पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४३४

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अनाव-अनार्य ४२७ अनातव रोगको चिकित्सा करनेके लिये पहिले रहे, वैसा ही पुष्टिकर और बलाधान द्रव्य खिलाया उसका सच्चा कारण जानना आवश्यक है। कारणको करते हैं। अनार्तव रोगके साथ क्षय, कास प्रभृति हटा न सकनेसे पौड़ा शान्त होनेकी आशा कहां रखी अन्य कोई पौड़ा वर्तमान रहनेसे उसका प्रतीकार है! यद्यपि जन्मावधि जननेन्द्रियमें कोई न कोई पहुंचानेको चेष्टा चलाना चाहिये। दोष रहता है, फिर भी एकबारगी ही रोगको शान्ति अनातवजल (सं० ली.) पौषादिमासचतुष्टयमें पड़ा करना मनुष्यका काम नहीं होता। किन्तु इस वृष्टिका जल, पूस वगैरह चार महीनेमें हुवा बारिश- प्रकारको अवस्थामें स्त्रीको जो सकल यन्त्रणा उठाना का पानी। यह वातादि दोषको जगा देता है,- पड़ती, उसका निवारण निकाल सकते हैं। डाकर "अनातवं प्रमुञ्चन्ति वारि वारिधरास्तु यत् । टेनरने एक स्त्रीका विषय लिखा है। उसे तीस तविदोषाय सर्वेषां देहिनां परिकीर्तितम् ॥" वर्ष वयःक्रम पर्यन्त एकबार भी ऋतु न लगा, (भावप्रकाश पू० बारिव०) मध्य-मध्यमें रजोनिःसरणका उद्देग उठा, किन्तु 'बादलसे जो माहुट होती, वह सब लोगों में त्रि- रता बाहर न निकला था। उस उद्देगके समय दोष उत्पन्न कर देती है।' पेड़ में अत्यन्त भार पड़ता और असह्य यन्त्रणा उठ अनातवा (सं• स्त्री० ) १ रजःशून्या, जिस औरतको खड़ो होती है। निद्राकर औषध खिलानेसे वेदनाका महीना न होता हो। २ योनिपीड़ाविशेष, योनिको उपशम नहीं उठता और न रात्रिके मध्य में एक बार भी एक बीमारी। अनार्तव देखो। काकनिद्रा लगती। अनार्तवमें इस प्रकारको यन्त्रणा अनाविं जीन (स.नि.) पुरोहित होनेके अयोगा, उठनेपर वस्तिदेशको दोनो ओर गर्म जलका सेक काज़ी बननेके नाकाबिल । दिलाये और अण्डाधारपर जोक चिपकाये। गर्म अनार्य (स. त्रि.) न आर्य:, नत्र-तत् । आर्य नहीं, जलसे हौज भर रोगिणीको मध्य-मध्य उसमें बैठने असत्कुल-जात, प्रधान, असाधु, अभद्र, असच्चरित्र ; कहे। खानको औषधमें अफीम या मरफिया हो बड़ा नहीं, कमौना, हकीर, बदमाश, नङ्गा, बिगडैल । सबसे श्रेष्ठ है। कर्पूर के साथ चौथायी ग्रेनको मात्रामें प्राकृत-भाषामें अनार्यको जगह “अणज्ज" लिखते हैं,- परिष्कृत अफीमका सार सोते समय खिलाना "तहवि तेन रराणा सउन्दलाए अणन आचरिद।" (शकुन्तला) चाहिये। तथापि तेन राज्ञा शकुन्तलायां अनार्य आचरितम् । जननेन्द्रियको बनावटका दोष न दौड़नेसे रोगका नास्ति पार्यो यत्र, ७-बहुव्री० । २ आर्यवास- प्रतीकार पड़ सकता है। रोगिणीको सबल रहनेसे विहीन देश, जहां आर्य न रहते हों। मध्य-मध्य गर्म जलमें बैठाये। उसके सिवा पित्त युरोपीय पण्डितने भाषातत्त्वका अनुशीलन अड़ा निःसारक और विरेचक औषध ही श्रेष्ठ है। स्थिर किया है, पहले आर्यका वासस्थान भारतवर्षमें सोनामाखी, गाम्बोज, पडोफिलिन् टाराक्षेकम्, नहीं रहा। यह बलूचिस्तान के निकटवर्ती प्राइदिया मुसब्बर प्रभृति औषधका सेवन साधनेसे विशेष फल प्रभृति अञ्चलमें रहते थे। सिवा इसी आर्यावर्तके देख पड़ता है। हीराकश एक रत्ती और मिल् अन्य स्थानको अनार्य देश कहते हैं। इसीतरह आर्य- एलोपेट मार डेढ़ रत्ती एकत्र मिला एक गोली बांधे । जातिको छोड़, शवर, पुलिन्द प्रभृति समस्त नीच यह गोली प्रत्यह तीन बार खिलाये। फेरि रिडेक्. जातिका नाम अनार्य रखा गया है। मनुसंहितामें टायो पन्द्रह रत्ती, पिल एलोपट मार सोलह रत्ती लिखते हैं,- और कुचलेका सार दो रत्ती एकत्र मिलाकर बारह "भासमुद्रात्तु वै पूर्वादासमुद्रात पश्चिमात् । गोली बनाये। ऐसौ ही तीन गीली प्रत्यह खिलाना तयोरेवान्तरं गिर्यारार्यावर्त विदुबुधाः ॥" चाहिये। चिकित्साके ससय रोगिणी जिससे सबल 'पूर्वमें पूर्वसमुद्र, पश्चिममें पश्चिमसमुद्र, दक्षिणमें