पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५०४

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रहा हो। गमन, अनुव्याहरण-अनुशयान ४६७ अनु-वि-आख्या-भावे ल्यु ट, प्रादि० स० । १ मन्वादिका मफ़तून, लगा हुवा। कर्मधा० । २. पश्चाद्वत, पोछे अविकल अर्थप्रकाश, मन्त्र वगैरहके ठीक मानेका पड़ा हुवा। (पु.) जैन साधुविशेष, खास किस्म का इजहार। २ पश्चायाख्या, ब्राह्मणका वह भाग जो जैनौ फकीर। कठिन सूत्र, भाष्य अथवा गुह्यरहस्यको व्याख्या अनुव्राज्य ( स० त्रि०) पश्चाद्गमन-योग्य, पीछे बांधता है। जाने काबिल, जिसके पीछे पहुंचना मुनासिब रहे। अनुव्याहरणं (सं०. ली.) अनुव्याहार देखो। अनुशतिक (सं० त्रि०) सौके साथ लगा या सौसे अनुव्याहार (सं० पु०) अनु-वि-आ-हृ भावे घञ्; खरीदा गया। अनु पश्चाद् व्याहारः उक्तिः, कर्मधा० । अनुरूपो अनुशतिकादि (सं० ली.) अनुशतिकं आदि यस्य, व्याहारः, प्रादि० स० वा। १ अनुवाद, पश्चात् कथन, ६-बहुव्री० । अनुशतिकादौनाञ्च । पा ७।३।२० । तद्धितके ज इत्, 'अनुरूप कथन, तरजुमा, पीछेका बोलना, नकल । ण इत् और क इत् प्रत्यय बाद दो पदके आदि अच्को २ शाप, कोसना, धिक्कार, बददुवा, लानत । बद्धिका गुण । प्राकृतिगणमें निम्नलिखित शब्द रहते अनुव्याहारिन् । (स त्रि...) शाप देनेवाला, जो हैं,-अनुशतिक, अनुहोड़, अनुसंवरण, अनुसवत्सर, बददुवा लगाये, धिक्कार देते हुवा, जो लानत भेज -अङ्गाररेणु, असिहत्य, अस्यहत्य, अस्यहेति, वध्योग, पुष्करसद, अणुहरत्, कुरुकत, कुरुपञ्चाल, उदकशुद्ध, अनुव्रजन (सं० क्लो०) अनु-व्रज-भावे ल्युट । १ पश्चाद् इहलोक, परलोक, सर्वलोक, सर्व पुरुष, सर्व भूमि, पीछेको चाल। अनु-व्रज-युच् चलनार्थत्वात् । प्रयोग, परस्त्री, राजपुरुष, सूत्रनड़, अभिगम, अधिभूत, २ पथिक, राहगीर।.. अधिदेव, अध्यात्मन्, चतुर्विद्या, शतकुम्भ और परदार। अनुव्रज्या (स. स्त्री०) अनु पश्चाव्रजनं, अनु-व्रज- अनुशय - (सं० पु०), अनु-शो-अच्; अनु पश्चात् भावे क्यप । व्रजयजोभावे क्यम् । पा शश। १ पश्चाद्गमन, शयः शयनं येन, ३-बहुव्री०। १ अतिशयद्देष, हद पश्चादगमनरूप सेवा, पोछेकी दौड़, पोछे रहने-जैसी दरजको दुश्मनो। २ अनुताप, पश्चात् सन्ताप, पछ- खिदमत । २ गोवधप्रायश्चित्तको क्रियाविशेष । साक्षाद् तावा। गोवधके लिये कहा गया है, "क्रौत्वा विक्रीय वा किञ्चिद्यस्वेहानुशयी भवेत् । "तिष्ठन्तीष्वनुतिष्ठेत्तु व्रजन्तीष्वप्यनुव्रजेत्।" सोऽन्तर्दशाहात्तद्रव्यं दद्याच्चै वाददौत वा ॥” ( मनु पा२२२) : गायके खड़े होनेसे खड़ा रहे और चलनेसे उसके ३ पूर्वविरोध, पहलेका झगड़ा, पुरानो. अदावत। पीछे हो ले। अपालन-गोवधका प्रायश्चित्त यह है, अनुगतं शयं हस्तम्। ४ हस्तप्राप्त वस्तु, जो वस्तु "पा मेव हि तच्चर्म परिधाय स गां ब्रजेत् ।" हस्तगत हो गयी हो, दस्तयाब शै, जो चीज़ हाथ गोहत्याकारी गायका रक्तशुद्ध चर्म पहन पीछे लगी हो। ५ फलका निकटस्थ सम्बन्ध, नतीजे- पीछे घूमा करे। का लगा हुवा रिश्ता । वैज्ञानिक कर्मके कुत्सित स्त्रीके गोवधादि पाप करनेसे गोका अनुगमन : फलको अनुशय समझता, जो. कर्मसे लगा रहता और प्रभृति कितना हो कार्य निषिद्ध है। आत्माको अन्य शरीरमें जम्म दिलाता; बह अपने "वपन न क नारीणां नानुव्रज्या जपादिकम् ।” (भट्ट भवदेवकृतवचन) शुभ कर्मके फलस्वरूप पुनर्जन्म न पानेको स्वतन्त्रता अर्थात् स्त्रीके गोवधपाप करनेसे मुण्डन, गोका थोड़े ही कालके लिये भोगता है। पश्चाद्गमन और गोमती-मन्त्रका जप मना है। अनुशयक्त् (सं० वि०) पश्चात्तापयुक्तं, पछतावेमें अनुव्रत (स० त्रि.) अनु अनुकूलं सदृशं वा व्रतं पड़ा हुवा नियमः कर्म-वा यस्य । १ अनुकूल नियमयुक्त, उत्तम- | अनुशयान (स त्रि०) पश्चात्ताप करते हुवा, जो कर्मशाली, समान नियमकारी, मसरूफ, अंदी, मह, पिछतावेमें पड़ा हो।

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