पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४६

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- ४४ अक्रीड़-अक्लिन्नवर्त्म अकौड़ (सं० वि०) १ जो कौडाविहीन हो । (पु०)। दुर्भिक्ष, अकालमृत्यु इत्यादि उपद्रव होने लगे। सबने २ कुरुथामके पुत्रका नाम। अकोड़के चार पुत्र थे निश्चय किया कि, जहां अकर रके पिता वफल्क रहते पाण्ड्य, केरल, कोल और चोल। यह लोग दक्षिण हैं, वहां यह सब दुर्घटनाएं नहीं होती। अक्रू र भी उन्हों पुण्यात्माकै सन्तान हैं। उनके भारतमेंः पाण्डा, कोल और केरल प्रदेशके राजा हुए। हारका (हरिवंश) चोल लोगोंका भी वहां बड़ा बल छोड़कर चले जानेमे ही यह सब दुर्घटनाएं आ उप- था, यह लोग पाण्ड्य लोगोंसे भी अधिक शक्तिशाली स्थित हुई हैं। अतः सब लोग फिर अकरको द्वारकामें थे। इतिहासमें कोल और केरल इतने विख्यात लाये । किन्तु श्रीकृष्णको इस बातपर विश्वास न हुआ। नहीं है, जितने पाण्ड्य और चोल हैं। उन्होंने यही समझा, कि अकरके पास निःसन्देह स्यम- अक्रूर (स• त्रि०) जो क्रूर अर्थात् टेढ़ा या बुरा न्तकमणि है। उसी मणिक प्रभाव में जहां अक्रूर न हो। १ सरल । २ दयालु । ३ सुशील। ४ कोमल । रहते हैं, वहां अनावृष्टि आदि दुर्घटनाए नहीं होती। ५ सौधा। (पु.) ६ वफल्क और गान्दिनौके पुत्तु इसी कारण श्रीकृष्णने एक दिन यादवांक मामने अक्रूर- एक यादव, जो श्रीकृष्णके काका लगते थे। इन्हीं के से.कहा कि, शतधन्वा राजा तुम्हारे पास जो स्यमन्तक- साथ श्रीकृष्ण-बलदेव मथुरा गए। सत्राजित्को स्यम- मणि रख गये थे, उसको एकबार हमें दिखलाओ। न्तक मणि लेकर यह काशी चले गए थे। पुराणोंसे अक्रूर इनकार न कर सके, कपड़े के भीतरसे मणिको ज्ञात होता है, कि खफल्क बड़े ही पुण्यवान् थे। निकालकर दे दिया। किन्तु श्रीकृष्णजीने मणि लो जहां वह रहते, वहां आधिदैविक और आधिभौतिक नहीं, अक्र रको ही लौटा दी। इसके पीछे अक रजी ताप न प्रकटित होते थे। एकबार काशीराजको निःशङ्क होकर इस मणिको सदा धारण किये रहते थे। भूमिमें सातिशय अनावृष्टि और दुर्भिक्ष फैला हुआ अक्र रेश्वर (सं० पु०) नर्मदा नदीके उत्तर तटका एक था। वफल्ककै लाते ही सारा अमङ्गल दूर हो गया। प्रदेश विशेष । इसका आधुनिक नाम अखलेश्वर है। काशीराजने अपनी कन्या गान्दिनी वफल्कके साथ अक्रोध (सं० पु०) क्रोधराहित्य। क्रोधका अभाव । व्याह दी। पौछ अक्रूरका जन्म हुआ। पहले अक्रूर क्षमा। दया। सहिष्णुता । गार्हस्थ्य १० धामस एक। कसके यहां रहते थे और कंसके धनुर्यज्ञमें वृन्दा- धृतिचमादमोम्नेय भाचमिन्द्रियनिग्रहः । वनसे श्रीकृष्ण-बलदेवजौको लाने भी गए थे। जब शत- धार्विदा सत्यमनीधी दशक धम्मन चांगाम ॥ ( मनः) धन्वाके साथ श्रीकृष्णको शत्र ता उत्पन्न हुई, तब अक्रोधन (सं० पु०) कुरुवंशक अयुतायुम्का पुत्र । उन्होंने स्यमन्तकमणि छिपाकर चुपचाप अक्रूरको अक्ल (अ॰ स्त्री०) बुद्धि। समझ । ज्ञान। बहुत लोग सौंप दी। शतधन्वाके मरनेपर अवर स्यमन्तक भूलसे अकल पढ़ते हैं, अकलका अर्थ अरबो में 'छोटा' मणिको कपड़ेमें छिपाकर रखा करते थे। कहा गया होता है। है, कि इस मणिसे नित्य ढेरका ढेर सोना उत्पन्न अक्लम (सं० पु०) श्रमाभाव । (त्रि०) श्रमशून्य । होता और गान्दिनौ-नन्दन इस धनसे नित्य याग अल,मन्द (फा० पु०) चतुर, बुद्धिमान । सयाना। यज्ञका अनुष्ठान करते थे। पुराणों में ऐसा भी लिखा अल्लमन्दी (फ़ा॰ स्त्री०) चातुर्य । बुद्धिमानी। समझ- है, कि जिस जगह यह स्यमन्तकमणि रहती, दारी। चतुराई । सयानापन। विज्ञता। उस जगह दुर्भिक्ष, अनावृष्टि, अकालमृत्यु प्रभृति अक्लान्त (सं० त्रि.) लान्तिहित । कोई भी दुर्घटना न होती थी। एकबार अकरके ग्लानिशून्य। भोज-वंशीय कितने ही लोगोंने सात्वतके प्रपौत्र अल्लिका-(सं० खौ०) नौलो नामक वृक्षविशेष । (पड़पोता) शत्रुघ्नको मार डाला था, इसी डरसे अक्रूर अक्लिन्नवम (सं० पुं० ) एक नेत्ररोग, जिसमें पलके । द्वारका छोड़कर भाग गये। इधर द्वारकामें अनावृष्टि, चिपकती हैं। अनवसत्र।