पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५०६

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अनुशिष्टि-अनुषङ्ग ४६६ प्राप्त, जिसे भलाईकी बात बतायी गयी हो। अनुश्राव (वै० पु०) वैदिक कथा-वार्ता, जो बार- २ दण्डित, सजायाफ्ता। बार सुननेसे प्राप्त हो। अनुशिष्टि (सं० स्त्री०) अनु-शास्-क्तिन्। अनुशासन, अनुश्राविक (वै• त्रि.) वैदिक वार्ता-सम्बन्धीय, पश्चात् शासन, उपदेश, हिदायत, तालीम, इरशाद । जो लगातार वेद सुननेसे दिलपर जमा हो। अनुशीत (स' अव्य.) शौते विभक्त्यर्थे अव्ययी। अनुश्रुत (स. त्रि०) वैदिक वार्तासे प्राप्त, जो लगातार शौतमें, मौसम-शर्मापर, जाड़ेसे । वेदकी बात सुननेसे मालम हो गया हो। 'अनुशीलन (सौ. ली.) अनु-शौल भावे ल्युट ; अनुश्लोक (सं• पु०) महाव्रतमें गानेका सामविशेष, अनुक्षणं शोलनं आन्दोलनम्, प्रादि-स० । सतत अभ्यास, वेदका गान भेद । 'अनश्रूयते इति अनुयोकः ।' (निरुक्त ) सर्वदा आन्दोलन, प्रतिक्षण आचरण, सुदामी मुतालह, | अनुषक्, अनुषट् (सअव्य०) १ क्रमशः, बदनियमा. जो खिदमत बार-बार और दिलसे की जाये। नुसार, लगातार, सिलसिलेसे । २ एकपर एक, एकके अनुशीलनीय (स० त्रि०) सतत चिन्तनीय, पुनः बाद दूसरा। पुन: आलोचनीय, जिसका बराबर अभ्यास रखा जाये, अनुषक्त (सं० वि०) अनु षज्यते स्म, अनु-सज्ज लगातार मुतालहके काबिल, जिसकी महारत हमेशा कर्मणि क्त। संलग्न, अनुवृत्त, पूर्व सूत्रका कार्यविशिष्ट, रहना ज़रूरी पड़े। खूब सटा हुवा, पहलेको चीज़से जो मिला हो। अनुशौलित (सं० त्रि.) सतत चिन्तित, पुनः पुनः अनुषङ्ग सं• पु०) अनुषञ्जनं, अनु-सञ्ज भावे घञ् । आलोचित। १दया, मेहरबानी। २ सम्बन्ध, रिश्ता, लगाव । अनुशुचित (स. क्लो०) अनु-शुच्-भावे क्त, अनु ३ अनुवृत्ति, पहले वाक्यसे दूसरे वाक्यमें कुछ शब्दका शोचितुमारब्ध इति आरम्भार्थे क्त विकल्प किदिति वा खींचा जाना। ४ प्रधान कार्यके अधिक उद्देश्य बीच गुणः । १ पश्चात् शोक, छपतावा। (त्रि.)२ कृतानु किसी सामान्य कार्यका उद्देश्य । जैसे-भिक्षा मांगने शोचनारम्भ, छपताते हुवा। जावो, यदि देख पड़े, तो गायको भी लेते आना। अनुशोक (सं० पु.) अनु पश्चाच्छोकः, अनु-शुच-भावे यहाँ भिक्षा मांगने जाना ही प्रधान उद्देश्य है। इसमें घञ्। पश्चात् शोक, पछतावा । गायको लाना सामान्य उद्देश्य मिला, जिससे गायको अनुशोचक (सं० वि०) पश्चात्तापयुक्त, पछतावेमें लाना अनुषङ्ग कहयेगा। पड़ा हुवा। "तीर्थ प्राप्यानुषङ्गन सान' तीर्थ समाचरेत् । अनुशोचन (सं० लो०) अनुशुच्यते, अनु-शुच-भावे मानज फलमाप्नोति तीर्थयावाफल न तु ॥" (शक) ल्युट। पश्चात् शोक, पछतावा। (स्त्री०) अनुशोचना। प्रधान उद्देश्यके अन्तर्गत सामान्य उद्देश्यसे तीर्थ अनुशोचनीय (सं०वि०) अनुशुच्यते यत् अनु शुच पहुंच जो स्नान करता, उसे उसी नानका फल मिलता, कर्मणि अनीयर् । अनुशोकाई, पछतावे काबिल, तीर्थयात्राका नहीं। कारण, यथानियम वह तीर्थयात्रा जिसे याद करनेसे पछतावे में पड़ना हो। नहीं निभाता। वाचस्पत्य और शब्दकल्पद्रुममें प्रसङ्ग अनुशोचित (सं० लो०) अनु-शुच् भावे क्त, शोचितु और अनुषङ्ग दोनो एकार्थक शब्द समझ गये हैं। मारब्ध इति आरम्भार्थे वा क्त । १ पश्चात् शोक, किन्तु उससे प्रायश्चित्ततत्त्वमें लिखित स्मातका एक पछतावा। (त्रि.)२ जिसे सोच पछतावैमें पड़े। पाठ सङ्गत नहीं ठहरता,- अनुशोचिन् (सं० त्रि०) पश्चात् ताप उठाते हुवा, "अतएव प्रासङ्गि कानुषङ्गिकफलसिद्धिरण्युपपन्ना।" जो पछतावेमें पड़ा हो। 'अतएव प्रासनिक और आनुषङ्गिक फलसिद्धि भी अनुशोभिन् (स० वि०) उज्ज्वल, प्रकाशमान, सङ्गत समझ पड़ी।' प्रासङ्गिक शब्दसे एकजैसा अर्थ ख बसूरत, चमकते हुवा। निकलनेपर यहां एक ही शब्द बोलने में काम चलता,