पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४६०

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२ तिलसे अनुज्ञात-अनुत्तम ४५३ अनुज्ञात (सं० त्रि.) अनु-जा-त। १ कृतानुन, अनुताप ( स० पु०) अनु-तप घज । १ पश्चात्ताप, मर्जी पाये हुवा, जिसे अनुमति दे दी गयी हो। अफ़सोस, पछतावा । २ उष्णता, गर्मी, तपिश । २ स्वीकृत, मजूर, फ.रमाया गया। ३ प्रतिष्ठित, अनुतापन (स० त्रि०) पश्चात्ताप पहुंचानेवाला, जो अधिष्ठित, सम्मानित, इख तियारयाफता, इज्जत पाये दुःख दे, पुरअफसोस, जिसे देखके पछतावा पड़े। हुवा, जिसे बड़ाई मिल चुकी हो। ४ गमनार्थ आज्ञा- अनुतापिन् (सं० त्रि०) पश्चात्ताप पालते हुवा, प्राप्त, जिसे छोड़नेको हुक्म मिला हो, खारिज किया पछतावेमें जो पड़ा हो। गया, निकाला हुवा।- अनुतिल (सं० त्रि.) अनुगतं तिलम्, गति-स। "ज्येष्ठो भाता यदा तिष्ठ दाधानं नेव कारयेत् । १ तिलानुगत, तिलका, तिलसे भरा हुवा । अनुज्ञातस्तु कुर्वांत शङ्कास्य वचनं यथा ॥” (उशना) उत्पन्न, जो तिलसे पैदा हुवा हो। (अव्य.)३ तिल- अनुज्ञापक (स० पु.) आदेश अथवा अनुमति तिल, यव-यव, बाल-बाल, रत्ती-रत्ती, ख ब होशियारौ. देनेवाला व्यक्ति, जो शख स हुक्म चलाये या ताकीद से, बड़ी बारीकीपर। लगाये। अनुतिष्ठमान (स त्रि०) पीछा करते हुवा, जो अनुज्ञापन (सं० क्लो०) आदेश, आज्ञा, हुक्म, पोछे पड़ा हो, अञ्जाम देनेवाला, जो पूरा उतारे, इखू तियारदिही। हाजिरबाश, उपस्थित । अनुज्ञाप्ति (स. स्त्री०) अनुज्ञापन देखो। अनुतुन्न (वै• त्रि.) दबा हुवा या दबाया गया, अनुज्ञा-प्रार्थना (स'. स्त्री०) आदेश प्राप्त करनेका जिसको आबाज बन्द कर दी गयी हो। विनय, हुक्म पानेको अर्ज। अनुतूलन (सं० क्लो०) तूलेनानुकुष्णाति । तृणाद्यग्र अनुज्ञषणा (स० स्त्री० ) अनुज्ञा-प्रार्थना देखो। तूलेनानु-घट्टयति। (वाच०) अनु-तूल-अनुकोषणे- अनुज्येष्ठ (सं० त्रि.) अनुगतं ज्यष्ठम्, प्रादि-स। णिच-भावे ल्युट । तूल द्वारा तृणादिके अग्रभागका १ ज्येष्ठके अनुगत, जो बड़ेके ही पीछे का हो। निकालकर देखा जाना, बजरिये पैमाने घास वगैरह- (अव्ययी०) २ ज्येष्ठको उल्लङ्घनकर, बुजगौसे आगे के अगले हिस्मेको आज़मायश । बढ़कर। अनुल्क (सं० त्रि०) न उत्कम्, नञ्-तत् । उल्क उन्मनाः । अनुतक (स. क्लो०) तक्रानुपान, जो मठा दवाके पा ५।८। अनुत्कण्ठित, स्वस्थ, अनुत्सुक, अनुन्मना, साथ दिया जाये। नावाहिशमन्द, आरामसे बैठा हुवा, जो शौक न अनुतप्त (सत्रि०) १ तपा हुवा, तपाया गया। रखे, बेदिल । २ दुःखसे भरा, अफ.सुर्दा, गमजदा । अनुत्कर्ष (स० पु०) न उत्कर्षः, अभावार्थे नज्-तत् । अनुतर (स० ली) अनुतीर्यते अनेन, अनु-तृ-करणे १ उत्कर्षाभाव, श्रेष्ठताभाव, खुर्दी, पश्ती, छोटाई। अप् । नदीपारके निमित्त दातव्य शुल्क, दरया पार | अनुत्क्लेश (सं० पु०) उत्क्ल शाभाव, बीमारीका करनेको दी जानेवाली उतराई, किराया, महसूल । न पड़ना। अनुतर्ष (स'• क्लो०) अनुष्यते अनेन इदं वा करणे अनुत्त ( स० त्रि०) न-उन्दी-क्त । नुदविदोन्दवाघ्राशीभ्यो- कर्मणि वा घञ्। १ मद्यपानका पात्र, शराब पीनेका ऽन्यतरस्याम्। पा ८(२०५६। १ अल्लिन, लोदरहित, जो गिरा प्याला। २ मद्य, शराब । ३ मद्यपानका अभिलाष, न हो, न जीतने काबिल । नुद-ता, नज-तत्। शराब पौनेका शौक। ४ पानेच्छा, तृष्णा, पौनेको २ अनुन्न, अप्रेरित, न भेजा हुवा, जो पहुचाया न खाहिश, प्यास। गया हो। अनुतर्षण (सं. क्लौं०) १ मद्यपानपात्र, शराब पीनेका अनुत्तम (स त्रि. ) नास्ति उत्तमं यस्मात्, ५. प्याला। २ मद्यवितरण, शराबका दौर। बहुव्री०। १ अति उत्कष्ट, निहायत -114 उमदा, जिससे