पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४६२

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फैलना। अनुत्साहता-अनुदात्तेत् ४५५ (त्रि.) नञ् -बहुव्री। २ उत्साहशून्य, बेहौसला, | अनुदय (स.पु.) उदयका अभाव, न निकलना, जिसका दिल किसी बातपर बढ़ता न हो। दिखायो न देना। अनुत्साहता (सं० स्त्री०) अनुत्साहकी स्थिति, अनुदर (सं० त्रि.) न अल्प उदरं यस्य, अल्पार्थे हौसला न होने की हालत । नञ्-बहुव्री०। (स्त्री० ) १ अल्पोदरशाली, कृशोदर, अनुत्सित ( स० त्रि०) न उत्सित गवितम् । अगर्वित, जिसका पेट बड़ा न हो। २ कृश, दुबला-पतला। बेफख र, घमण्ड न घसीटनेवाला, सीधा-सादा। (स्त्री०) अनुदरा। अनुत्सुक ( स० त्रि०) न उत्सुकम्, नञ्-तत् । अनुदर्शन ( स० लो० ) अनु दृश-ल्यु ट। अनुचिन्तन, उत्सुकभिन्न. उत्कण्ठाशून्य, बेहौसला, बेख़ाहिश, अनुस्मरण, याददाश्त, फिक्रमन्दी, पश्चात् अथवा जिसे लगी न हो। २ अननुरक्त, अव्यग्र, मातदिल । सर्वदा चिन्ताका चढ़ाना, पीछे या हमेशा फिक्रका अनुत्सुकता (सं० स्त्री०) उत्सुक रहने का अभाव, बेहौसलेमन्दी, बेदिली। अनुदर्शिन् (सं० त्रि.) विचार बांधते हुवा, ख.याल अनुत्सूत्र (सं० त्रि.) उत्क्रान्तं सूत्रम्, अतिक्रा०. लड़ानेवाला, जो आगेको बात सोच रहा हो। तत् ; ततः नत्र-तत्। सूत्रके अनुरूप, रौतिके अनु अनुदात्त (सं० पु.) उद् अव॑ आत्तः उच्चार्यत्वेन सार, सूत्रयुक्त, बाकायदा, बारस्म, बंधा हुवा । गृहीतः अच् उदात्तः, न उदात्तः, विरोधे नञ्-तत् । अनुत्सेक (सं० पु०) उत्सेकका अभाव, धृष्टताका उच्च रुदात्तः। पा १।२।२६ १ उदात्त नहीं, जो ऊंचा न हो, न धमकना, गुस्ताखौका न गुज़रना। उठाया न गया, बुलन्द न रहनेवाला।स्वर तीन प्रकार अनुत्से किन् ( स० त्रि०) उत्सेकशून्य, धृष्टतारहित, सुनते हैं, उदात्त, अनुदात्त और स्वरित। मुखके जो गुस्ताख. न हो, घमण्ड न घसौटनेवाला। भोतर तालु प्रभृति स्थानके ऊर्ध्व भागसे जिन सकल अनुद (सं० त्रि०) न नुदति ; नुद-क, नज-नत् । खरका उच्चारण उठता, वह उदात्त कहलाते हैं। १ अप्रेरक, न भेजनेवाला, जो किसीको न पहुंचाये। मुख में तालु प्रभृति स्थानके निम्नभागसे निकलनेवाले अनु तुल्यं ददाति, अनु-दा-क। २ तुल्यरूप दाता, सकल वर अनुदात्त समझ जाते हैं। जिस शब्दके बराबर सूरत बख शनेवाला। उच्चारणमें उदात्त और अनुदात्त यह दोनो धर्म मिलें, अनुदक (स० त्रि०) नास्ति उदकं जलं यत्र, नज उसका नाम स्वरित रखा गया है। मतलब यह, कि बहुव्री। जलशून्य, बेपानी, जहां पानी न पायें। जिससे पहले अर्धमात्रा उदात्त और पीछे अर्धमात्रा अल्पाईं नज-तत्। २ अल्पजलस्थायौ, थोड़े पानी में अनुदात्त रहती, उसे स्वरित समझते हैं। उदात्तादि ठहरनेवाला। ३ उदकदान-विशेष रहित, जिसमें संज्ञा स्वरवर्णको ही पड़ती है,- ज्यादातर पानीका काम न पड़े। “उदात्तथानुदात्तय स्वरितश्च स्वरास्त्रयः । अनुदन (सं० त्रि.) न उद्गतं गर्वेण ऊर्ध्वं पूर्णितं दौर्षो स्वः प्नुतचे ति काजतो नियमस्त्वचि ।” (शिक्षाशास्त्र) अग्रं मस्तकं यस्य, नञ् बहुव्री । १ ऊंचा नहों, नौचा, अर्थात् उदात्त, अनुदात्त और स्वरित-यही तीन अनुच्च, पश्त । २ न उभरा हुवा, जो ऊपर न उठा हो। प्रकारके स्वर सुनते हैं। कालवशतः अच् वर्णके इख, ३ मृदु, अतीक्ष्ण, मुलायम । नास्ति उदग्रो यस्मात् । दीर्घ और प्लुत-यह तीन नाम रखे जाते हैं। .४ अत्युन्नत, निहायत सरफ.राज। ५ अति उत्कट, अनुदात्ततर (सं० पु०) अनुदात्तसे अधिक, अनु- 'बहुत बेढब । ६ अति उद्धत, हदसे ज्यादा मगरूर । दात्तसे जो शब्द बोलने में हलका रहे। "उंदग्रदशनांशुभिः ।" (माघ० ०२१) अनुदात्तादि (सल ली.) नाममात्रका प्राधार अनुदत्त (सं. दिया हुवा, जमा किया गया, जिसका प्रथम शब्दखण्ड अनुदात्त रहता जो वापस पहुंचा हो। अनुदात्तेत् (सं० पु.) क्रिया-सम्बन्धीय RAM