्रदेशके. जङ्गलसे प्रारम्मका अभाव, अनुष्ठानका न ठनना; आगाजको अनारका कितना हो बकला विलायत भेजते हैं। नामौज दगी, शुरूका न होमा। (त्रि०) २ आरम्भ- अनार बहुत पुराने समयसे अपने स्वाद और गुणके रहित, बेआगाज, जिसका शुरू न रहे। लिये प्रसिद्ध है। इसका ताजा रस ठण्डाईका असली अनारम्भण (वै० त्रि.) १ असहाय, बेसहारा। मसाला है और अजीर्णके औषधमें भी डाला जाता २ अस्पृश्य, गैर-महसूस ; छूने या टटोलनेसे मालूम है, इसकी जड़को केंचुयेको अक्सौर दवा समझते न होनेवाला। थे। इसका रस बलवर्धक, गोंद सुपुष्ट, कली-फल अनारी (i (हिं० वि०) १ अनारका, अनार-जैसे खन रोकने और ज.खम भरनेवाला होता है। । रङ्गवाला। ...२ मूर्ख, बेवक फ..। (पु० ) ३ कपोत 107