पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४४१

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अनिद्रा-अनिन्दित चौकीदारके पैरपर गिर पड़ा और हाथ जोड़कर इसतरह लेटे, जिसमें जिह्वा और ओष्ठ न भुके। बोला,-आप मेरा गला काट डालिये, गोली मारिये, इसीतरह स्थिरभावमें एक मनसे यानी दिल लगाकर जलमें डुबा दीजिये, नाक और मुंह दबाकर अन्त ओं जपे किंवा एक, दो इत्यादि गिना करे। साढ़े कीजिये ; दूसरे जिस शास्ति में खासी यन्त्रणा देख चार सौ बार जपने या गिनने के बाद प्रायः गाद पड़े, उसे ही चलाइये ; लेकिन इस क्लेशसे मुझे बचा निद्राकर्षण पड़ता है। लीजिये। दूसरे दिन मुजरिम मर गया। शायद काश्मीरदेशमें शिशुके सुलाने का एक बहुत सहज सुना है, कि चीना सचराचर अपराधीको ऐसा ही उपाय होता है। रात्रिकालमें लड़केको नींद न दण्ड दिया करते हैं। आनसे जननौ उसके माथे पर जलको धारा छोड़ती अनिद्राका प्रतीकार पहुंचानेसे पहले रोगका है। कोई दो घण्टे जल छोड़नेसे लड़का चुपके सो कारण काट डालना चाहिये। जो स्वभावत: अलस जाता है। हैं, कुछ भी परिश्रम नहों पकड़ते, उन सकल लोगों डाकर ब्रेडने आदमोके सुलानेका एक सहज को कायिक परिश्रम उठाना आवश्यक है। सन्ध्या उपाय बता दिया है। रात्रिको अच्छी नींद न आने और सवेरे निर्मल वायुमें घूमने-फिरनेसे भले किंवा एकबारगी ही अनिद्रा रहनेसे रोगीको निस्तब्ध आदमियोंका शरीर खू ब स्वस्थ रहता है। इससे क्षुधा घरमें परिष्कार विस्तरपर लिटाये। फिर उसके बढ़ती और रात्रिको सुनिद्रा लगती है। यकृत् और धूवाले मध्यस्थल में दश-बारह इच्च दूर कोई उज्ज्वल हृत्पिण्डमें पौड़ा उठनेसे उपयुक्त औषध द्वारा उसको द्रव्य रख दे। इस चमकते हुए द्रव्यको ओर देखते- शान्ति निकाले। यक्वत् और हृपिण्ड देखो। कौलिक देखते क्रमसे शरीर मानो अवश होता और खुदबखुद उन्मादरोगका लक्षण देख या उन्मादरोगका कोई पूर्व आंख मुंद जाती है। किन्तु इस प्रकार प्रक्रिया लक्षण समझ पड़नेसे रोगीके प्रति विशेष यत्न रखना अधिक क्षण चलानेपर विपद् बढ़नेको सम्भावना है, आवश्यक है। उन्माद देखो। इसलिये विज्ञ चिकित्सक भिन्न किसी दूसरेको इसमें इस स्थानमें अनिद्रा निवारणके कई एक साधारण हस्तक्षेप करने देना उचित नहीं समझते। डाकर उपाय लिखे जाते हैं। निद्रा न पानसे अनेक अफीम ब्रेड एतद्भिन्न दूसरे भी अनेक उपाय करते थे। किन्तु मफिया, कोरल प्रभृति औषध की व्यवस्था बांधते लोगोंने देखा, कि उन्मादरोग या शारीरिक विशेष हैं। किन्तु उस प्रकारको चिकित्सा भलो नहीं यन्त्रणा न रहते इस सामान्य उपायसे ही सुनिद्रा आ होती। विशेष उत्कट अवस्था न होनेसे औषधका जाती है। प्रयोग मना है। प्रथम केवल सुनियमसे पौड़ाका अनिद्रित (सं० त्रि.) न निद्रितम् । निद्रित नहीं, उपशम करनेको चेष्टा चलाये। प्रत्यूषमें किञ्चित् जागरित, न सोते हुवा, जो जाग रहा हो । व्यायामके बाद दुग्ध और कच्चा अण्डा सुपथ्य होता | अनाधृष्ट (सं० त्रि०) अबाध, अनधीन, रोका न है। इससे शरीर स्निग्ध पड़ता और स्नायुमें बल गया, जो मातहत न बना हो। बढ़ता है। ऐसा द्रव्य कभी न खाये, जिससे क्षुधा- | अनिम (स त्रि०) काष्ठको आवश्यकता न रखते मान्द्य या अजीर्ण बढ़े, नहीं तो पेट फूल जाये गा। हुवा, जिसे लकड़ी या ईधनको ज़रूरत न पड़े। उदरामान या अजीर्ण रहनेसे निद्रा लगना कठिन अनिन (सं० त्रि.) प्रभुविहीन, बेमालिक, जिसका है। रात्रिको अल्प आहार ले, किन्तु अधिक रात्रि कोई रक्षक न रहे। बीतनेपर भोजन न करे। सोनेसे पहले कियत्काल अनिन्दनीय, अनिन्दा देखो। गर्म जलमें पैर डुबाये रहे, गर्म जलसे अंगोछा अनिन्दित ( स० वि०) न निन्दितम् । १ अगर्हित, तर कर सर्वाङ्ग पोंछ डाले। फिर दक्षिण पार्श्वसे निन्दित नहीं, बुरा बताये जानेके नाकाबिल ।