पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४३६

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अनावर्षण -अनाशस्त ४२३

अनावर्षण (सं० लो० ) वृष्टिका अभाव, पानीका न देवक्रिया भी अनेक थीं। ब्राह्मण ग्रामके शिवको जलमें बरसना ; दुर्भिक्ष, कहत। डुबा देते, होम और याग भी किया करते थे। अनावश्यक ( स० वि०) आवश्यकतारहित, जिसकी | आदिशूरने जो कई बार यज्ञानुष्ठान किया, उसमें कोई ज़रूरत न रहे। कदाचित् अनावृष्टिके निवारणार्थ भी एक यन्त्र रचा अनावश्यकता (सं० स्त्री.) आवश्यकताराहित्य, गया था। कितने ही वर्ष हुए, जब पञ्जाबमें अतिशय जरूरतका न पड़ना। अनावृष्टि रही, तब पञ्जाबके ब्राह्मणोंने यह श्लोक अनाविड (सत्रि०) अनाहत ; बेज़खम ; चोट पताका पर लिख झण्डा उड़ाया था,- न खाये हुवा। "भूयश्च शतवार्षि क्यामनादृष्टयामनभसि । अनाविल (स० त्रि०) न आविलम्। १ परिष्कार, मुनिभिः संस्तुता भूमी संभविष्याम्ययोनिजा ॥" (चण्डी) , स्वच्छ, मलिनताशून्य, कलुषतारहित ; साफ, सुथरा। पूर्वापेक्षा अब भारतवर्ष में वर्षा बहुत कम होती अनाविष्ट (स त्रि०) न आविष्टम् । अमनोयोगों ; है। युरोपीय बताते हैं, कि क्रमसे इस देशका जङ्गल दिल न लगानेवाला। परिष्कार हो रहा, जो अनावृष्टिका प्रधान कारण अनावृत् (वै० त्रि०) पुनरागमनरहित, वापस न है; बड़े-बड़े पेड़ न रहनेपर अच्छीतरह पानी आनेवाला। नहीं पड़ता। अनावृत (सं० त्रि०) न ढंका हुवा, खुला। अनावेदित ( सं० त्रि०) आवेदनविहीन ; गैरमुश्तहिर, अनावृत्त (सं• त्रि.) न आवृत्तं अभ्यस्तम्। १ घूम जाहिर न किया गया। कर फिर न आनेवाला, जो जाकर वापस न हो। अनाव्याध (वै० त्रि०) जिसका टूटना या खुल २ पीछे न हटते हुवा। ३ यातायात न करनेवाला, जाना असम्भव हो, किसौतरह न टूटने या न जो आमदरफ्त न रखे। ४ पसन्द न किया गया। खुलनेवाला। अनावृत्ति (सं० स्त्री०) न आवृत्तिः पुनरागमनम्। अनावस्क (स० पु०) १ अनाहत दशा, नुकसान न १ पुनर्वार के आगमनको शून्यता, गैरवापसी। पहुंचनेको हालत। (त्रि.) २ हानि न पहुंचाने- २ मुक्ति, निर्वाण । ३ अभ्यासका अभाव, महावरेका वाला, जो नुकसान न करे। न मंजना। अनाश (सं० त्रि०) १ आशाशून्य ; नाउम्मेद। अनावृष्टि (सं० स्त्री०) न आवृष्टिः सम्यग्दृष्टिः। भरोसा न रखनेवाला। २ नाशश न्य; लाजवाल; दृष्टिका अभाव, पानीका न पड़ना; सूखा। यह न मिटनेवाला, जीता-जागता। शस्यहानिका प्रधान कारण है। छ: ईतियोंमें अनावृष्टि | अनाशक (सं० पु०) णश-खुल्-नाशकः, न नाशकः, भी शामिल है। अतिवृष्टि देखी। नञ्-तत्। अथवा न आ सम्यक् अश-घज-आशः; पहले हिन्दू अनावृष्टिके समय भोजपत्रपर रक्त अशनं कप, नञ्-बहुव्री। १ अनश्वर, फलकामना- चन्दनसे ऐसे एक सौ. आठ स्थानके नाम लिखते, शून्य ; उम्मीदसे खाली बात । २उपवास। जिसका आद्यक्षर 'क' रहता था जैसे काशी, | अनाशकनिवृत्त (सं. पु.) उपवासका अभ्यास काञ्ची, कलकत्ता, कनौज इत्यादि। किन्तु जिस छोड़नेवाला व्यक्ति, जो शख श फाकाकशीकी आदत स्थानके अन्तमें 'पुर' या ग्राम शब्द होता, (जैसे छोड़ दे। - कल्याणपुर, कुलग्राम इत्यादि) उसका नाम छोड़ अनाकाशयन (स. ली.) न नश्यति अनाशक देते थे। पौछे उसी भोजपत्रको कटोरीमें डाल जलमें आत्मा तस्यायनं प्राप्त उपायः। आत्मज्ञान-साधन ': डुबाकर रखनेसे उन्हें वृष्टिहोनेका निश्चय हो जाता ब्रह्मचर्य-विशेष, जो उपवास करनेसे बनता है। था। सिवा इसके अनावृष्टिको निवारण करने के लिये । अनाशस्त (सं०. त्रि०)... न आशस्तम्। १ अस्तुत, 108