पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४५५

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1 ४४८ अनुकृत-अनुक्रमणौ अनुकृत (स० वि०) अनुकार किया हुवा, नकल उपक्रमणिका, दीवाचा। अनुक्रमणिका एक तरह- उतारा गया। का सूचीपत्र है। इसमें प्रत्येक सामका प्रथम शब्द, अनुकृति (सं० स्त्री०) अनु-व-क्तिन्। अनुकरण, सामकी संख्या, ऋषि, देवता और छन्दका नाम “सदृशीकरण, नकल, कापी। उल्लिखित है। सामवेदको अनुक्रमणीको 'सर्वानु- अनुक्कत्य (स त्रि०) अनुकरण करने योगा, नकल क्रमणी' कहते हैं। उतारने काबिल। ऋग्वेदको अनुक्रमणी कात्यायनने बनायी थी। अनुकृष्ट (सं० त्रि०) अनु-कृष-क्त । १ आवष्ट, खिंचा इसके टीकाकार षड्गुरुशिष्यने वेदार्थदीपिकामें लिखा हुवा। २ अनुवृत्त, पूर्व नियममें सम्मिलित या है, कि कात्यायनसे भी पहले एक अनुक्रमणी रही संसाधित, जो पिछले कायदेमें मशमूल हो। उसमें वेदमन्ववाले ऋषियों के नाम, छन्द, देवतावोंके अनुक्त (स' त्रि०) न उक्तम् । अनभिहित, अकथितं, नाम, अनुवाक, ऋग्वेदके प्राचीन सूक्त और सामका बयान् न दिया गया, बेकहा। व्याकरणके मतमें सब विवरण मिलता था। षड्गुरुशिष्यका कहना हैं, बात तिङ्, कृत्, तद्धित और समाससे कही कि आर्षानुक्रमणी, छान्दसी, दैवती, अनुवाकानु जाती है। क्रमणी और सूत्रानुक्रमणीको शौनकन बनाया है। अनुक्ति (सं० स्त्री०) अनुक्त वचन, बेकही बात, किन्तु अब शौनकको बनायी केवल अनुवाकानुक्रमणी अनसुनी। ही मिलती है। यह पद्यका ग्रन्थ है। कात्यायनको अनुक्थ (वै० त्रि.) नास्ति उकथं स्तोत्रं यस्य, अनुक्रमणो सूत्रको तरह संक्षेपसे गद्यमें लिखी गयौ नज-बहुव्री। पातृतदिवचिरिचिसिचिभ्यस्थक् । उण २।७। है। किन्तु षड्गुरुशिष्य और सायणाचार्य के समय १ भजनहीन, बेगौत, जिसका गुण न गाया जाये। अर्थात् सात आठ शत वत्सर पूर्व लगभग सकल अनु- २ भजन न गानेवाला, जो गीत न गाये। क्रमणी विद्यमान थीं। कारण, देखने में आता कि, अनुक् थ्य (वै० वि०) उक थ-यत्, न उक्तमहति, षड्गुरुशिष्य शौनकरचित देवानुक्रमणौसे प्रमाणादि दे न-तत् । छन्दांसि च । स्तुतिके अयोगा, अप्रशस्य, गये हैं। सायणाचार्य ने भी अपने वेदभाष्यके मध्य तारीफ़के नाकाबिल, जिसको प्रशंसा पड़ न सके । शौनकको आर्षानुक्रमणी और बृहद्दवतानुक्रमणीसे अनुक्रकच (स त्रि०) दन्तविशिष्ट, दन्दांदार, दंतौला, अनेक स्थान उद्धृत किया है। आर-जैसे दांतवाला। ऋग्वदको सर्वसमेत सात अनुक्रमणीका नामो- अनुक्रम (सं० पु.) अनुगतं क्रमम्, अतिका तत् । ल्लेख मिलता है। इनमें पांच शौनक, एक कात्यायन १ अनुगत. क्रम, पिछला सिलसिला, पौछेको तरतीब । और एक निश्चित नहीं, किसको बनायी है। अनु- २ संयत सूची, सिलसिलेवार फेहरिस्त। (अव्य०) क्रमणौ यद्यपि यथार्थ हो शौनकको बनायौ और इस क्रमपर, नियममें, आदेशसे, सिलसिलेवार, बकायदे, ग्रन्थ के परवर्ती लोगोंने चाहे नूतन विषय न भी मिलाया तरतीबको देखकर। हो, तथापि प्रमाण पाते हैं, कि शौनकने यास्कके अनुक्रमण (सं० लो०) नियमित प्रवाह, कायदेको बाद जन्म लिया था। कारण, बृहद्देवतामें आख- रविश, जो चाल ठीक निकले २ पीछेका चलना। लायन, ऐतरेयक, कौषीतकी, भालवि ब्राह्मण, अनुक्रमणिका, अनुक्रमणीः (सं० स्त्री०) अनुक्रम्यते निदानग्रन्थ, शाकल, वास्कल, मयूक, श्वेतकेतु, गालव, -यथोत्तर परिपाठ्याः आरभ्यतेऽनया, अनु-क्रम-करणे गागा रथौतर, राथन्तरी, शाकंटायन, शाण्डिल्य, ल्य ट। स्त्रीत्वात् ङौप् खार्थे कन् हवः। १ ग्रन्थ रोमकायन, स्थावीर, शाकपूनि, और्णभाव, यास्क विशेषका आनुपूर्व. पाठादि ज्ञापक परिच्छेद अथवा प्रभृति अनेक नाम. मिलते हैं। इसीसे बोध होता, प्रातिशाख्य, सूचीपत्र, फेहरिस्त । २. भूमिका, कि बहुद्देवता यास्कसे पोछे लिखी गयी है। ।