पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४४२

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अनिन्द्य-अनिमिख ४३५ २ वृणित नहीं, जिसे नफरत न दिखाई गयी हो। असम्बाध, न रोका गया, जिसकी हद न बंधी हो। ३ पवित्र, पाक। ४ धार्मिक, ईमानदार। ५ नेक, (पु.) २ निबाधका अभाव, रोकका न रहना, भला। ६ स्वतन्त्र, आज़ाद। स्वतन्त्रता, आजादी। अनिन्दय (सं. त्रि०) निन्दाके अयोग्य, हिकारतके | अनिभृत (संत्रि०) न निभृतम्। चञ्चल, चुल- नाकाबिल, निर्दोष, बेऐब । बुला, घरका नहीं, जो घराऊ न रहे, पृथक् न अनिन्द्र (सत्रि.) नास्ति इन्द्र याज्यो यस्य । रखा गया, जो अलग न किया गया हो, निर्लज्ज, १ इन्द्रको न जाननेवाला, जो इन्द्रका यज्ञ न करे। बेशर्म, वीर, बहादुर, संसार-सम्बन्धीय, दुनियासे २ इन्द्रसे पृथक्, जो इन्द्रसे अलग हो गया हो। ताल्लुक रखनेवाला। ऋग्वेदके छ: ऋक्में अनिन्द्र शब्दको देखते अनिभृष्ट (स'• त्रि.) निभृश-क्त, निभृष्टम् । अबाधित, हैं। यह बात निश्चित करने में अनेक सन्देह उठता है, तकलीफ़ न पहुंचाया गया, अजित, गैरमगलूब, कि अनिन्द्र कौन था। उस कालके राक्षस, असुर या अन्यूनत, घटाया न गया। दस्यु आर्यो का यज्ञादि न मानते, सर्वदा ही उनके अनिभृष्टविहि (वै० पु.) अन्यून शक्तिशाली द्रव्य, प्रति उत्पात उठाया करते थे। इसीलिये वह अनिन्द्र जिस चीजकी ताकत कम न पड़ी हो। कहाते रहे। किन्तु इस विषयपर भी सन्देह है, कि अनिभ्य (सं० त्रि०) धनविहीन, जो दौलतमन्द न हो। आर्यों के मध्य में भी सकल इन्द्रको मानते थे या नहीं, अनिमक (सं० पु०) अन जीवने शब्द च, बाहुल- "अभीदमे कमेको अस्मि निष षाड़भी हा किमु त्रयः करन्ति । कात् इमन् ; अनिमः जीवनं तेन कायति प्रकाशते खले न पर्षान् प्रतिहम्मि भूरि कि' मा निन्दन्ति शववोऽनिन्द्राः ॥" शब्दायते वा, कै-क। १ भेक, मेंडक । शीतकालमें (ऋक् १०१४८७) भक मृतवत् रह पुनर्वार जी उठता, इसीसे इसका सायणाचार्यने 'अनिन्द्राः'का अर्थ 'इन्द्रमयजन्तः' नाम अनिमक पड़ा है। २ कोकिल, कोयल। अर्थात् इन्द्रका यज्ञ न करनेवाले लिखा है। निरुक्तमें ३ चमर, भौंरा। इनके मधुर शब्दसे नियमाण यास्कन कहा है,-“य इन्द्र' न विदुरिन्द्रो ह्यमम्मानिन्द्री इतर मनमें आस्वादका सञ्चार होता है। अनिमाय इति वा। जीवनाय कं जलं यस्य । ४ पद्मकेशर। अनिमाय अनिन्द्रिय (सं. ली.) इन्द्रियसे पृथक् द्रव्य, जी के मुखं यस्मात् । ५ मधुकवृक्ष, महुवा। चीज़ इन्द्रिय नहीं होती। अनिमन् (संपु.) १ कण, जरा। २ चिह्न, दाग। अनिप (हिं. पु.) सेनापति, अफ़सरे फौज। अनिमन्त्रित (सं. त्रि.) निमन्त्रण न पहुंचाया अनिपद्यमान (सं० त्रि०) नौचे न गिरते हुवा, गया, जिसे न्योता न मिला हो। बेथका-मांदा, जो सोनेके लिये न झुकता हो। अनिमन्त्रितभोजिन् ( स० वि०) विना निमन्त्रण पाये अनिपात (सं० पु.) जीवनका स्थायिभाव, भोजन करते हुवा, जो बेन्यौते हो खाना खा रहा हो। जिन्दगीको सदामत, जीते जौका न छूटना। अनिमा (हिं.) अणिमा देखो। अनिपुण (सं० त्रि.) न निपुणम् । अपटु, अविज्ञ, अनिमान (सं० त्रि.) निमा-भावे ल्युट, नास्ति नाहोशियार, बेवकू.फ, होशियारी न रखनेवाला। निमानं यस्य। अपरिच्छिन्न, परिच्छेदशून्य, बेहद, अनिबद्ध (सं० वि०) न निबदम्। बद्ध नहीं, ग्रथित बहुत ज्यादा, जिसका कोई हिसाब न हो। नहीं, अनायत, न बांधा गया, ताल्लुक न रखनेवाला। अनिमिख (हिं० वि०) चक्षुस्पन्दनशून्य, जिसकी अनिबद्दपलापिन् (सं० वि०) असम्बद्ध भाषण करते पलक न पड़े। ऋग्वेदमें मूर्धन्य षकारका उच्चारण हुवा, जो उखड़ी-उखड़ी बात बना रहा हो। खकार-जैसा निकालते हैं। इसीसे हिन्दो प्रभृति अनिबाध (सं० त्रि.) नास्ति निबाधो यस्य । भाषामें अपभ्रशसे मूर्धन्य षकार के स्थानमें 'ख' और