पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४५०

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अनिःसारा-अनीच ४४३ सिपाही। सिरा। कुदरतके खिलाफ़, मसनूयो तौरसे असर डाला गया, अनौकस्थ (सं० पु०) अनीके युद्धे तिष्ठति, स्था-क। जो असली न हो। १ युद्ध-गत सैन्य, जङ्गमें पहुंची हुयो फौज। २ योद्दा, अनिःसारा (सं. स्त्री०) कदली, केला। ३ राजरक्षिवर्ग, बादशाहको, हिफाजत अनिस्तब्ध (संत्रि.) १ सञ्चालनशून्य अथवा रखनेवाली फौज। ४ हस्तिशिक्षा-विचक्षण, हाथी कठोर न बनाया गया, जो बेहरकत या सख़्त न सिखानेका उस्ताद, महावत। ५ चिह्न, सङ्केत, बना हो। २ बन्धनशून्य, न जकड़ा हुवा। ३ अस्थिर, निशान, इशारा। ६ योडाका मर्दलक, सिपाहीवाला बैमुकरर, जो बंधा न हो। ढोल, जुझावू डङ्का । अनिस्तीर्ण (सं० त्रि.) १ पार न किया गया। 'अनौकस्थी रणगते हसिशिक्षाविचक्षणे । २ अलग न रखा हुवा। ३ रुका। ४ उत्तर या राजरचिणि चिह्न च वीरमदलकेऽपि च ॥' (मेदिनी) जबाब न पाया। अनीकिनी (सं० स्त्री०) अनीकानां सेनानां समूहः, अनिस्तीर्णाभियोग (सं० पु.) अभियोगमें काट अनौक-इनि । १ सैन्य, फौज । २ हस्ती-प्रभृति-संख्या- कूटसे छुटकारा न पाये हुवा प्रतिवादी, जिस मुद्दा विशेष-युक्त सेना, निराली टोली। ३ दो हजार एक लहको तरदीदसे जुर्ममें रिहायो न मिली हो। सौ सड़सठ हस्ती, दो हजार एक सौ सड़सठ रथ, अनी (हिं. स्त्री०) १ नोक धार, हथियारका छः हज़ार पांच सौ एकसठ घोड़े और दश हजार नौ २ नौकाका अग्रभाग, नावको नोक, गल सौ पैंतीस सिपाहीको फौज। अमरकोषमें सेनाको ही। ३ जतेका माथा। ४जलके मध्य प्रसारित संख्या इसतरह लिखी गई है,- भूमिका अग्रभाग, पानी में घुसी जमीनकी नोक। “एकैौकरथा अश्वा पत्तिः पञ्चपदातिका । ५ सेना, फौज। “रणके अन्त फिरी दोउ अनी।" (तुलसौदास ) प्रत्यङ्ग स्विगुणे: सर्वे : क्रमादाखया यथोत्तरम् । ६ ग्लानि, ग़म, खेद, खराश, लाग। (सम्बो०) अनी किनौ दशानोकिन्यक्षौहिण्यथ सम्पदि ।" १ अरो, ओरी। एक हाथी होनेसे फौजको एकेभा कहते हैं। अनीक (सं० पु.) अनिति आभिमुख्य गच्छतीति, एक रथसे एकरथा कहलाती है। तीन घोड़ेसे,- अन-ईकन्-किच्च। अनिषिभ्यां किच्च । उण ४।१७ । १ सेना, अखा होती है। पांच सिपाही पञ्चपदातिका बनाते कटक, दल, फौज। "ध्वजिनी वाहिनी सेना पृतनाऽनौकिनी हैं। इन सबको मिलाकर पत्ति पाते हैं। दूसरे,- चमः। वरूथिनौ बल सैन्ध चक्रचानौकमस्त्रियाम् ॥" (अमर) "एकरथो गजको नरा: पञ्चपदातयः । वयश्च तुरगास्तजः पत्तिरित्य- अन्यते आभिमुख्यमभ्यागम्यते यत्र । २ युद्ध, कलह, भिधीयते ॥ एक रथ, एक हाथी, पांच पैदल सिपाही जङ्ग, लड़ाई। "रथराजिपत्तिकरिणौसमाकुल तदनौकयोः समगत और तीन घोड़े रहनेसे फौजको पत्ति कहते हैं। यस्मिथः ।” (माघ१३।१०) ३ मुख, मुंहाना। ४ चेष्टा, अपर पत्तिको जो गिनती लिखी, उसे बार-बार सूरत। ५ ज्योतिः, चमक । ६ अग्रभाग, नोक । ७ तट, तौनसे गुणित करनेपर क्रममें सेनामुख, गुल्म, गण, किनारा। ८ क्षेत्र, मैदान। ८ श्रेणी, कतार। वाहिनी, पृतना, चमू, अनीकिनी, दशानीकिनौ, और १० गमन, कूच । (हिं० वि०) ११ अनुत्तम, खराब। अक्षौहिणी बनती है। ४ कमलिनी, छोटा कमल। अनौकवत् (वै० पु०) अग्नि जो सर्वाग्रमें प्रतिष्ठित हैं। अनौक्षण (स० लो०) अवलोकनका अभाव, किसी अनौकविदारण (सं० पु.) सैन्यको विचूर्ण बनाने चीजका न देखना। वाला व्यक्ति, जो शख्स फौजको फार डाले। अनीच (सं० त्रि.) उच्च, ऊंचा, इज्जतदार, अनीकशस् (स अव्य) सैन्यके शासनसे, फौजके माननीय, जो नीच या कमोना न हो। २ अनुदात्त कायदेपर ; गमनशील दलमें, कूच करते हुये जखीर खरसे न बोला जानेवाला, जिसका तलफफुज़ हलका में, रेखा-रेखा, कतार-कतार । आवाजसे न निकले।