पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४४०

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अनित्य-अनिद्रा ४३३ या 'मा वी रसानितभा कुभा क मुर्मा वः सिन्धुनि रौरमत्। . मा वः परि ष्ठात्सरयुः पुरीषिण्यस्मे इत्सुम्नमस्तु वः ॥" (ऋग्वेद ५१५शर) अनित्य (सं० त्रि०) नियतं ध्रुवं नित्यं ; न नित्यम्, नञ् तत्। १ अस्थायौ, सदा न रहनेवाला ; नापाय- दार, जो हमेशा न रहे। २ अवसरका, मौकेबाला। ३ अनियमित, बेकायदा। ४ अदृढ़, गैरमज़बूत। ५ अनिश्चित, बेठिकाना। ६ नश्वर, मिटजानेवाला। ७ विकल्प । (अव्य०) ८ अवसरपर, मौके बमौके; कभी-कभो। अनित्यकर्मन् (सं० क्लो. ) समय विशेषका पूजन, मुख्य प्रयोजनका याग। अनित्यक्रिया स. स्त्रो०) अनित्यकर्मन् देखो। अनित्यता (सं० स्त्री.) चञ्चल अथवा सीमाबद्ध जीवन ; नापायदार या महदूद हस्तौ । अनित्यत्व (स लौ०) अनित्यता देखो। अनित्यदत्त (सं० पु०) अपने माता-पिता द्वारा अन्यको गोदमें लिये जानेके लिये थोड़े-दिन दिया गया पुत्र । अनित्यदत्तक, अनित्यदत्रिम, अनित्यदत्त देखो अनित्यप्रत्यवेक्षा (सं० स्त्रौ०) जैन मतानुसार- यह विवेक, कि सब बीतते जा रहा है ; जैनियोंको सब गुज़रते चले जानेको समझ । अनित्यभाव (सं० पु०) अस्थिरता, नापायदारी, न ठहरनेको हालत। अनित्यसम (सं० पु०) मिथ्या हेतु, झुठा सबब, धोका-धड़ी, चालबाज़ी। अनित्यसमा (स. स्त्री०) अनित्यसम देखो। अनित्यसमप्रकरण (सं० लो०) न्यायका भागविशेष, जिसमें मिथ्या हेतुपर वितर्क बंधा है। अनित्यसमास (सं० पु.) वह समास या शब्द- योग जिसका अर्थ शब्द पृथक् कर भी समभावसे लगा सकते हैं। अनिदान ( स० त्रि०) निदान-विहीन, कारणरहित, बेसबब, बिलाबायस, जिसका कोई सबब न सूझ । अनिद्र. ( स० वि०) निद्रारहित, बेनींद, जिसे नींद न लगती हो। 109 अनिद्रा (स. स्त्री०) अभावार्थे नज-तत्। निन्दन लोपश्च। उण् २०१७ १ निद्राभाव, नौंदका न पड़ना। २ जागरण, जगाई। (त्रि.)३ निद्रारहित, बेनींद, जिसे नींद न आती हो। अनिद्रा ( Insomnia) नाना प्रकारके रोगका पूर्व लक्षण है। उन्मादरोग उठनेसे पहले खुद रोगी उसका आत्मीयस्वजन कुछ भी समझ नहीं सकता। किन्तु वास्तविक मनुष्य हठात् पागल नहीं पड़ता। पागल होनेके तीन-चार मास पहलेसे रोगी रात्रिकालमें जागा करता है। नींद लेने से वह स्वप्न देखता, उसी समय दिलमें बरबराने लगता है। इसी कष्टके कारण नींद लगते भी रोगी इच्छासे सोना नहीं चाहता। उसके कुछ दिन बाद उन्मादरोग उभरता है। हृपिण्डको पौड़ा, अजीर्णरोग, यक्वत्को विकृति- से उत्पन्न पाण्डुरोग, अतिशय मानसिक चिन्ता, मन- स्ताप, शारीरिक श्रमाभाव प्रभृति अनेक कारणसे निद्राभाव निकलता है। यह निश्चित करना कठिन है, कि मनुष्य नींद न लेकर कितने दिन बच सकता है। इतिहासके मध्य केवल एक घटना देख पड़ती है। सन् १८५८ में चीन देशके किसी व्यक्तिने अपनी स्त्रीका प्राण ले डाला था। विचारसे अपराधीको प्राणबधको आज्ञा मिली। बोध बंधता, कि मुजरिमके निष्ठुर भावसे अपनी स्त्रीका ख न बहानेपर विचार- पतिने कुछ नूतन तर्ज से उसे मारनेको अनुमति दी थौ। तौन चौकीदार नियुक्त किये गये। हुका हुवा, कि मुजरिम एकबारगी हो सोने न पाता ; जितने दिन उसका प्राण न छूटता, उतने दिन वह क्रमागत जगाया जाता। हाकिमने कहा था,-"देशमें सब कोई सोये, नींद ले; केवल बारी-बारी एक चौकीदार जागे, दूसरे हतभाग्य अपराधी खुद न सोने पाये।” हाय-हाय मचाते, लोटते-पोटते, मट्टीमें घिसलते सात-आठ दिन निकल चले। मनुष्यका प्राण बहुत कठिन है, कण्ठके पास पहुंचकर भी बाहर नहीं जाता; अन्तमें अट्ठारहवां दिन देख पड़ा। अपराधी रोते-रोते