पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४३५

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अनार्यक-अनावति ४२८ विध्यगिरि और उत्तरमें हिमालय-इसके मध्यवर्ती नाना स्थानमें चिरायतेका पेड़ जङ्गली तौरपर स्थानको पण्डित आर्यावर्त कहते हैं।' पैदा होता है। लेपचा प्रभृति पार्वतीय जाति कुल्ल कभट्टने आर्यावर्तको इसतरह व्युत्पत्ति अनार्य कहाती थी, इसी कारण उसके देशका बतायी है,-'आर्य अवावर्तन्ते पुन:पुनरुद्भवन्तीत्यार्यावर्तः ।' आर्य नाम अनार्य देश रखा गया। उसी अनार्यदेशका इस स्थानमें पुनःपुनः उत्पन्न होते, जिससे यहांका तिक्त वृक्ष चिरायता है। चिरायतका दूसरा नाम नाम आर्यावर्त पड़ा है। अमरसिंहने यों लिखा है, 'किरात-तिक्त' भी होता, जिसका मतलब पर्वतको "आर्यावर्त: पुण्यभूमिमध्य विभ्यहिमालयोः।" निरुक्तके भी एक अनार्य किरात जातिके देशमें पैदा होनेवाला तिक्त स्थानमें आर्यजनपदका विषय बताया गया है। वृक्ष है। चिरायता देखी। यह नहीं कह सकते, कि यास्कने इस आर्य शब्दसे | अनार्यत्व (सं० लो०) अनार्थता देखो। आर्यावर्तका निर्देश निकाला था या नहीं। जो हो, अनारे, अनाय (सं० त्रि.) ऋषिसेवितत्वात् ऋषिः पहले आर्य जहां बसते, उसे छोड़ दूसरा स्थान वैदः तत्रोक्त आर्षस्तद्भिव। अवैदिक, वेदका अव्यव- अनार्य देश कहाता था। इसका विस्तारित विवरण आर्य हृत ; वेद या ऋषिसे सम्बन्ध न रखनेवाला। शब्दमें देखो। वर्तमान भारतवासी कोल, साँप्रोताल अनालम्ब ( स० त्रि०) निराश्रित, बेसहारा; जिसे प्रभृति वन्य जातियोंको अनार्य बताते हैं। कोई टेक न मिले। (पु.)२ निराश्रयता, सहारका अनार्यक (स' को०) अनार्य-कन्, पार्यो न वसति न सधना। यत्र तत्रार्यवर्जिते देशान्तर भवः । अगुरु काष्ठ, मुसब्बर, अनालम्बन (सं० त्रि०) आश्रयशून्य, बेसहारा। ऊद। अगुरु वृक्ष सिलहट और अराकान प्रभृति | अनालम्बी (सं० स्त्री०) शिवको वीणा, महादेवका अञ्चलमें जन्मता है। मनुसंहितामें जो सौमा सजायो तम्बूर। गयी, उसे देखकर विचारनेसे श्रीहट्ट आर्यावर्तके अनालम्बुका, अनालम्भुका (सं० स्त्री०) मासिक भीतर जा पड़ता है। अतएव इसके द्वारा अराकान धर्मसे सम्पन्न स्त्री, जो स्त्री कपडोंसे हो। प्रभृति देश समझे जाते और वहां जो अगुरु लकड़ी अनालाप (सं० त्रि.) १ मौनावलम्बी ; मुहचुप्पा ; होती, उसीको अनार्यक कहते हैं। ज्यादा बात न करनेवाला। (पु.)२ मौनावलम्बन ; अनार्यकर्मिन् (सं० पु०) अनार्यका कर्म करनेवाला कमगोयौ ; कम बोलनेको हालत । व्यक्ति, जो शख्स कमीनेका काम करे। अनालोचित (सं० त्रि०) न आलोचितम् । १ अविवेचित, अनार्यज (सं० क्लो०) अनार्यदेश जायते, जन-ड। २ अदृष्ट, बेदेखा। १ अनार्यदेशजात अगुरु काष्ठ, कमौने मुल्कमें पैदा अनालोच्य (स' अव्य०) अविवेचनासे ; बेसमझे, हुई मुसब्बरको लकड़ी, ऊद। (त्रि०) २ अनार्य बेदेखभाले देश जात, कमीने मुल्कमें पैदा हुवा। अनालोडित (सं० त्रि०)) न आलोड़ितम्। अना- अनार्यजुष्ट (सं० त्रि.) अनार्य द्वारा अध्युषित, साधित न्दोलित, अविवेचित ; न समझा गया, जिसको देख- अथवा अधिकृत, कमोनेसे मिलाया, साधा या लिया भाल न चली हो। गया। अनावया (वै• त्रि.) कठोर ; सखू त ; न देनेवाला, अनार्यता (स• स्त्री०) अनार्य होनेका भाव, हाथ न उठाते हुवा। कमीनापन। अनावति (सं० स्त्री.) पुनरागमनविहीनता; गैर- अनार्यतिता, अनार्यतिक्तक ( (स० पु०) अनार्यदेशे वापसी ; पीछेका न लौटना। इस शब्दका तात्पर्य जातस्तिक्तः। भूनिम्ब, चिरायता। (Gentiana इहलोकसे जाकर फिर न फिरना अर्थात् मुक्ति cherayta, Rox.) दार्जिलिङ्ग प्रभृति हिमालयके पाना है। बेसमझा।