पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५०१

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४६४ अनुवादक-अनुविधायिन् भट्टोजिदीक्षितने इस सूत्रके अनुवाद शब्दका अर्थ , अनुवासनक, अनुवासन देखो। 'सिद्धस्योपन्यास लिखा है। अनुवासनवस्ति (स० पु.) स्नेहवस्ति, मात्रावस्ति, अनुवादक (स त्रि०) अनुवदते, अनु-वद्-खुल् । पिचकारी, नल।

- १ अनुवाद करनेवाला, जो तरजुमा बनाये। २ अनु अनुवासनोपगवर्ग (सं० पु०) षडूविंशदशकनाम

वाद करानेवाला, जो तरजुमा उतराये। कषायवर्ग, एक प्रकारका काढ़ा। यथा- अनुवादित (सं० त्रि.) अनुवाद बनाया गया, "रामासुरदारुविलमदनशतपुष्पौरपुनन वायदंष्ट्रा नमन्यश्योणाका इति जिसका तरजुमा उतरा हो। दशेमानि।" (चरक सूत्रस्थान ४ ०.) अनुवादिन् (सं• त्रि.) अनुवदते, अनु-वद-णिनि। अनुवासाख्य (सं० पु.) अनुवासन देखो। १ अनुवादकारक, तरजमा करनेवाला। अनु-वद- अनुवासित (स. त्रि.) अनु-चु• वस-णिच्-क्त।

णिच्-णिनि। २ अनुवाद करानेवाला, जो तरजुमा १ सुगन्धीकृत, बसाया हुवा, जिसमें खुशबू दी गयौ

उतराये। हो। २ वस्तिकमद्वारा चिकित्सित, पिचकारी लगाया अनुवादी (सं० पु०) स-र-ग-मके तीन स्वरमें एक स्वर । गया, जिसको दवा पिचकारीके ज़रिये हुयो हो। अनुवाद्य (सं० त्रि.) अनु-उद्यते अनु-वद्-ण्यत्। अनुवास्य (सं० त्रि.) अनु.चु. वस-णिच्-कर्मणि १ अनुकथनीय, अनुकरणीय, तरजमा किया जाने ण्यत् । : १ सुगन्धि करने योग्य, खुशब देने काबिल । वाला, जिसकी नकल उतारी जाये। (लो०) २ वस्तिकर्म हारा चिकित्साके योगा, जो पिचकारी २ उद्देश्य, इरादा। अलङ्कारिकके मतसे प्रथम अनु लगाने काबिल हो। वाद्य (उद्देश्य ) बता, पौछ विधेय बोलानेसे 'विधेयः अनुवित्त (सं० वि०) प्राप्त, हस्तगत, मिला हुवा, विमर्षदोष' आता है। यथा- दस्तयाब। "अनुवाद्यमनुक्के व न विधयमुदीरयेत्।" अनुवित्ति (स. स्त्री०) प्राप्ति, आविष्कार, याफत, अर्थात् अनुवाद्य ( उद्देश्य ) विना लगाये विधय किसी चीज़का पाना। न लाना चाहिये। अनुविद्ध (सं० त्रि.) अनु-विध्यते अनु-व्यध दि. अनुवाद्यत्व (सं० लौ०) अनुवाद द्वारा वर्णन किये १ संसृष्ट, संलग्न, लगा हुवा, जो चुभ जानेको स्थिति, वह हालत जिसमें तरजुमेके जरिये गया हो। २ पश्चाद् वेधित, पोछेसे मारा गया। बयान करनेकी जरूरत पड़े। ३ पश्चात् क्षिप्त, पौछे फेका हुवा। ४ खचित, अनुवास (सं० पु०) अनुवासन देखो। जड़ा गया। अनुवासन (सं० क्लो०) अनु-वस चुरादि णिच्-ल्युट । “सरसिजमनुविद्ध शैवलेनापि रम्यम् ।” ( शकुन्तला) १ धूपादि द्वारा सुगन्धीकरण, लोबान वगैरहसे खुश- अनुविधातव्य. ( स० त्रि०) आज्ञानुसार करणीय, बूका फैलाना। २ वस्त्रसुगन्धीकरण, पोशाकमें इत्रका हुक्मके मुताबिक तामोल किया जानेवाला। ३ वेद्यशास्त्रोक्त स्नेहादि द्वारा वस्तिकर्म, अनुविधान (स क्लो०) सम्यग्रूप आज्ञाकारिता, पिचकारीसे पतली दवाका लगाना। यह चिकित्सा फरमाबरदारी, कहनेके मुताबिक वैद्यको वस्तिक्रियाके मध्य गण्य है। कषाय द्रव्यसे अञ्जाम देना। लगायी जानेवाली पिचकारी निरूह और न हद्रव्य- अनुविधायिन् (सं० वि०) अनु. पश्चात् विदधाति वाली अनुवासन कहलाती है। प्राचीन समयके वैद्य जनयति, अनु-वि-धा-णिनि युगागमः । १ अनुविधान चमड़े या मोटे कपड़ेसे पिचकारी तय्यार करते रहे। कर्ता, फरमाबरदार। .. २ पश्चादजनक, पौछे पैदा उसके ही हारा मलद्धार, योनिमार्ग आदिमें औषध करनेवाला । ३ अनुगत, पिछ-लगा। (पु०) ४ ब्रह्माको पहुंचाया जाता था। सृष्टिके अवशिष्ट सृष्टि-कर्ता अर्थात् मरीचि, अत्रि, कर्मणि क्त। इस्तेमाल। कामका