पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४५२

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पड़ता है। अनौहित-अनुकनखलम् ४४५ अनौहित (सं० त्रि०) १. अहित, नागवार, असन्तोष सन्निधि, समीप-अनुमालिनीतीरम् । मालिनी नदी- प्रद, नाखुश बनानेवाला, अनिच्छित, ख़ाहिश न तटके पास। इस अवसरमें अनु सविधिको किया गया। संभालता है। अनु (सं० अव्य.) अनितीति, अन-उ बाहुलकात् । सदृश योग्य-अनु रूपम्। रूपके योग्य या सदृश । अनुलक्षणे : पा ११४८४ । प्रादि उपसर्गके अन्तर्गत एक ऐसे वाक्यमें अनु सदृशका अर्थ देता है। उपसर्ग। यह किसी शब्द या धातुके पहले लगनेसे आयाम-अनुयमुनं मथुरा। यख चायामः । पा २।१।१८ । भिन्नार्थ निकालता है और नहीं भी निकालता। यमुनाके साथ-साथ मथुरा चली है। इस स्थलमें सचराचर अनु शब्दके यह कई एक अर्थ आते हैं, यमुनाके आयामसे मथुराका आयाम समझ लक्षण, इत्थम्भ ताख्यान. (इसतरहका जात धर्म), भाग (अंश), वीप्सा, सन्निधि (सामीप्य ), सादृश्य होन-अन्वर्जुनं योद्धारः । हौने । पा १।४।८५। यह अथवा योगाता, आयाम (व्याप्ति, दैर्घ्य ), हीन, सार योद्धा अर्जुनसे नीचे हैं यहां अनुका हौन अर्थ पश्चात्, सह ।- होता है। "अनु लक्षणवीप्सत्यम्भू त भागेषु सन्निधौ । पश्चात्-अनुपद। पैरके पीछे-पौछ । पति- सादृश्यायामहीनेषु पश्चादर्थसहार्थयोः॥" (हेम) रन्वगच्छत् ।” (रघु) राजा छायाकी तरह उसके पीछे- क्रिया और सज्ञासे पहले लगने पर यह पौछ, पीछे चले। इस उदाहरणमें अनु पौछेके मतलबसे साथ-साथ, बगल-बगल, इधर-उधर, पास-पास, और लगा है। नौचेके अर्थ में आता है। सज्ञाके साथ प्रधानतः सह–पर्वतमन्ववसिता सेना। तृतीयाथें । पा १।४।८५ । क्रिया-विशेषणवाले समासमें इसका अर्थ बार-बार, पहाड़के साथ सारी फौज मिल गयौ। ऐसे स्थानमें बसबब, कई-कई, एक-एक, कायदे और करीनसे अनु सहका अर्थ देता है। रहता है। कर्मकारके साथ पृथक् उपसर्गको भांति (पु०) २ ययातिके एक पुत्र जिनका नाम अनु योग पानपर यह पौछ, साथ-साथ, ऊपर, पास-पास, रहा। इन्हों अनुसे म्लेच्छ जाति उत्पन्न हुयी थी। से, को, तर्फ, पर, बसबब, कायदे में और मुवाफिक का ऋग्वेदमें अनु वंशका उल्लेख उठा है,- “यदिन्द्राग्नी यदुषु मतलब रखता है। पृथक् क्रिया-विशेषणको भांति तुर्वशेषु बद्रुह्यष्वनुषु पुरुषु स्थ: । (१।१०८१८) इसका माने पौछ, पौछेसे, उसपर, फिर, आगे, तब ३ मनुष्य, आदमी। ४ म्लेच्छ । और दूसरे निकलता है। अनुक (सं० त्रि०) अनुकामयते, अनु-कन् । अनुकाभि- लक्षण-शाकल्यस्य संहितामनुप्रावर्षम् । अनुलक्षणे । काभौकः कमिता। पा ५॥२।७४ । कामुक, कमिता, कामी, पा १।४।८४ । शाकल्यमुनिके 'संहिता पाठसे पानी नक्सपरस्त, पुरशहबत, मस्त ।- बरसा। इस जगह संहितापाठका हेतु वर्षण 'कामुके कमिताऽनुकः।' (अमर) उपलक्षित है। अनुकथन (सं. क्लो०) संयत वचन, कायदेको इत्यम्भूताख्यान-साधुर्देवदत्तो मातरमनु। देवदत्त गुफ्तगू, वर्णन, बयान, वार्ता, बातचीत, खासी माताके तयों साधु है। मतलब यह, कि देवदत्त कहावत। माताके तयीं साधुत्वरूप धर्मविशिष्ट रहता, जिससे अनुकथित (स. त्रि.) नियमित रूपसे वर्णित, इत्यम्भूताख्यान देखाता है। कायदेसे बताया गया। भाग-यदत्र मामनु स्यात् । लक्षणत्यम्भ ताखयानभागवीसासु अनुकदली (स. स्त्री०) काशवण, कांसको घास। प्रतिपर्यनवः । पा १।४।१०। मेरे लिये ऐसा रहे। यहां अनु | अनुकनखलम् (सं० अव्य० ) कनखलस्य अद्रेः समोपे। भागके भावसे भरा है। अनुयंत समया। पा ॥१॥१५॥ कनखल पहाड़के पास। यह 112