पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४५८

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पा शशा अनुग्रह-अनुच्चार ४५१ असमर्थ, शान्तस्वभाव, जो तबीयतका टेढ़ा न हो, । अनुग्राहित .(सं० त्रि०) उपकृत, जिसपर नेवाजिश सीधा-सादा, भोला-भाला। देखायी गयी हो। अनुग्रह (सं० पु.) अनु-ग्रह-अप्। ग्रहनिशिगमश्च । अनुग्राहिन् (सं० त्रि.) अनुकम्पा पहुंचानेवाला, जो दुःखके दूर करनेको इच्छा, तकलीफ नेवाज़िश रखे। मिटाने की खाहिश, प्रसन्नता, आनुकूल्य, मेहरबानी, | अनुग्राही, अनुयाहिन् देखो। नेवाजिश। २ अनिष्टका निवारण निकाल इष्टका अनुग्राह्य (सं० वि०) अनु-ग्रह ण्यत्। अनुग्रहके साधन, तकलीफको मिटा खु.हिशका पूरा करना, योग्य, नेवाज़िशके काबिल । प्रसाद। ३ पश्चादरक्षा, पौछ की हिफाजत । अनुघात (सं० पु०) विनाश, मारण, संहार, मार, चोट । ४ दरिद्रादिका प्रतिपालन, गरीब वगैरहको पर अनुचर (सं० त्रि.) अनुचरतीति, अनु-चरट्-अच् । वरिश। रामतर्कवागीशने अनुग्रहका यह उदाहरण चरेष्ट: । पाश।१०। १ सहचर, साथ चलनेवाला। दिया है, “विरुपोन्मत्तनि:खानामकुत्सापूर्वक हि यत् । २ पश्चादगामी, जो पीछे रहे। (पु.) ४ साथी, पूरण' दानमानाभ्यामनुग्रह उदाहतः ॥" हमसोहबत। (स्त्री०) अनुचरा।

अर्थात् कुरूप, उन्मत्त और निर्धन व्यक्तिको निन्दा | अनुचारक (सं० पु.) अनु-चरति, अनु-चर-खुल।

न निकाल जो प्रतिपालन पहुंचाना होता, वही १ अनुगामी, पश्चाद्गामी, पीछे चलनेवाला शख स । अनुग्रह कहाता है। ५ पुराणानुसार-पञ्चम अथवा २ सेवक, खिदमतगार। (क्लो०) ३ आनुचारिक, अष्टम कल्प, दुनियाका पांचवें या आठवें मरतबा सेवकका धर्म, सेवकका कार्य, खिदमतगारो, नौकरो। फिर पैदा होना। (त्रि.) ६ चन्द्र और सूर्य ग्रहणके (स्त्री०) अनुचारका। अनुगत, जो चन्द्र और सूर्यके ग्रहणमें शामिल हो। अनुचारिन् (सं० त्रि.) पश्चाद् गमनशील, पीछे -७ सूर्यादि नवग्रहके अनुगत, सूर्य वगैरह नौ ग्रहमें पड़ा हुवा, जो खिदमतमें हाज़िर रहे। शामिल रहनेवाला। अनुचित ( सं त्रि.) न उचितम्, नञ्-तत् । रुचिवचि- अनुग्रहकातर (सं० त्रि०) प्रसन्न बनानेका इच्छुक, कुचिकुटिभ्यः किवच । उण् ४१८५ । अपरिचित, अयुक्त, खु.श करनेका खाहिशमन्द। अकर्तव्य, गैरवाजिब, गलत, गैरमामूली, अजनवी। अनुग्रहण (स. क्लो०) अनुग्रह देखो। २ समीप, दैर्घ्य अथवा श्रेणी में स्थापित, जो इधर- अनुग्रहसर्ग (सं० पु० ) सांख्यमतसे-भावको उत्पत्ति, उधर, लम्बानमें या कतारसे रखा गया हो। तबीयतका पैदा होना। अनुचिन्तन (सं० लो०) अनु-चिन्ति-त्यु ट । अनु- अनुग्रहित अनुग्राहित देखो। स्मरण, पश्चात् स्मरण, फिक्रमन्दी। २ सर्वदा चिन्ता, अनुग्रहिन् (वै० पु०) इन्द्रजालमें निपुण व्यक्ति, फिक्रका लगा रहना। ओझा, जादूगर, साहिर, जो शख स जादू जगाने में | अनुचिन्ता (सं० स्त्री०) अनु-चिन्ति-ल्य ट्। चिन्ति- ज़ाहिर हो। पूजिकथिकुम्विच च । पा ३१०५। सतत चिन्ता, सर्वदा अनुग्राम (सं० अव्य०) ग्राम-ग्राम, एक गांवसे चिन्ता, फिक्र, गौर। दूसरे गांवतक। अनुचिन्तित (सं० त्रि.) स्मरण सटाया हुवा, जिसको 'अनुग्रासक (सं० पु०) ग्रासके तुल्य वस्तु, मुंहभर याद लगी हो। चीज। अनुच्च (सं० वि०) न उच्चम् नज-तत्। निम्न, नीच, अनुग्राहक (सं० त्रि.) १ सरल बनानेवाला, जो नौचा, निचला, जेर। किसी कामको सीधी राहपर लगा दे। २ कृपालु, | अनुच्चार (सं• घु०) उच्चारणका अभाव, तलफफुजका दयालु, मेहरबान । न तड़कना।