पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४६१

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४५४ अनुत्तमाम्भस्-अनुत्साह बढ़िया कुछ न मिले। २ सर्वोत्तम नहीं, जो सबसे बिद्ध शिरा, जो शिरा उठी न हो, खराब जगहकी अच्छा न हो। ३ व्याकरणमें उत्तमपुरुषपर अव्यव बन्दिशसे कांपने और ख नका फितूर उठानेवाली हृत, जो उत्तम पुरुषमें न लगे। नाड़ी, दुःस्थानके बन्धनसे कांपती हुई शिरा जो "सर्वद्रव्येषु विद्यैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम् । शोणित-सम्मोह लगाती है। आहार्यत्वादनत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा ॥" (हिपोपदेश) अनुत्पत्ति (सं० स्त्री०) न उत्पत्तिः अभावार्थे नञ्- अनुत्तमाम्भस् (सं० क्लो०) सांख्य मतसे-इन्द्रिय तत्। उत्पत्तिका अभाव, पैदाका न होना। सुखके प्रति विरक्ति और विद्देष, दुनीयावी आरामसे अनुत्पत्तिक (स० त्रि०) नास्ति उत्पतिः यस्य, बेपरवायो देखाना और परहेज़ रखना। नञ्-बहुव्री० । उत्पत्तिशून्य, जन्मरहित, लापैद, जो अनुत्तमाम्भसिक, अनुत्तमाम्भस् देखो। पैदा न हो। अनुत्तर ( स० त्रि०) नास्ति उत्तरः परतरो यस्मात्, अनुत्पत्तिकधर्मक्षान्ति ( स० स्त्री०) बौद्धमतानुसार, नत्र -५-बहुव्री। १ अत्यन्त श्रेष्ठ, निहायत उम्दा। भावी अवस्थाको तुष्टि, आयन्दा हालतके लिये ६-बहुव्री। २ उत्तररहित, लाजवाब। ३ अपकृष्ट, कृनात। नकारा। न उत्तरति चलति, उद-तृ-अच्, नत्र -तत्। अनुत्पत्तिसम (सं० पु०) न्यायमतसे-किसी विषय- ४ स्थिर ठहरा हुवा। ५ प्रधान, स। ६ मौन, पर यह दिखानेकी चेष्टा चलाते हुये वितर्क बढ़ाना, खमोश, चुपका । ७ दक्षिणका, दाक्षिणात्य-सम्बन्धीय । कि वैसी कोई चीज नहीं मिलती, जिससे वह (क्लो०) ८ अयोग्य उत्तर, नाकाबिल जवाब, जो जवाब निकल सके। धोकेसे दिये जाने पर जवाब न समझा जाये । (पु.) अनुत्पन्न (सं० त्रि.) न उत्पन्नम्, नज-तत् । जैन-देवविशेष, जैनियोंके एक खास देवता। (स्त्री०) १ उत्पन्न नहीं, अजन्मा, उत्पन्न न होनेवाला, लापैद, १० उत्तर-विरुद्ध दिक्, जो दिशा उत्तर न हो, दक्षिण, जो पैदा न हो। २ अप्रतिहत, असमाप्त, असर न जनब। पड़ा हुवा, पूरा न किया गया। अनुत्तरयोगतन्त्र (स' लो०) बौद्धतन्त्रकै अन्तिम अनुत्पाद (सं० पु०) न उत्पादः उत्पत्तिः, अभावार्थे चार तन्त्रको उपाधि का नाम । नत्र-तत्। १ उत्पत्तिका अभाव, पैदा न होना । अनुत्तरङ्ग (सं० त्रि.) उद्गतस्तरङ्गो वोचिश्चाञ्चल्य २ प्रभावका न पड़ना, असरका न आना। (त्रि.) वा यस्मात्, प्रादि-बहुव्री० ; ततः नञ्-तत् । अनुदगत ३ उत्पत्तिशून्य, बेपैद। तरङ्ग, ऊपर न उठी हुयी लहरवाला, अचञ्चल, अनुत्पादक्षान्ति (स. स्त्री०) पुनर्जन्म न पानेको जो न चले। तुष्टि, दुबारा पैदा न होनेको खुशौ। अनुत्तरोपपातिकदशा ( स० स्त्री०) जैनशास्त्र-विशेषका | अनुत्पादन (स० क्लो०) उत्पत्तिका अभाव, पैदाका न पड़ना। अनुत्तान (सं० त्रि.) न उत्तानम्, विरोधे नञ्-तत्। अनुत्पाद्य (सं० पु.) उत्पादनके अयोग्य, जो उत्तान नही, अवनत, अवतान, अवाङ्मुख, अधोमुख, पैदा होने काबिल न रहे, नित्य, मुदामो। मुंहभर, सरके बल। अनुत्साद (सं० पु.) न उत्साद अवसादनम्, अनुत्थान (सं० क्ली) उत्थानका अभाव, न उठना, १ अवसादाभाव, उच्छेदाभाव, बैठे रहना, निश्चेष्टता, काहिली। अखौरका न आना, टुट-फूटका न पड़ना। (त्रि.) अनुस्थित (स० वि०) न उठा हुवा, जो निकला २ उच्छे दशून्य, अटूट, जो उखड़-पखड़ न पड़े। न हो। अनुत्साह (सं० पु०) न उत्साहः, अभावार्थे नज- अनुस्थितविद्या, अनुत्थितशिरा (सं. स्त्री०) उभरी और तत् । १ उत्साहका भाव, हौसले का न होना। नाम। अभावार्थे नञ्-तत्।