अक्षपटल-अक्षपाद मांस. काडलिवर-आयल (एक प्रकारको मछलीक । फूलेको अच्छी तरह उठा लिया है; जब इसका कलेजेका तेल) और माल्ट इत्यादि। खानेकी रस पककर खड़ोको भांति हो जायगा, तब अस्त्र- औषध-सिरप आव फेरी आओडिड १० विन्दु प्रयोग करेंगे। एक बार नश्तर लगानेसे यदि लाभ आधा छटांक पानी में डालकर रोज दो बार पीना न हुआ, तो जान लो, कि आरोग्य होनेको आशा चाहिये। अथवा २ रत्ती आयोडिड आव पोटास, गई। किसी-किसीका फूला बिना दवाके हो आपसे २ रत्ती बोमाइड आव पोटास और आध छटांक आप कम हो जाता है. कुछ दिन पौछे फिर बढ़ने कालंबोका फाण्ट एकमें मिलाकर रोज दो बार लगता है। सेवन करे। आंखके भीतरी प्रयोगके लिए कोई होमिओपेथो—जो आंख उठनेके बाद फूला पड़ा ५ या १० बूंद टिचर आयोडिन आध छटांक हो, तो १२ डाइलूशन बेलोडोना एक बूंदके हिसाबसे गुलाबजल में मिलाकर नित्यप्रति १० बूंद पीड़ित पानीके साथ दिनमें दो बार सेवन करे। ३० डा. आखोंमें डालनेको राय देते हैं। कोई-कोई आध सलफर, ३० डा० फसफोरस, १२ डा० कानाविस,१२ छटांक निर्मल जलमें आध रत्ती एट्रोपिया मिलाकर, डा० कालकेरिया, १२ डा. केनायम, ६ डा० यूफे- दो बूंद प्रति दिन या ४-५ दिनके अन्तरसे सिया और १२ डा. सिलिसिया प्रभृति औषधोंके आँखोंमें डालनेकी बात कहते हैं। इसके द्वारा सेवनसे उपकार होता है। होमिओपेथी में एक समय आँखका तारा फैल जाता है ; इससे फूला पड़ो आखा- एक ही औषध सेवन करनेको रीत है। से दिखाई पड़ता है । एट्रोपिया विष वेलोडोनाके वैद्यक-आखोंके भीतर लगाने के लिये चन्द्रोदय- वीर्यसे प्रस्तुत होता है; इसलिये इसको सेवन न वर्ति का बताई गई है। हरितको (हरड़), बच, कुटकी, करना चाहिये। पोपल, काली मिर्च, बहेड़ेका गाभा (मज्जा), शङ्ख जबतक दो आँखोंमेंसे एकमें भी ज्योति रहे, नाभि, मैनफल-यह सब औषधिया बकरौके दूधमें तबतक फलेमें नश्तर न लगाना चाहिये। क्योंकि पौसकर बत्ती बना ले और रोज पत्थरके ऊपर बकरीके एक आँखका फूला निकालनेकी चेष्टा करनेसे दूधसे इस बत्तीको घिसकर आंखोंमें लगाये। दोनो आखें मारी जा सकती हैं। यह बात चन्द्रप्रभावति, चन्दनाद्यावर्ति और नयनसखा निश्चित नहीं, कि अस्त्र प्रयोगसे फूला दूर हो हो वर्ति से भी कभी-कभी उपकार होता है। जाता है। अक्षपरि (सं० पु०) हारका पासा । जिस पासेके पड़ने- अस्त्र प्रयोगके दो भेद हैं। एक तो यह, कि फलेके से हार हो, पासको वह स्थिति, जिससे हार सूचित नीचेको पतली झिल्ली में छेद करके फूलेका रस भीतर होती हो । (अव्य०) जुआ खेलने में हार। हो डुबा देना और दूसरे अस्त्र द्वारा फूलेका परदा अक्षपाटक (सं० पु०) अर्थ या सम्पत्तिशास्त्रज्ञ। व्यव- निकाल लेना। पहले उपायमें बड़ी विपद् है। फूलेका हार जाजनेवाला। पानी या रस भीतर डुबा देनेसे असह्य जलन उत्पन्न अक्षपाद (सं० पु०) १ सोलह पदार्थवादौ । न्यायशास्त्र- हो सकती है। इसलिये जकलके कोई विज्ञ प्रवर्तक गौतम ऋषि । (बहुव्रो) २ तार्किक । ३ नया- चिकित्सक ऐसी चिकित्सा नहीं करते। हमारे देशक यिक। महर्षि वेदव्यासने गौतम-प्रणीत न्यायशास्त्र- सठिये यही उपाय जानते हैं, वह फूलेका रस को निन्दा की थी, इसलिये उन्होंने प्रतिज्ञा की, कि आंखके भीतर डुबा सकते हैं, ऊपर उठाकर ला वह व्यासका मुख न देखेंगे। पौछ जब वेदव्यासने ! नहीं सकते। फिर, सभी सठिये एक कृत्रिम उन्हें प्रसन्न किया, तब उन्होंने चरणमें नेत्र उत्पन्न परदा लाकर रोगीको बहला देते हैं, और नेत्र में करके उन्हें देखा अर्थात् नेवसे न देखनेको अपनी (अस्त्र प्रयोग करने के बाद उसे दिखाकर कहते हैं, कि प्रतिज्ञा अटल रखी। गौतम देखो।