पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५०९

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लगता था। ५०२ अनुष्टुभ-अनुष्ठु अन्तका अनुष्ट प् छन्द निकलनेपर कवि । अनुपातव्य (स० त्रि.) कर्तव्य, करने काबिल, जो जब इस नूतन छन्दमें मन्त्र लिखने लगे, तब उस किया जानेको हो। समयके लोग अत्यन्त विरक्त बन गये। उसके बाद अनुष्ठाट (सं० त्रि.) अनुतिष्ठति कार्यानाचरति, पौराणिक समयसे इसका आदर बढ़ा, उस समय कोई अनु-स्था-ढच् । कार्यका अनुष्ठान उठानेवाला, विधान- भी फिर अनुष्टुप् छन्दको निन्दा न निकालते रहा। कर्ता, अनुक्रमसे कार्य-स्थिति-सम्पादक, सिलसिलेवार अब अनुष्टुप् छन्दको निन्दा नहीं सुनते, सभी इसमें काम करनेवाला, जो किसी कामको अञ्जाम दे। कविता बनाया करते हैं। अनुष्टुपका लक्षण यह (स्त्री०) अनुष्ठात्री। अनुष्ठान (स० क्लो०) अनु स्था भावे ल्य ट यत्वम् । “पञ्चमं लघु सवव सप्तम' हिचतुर्थयोः । १ कर्मारम्भ, कामका आगाज। २ विहित कर्मका षष्ठ गुरु विजानीयादित्यनुष्टुभ लक्षणम् ॥” (श्रुतबोध ) आचरण, धार्मिकप्रवृत्ति, भले कामका करना, मज.- सकल पादका ही पञ्चमवर्ण एवं द्वितीय, चतुर्थ हबो कामका उठाना। पादका सप्तमवर्ण लघु और सकल ही पादका षष्ट "तदनुष्ठानमावण स्वर्गलोके महीयते ।” (स्म ति) अक्षर गुरु रहनेसे अनुष्टुप् छन्द कहाता है। अनुष्ठानक्रम (सं० पु०) धार्मिक कार्य करनेका किन्तु किसी-किसी स्थल में पञ्चम वर्ण भी गुरु नियम, जिस कायदेसे मजहबी काम चले। रहता है। यथा,-"तिथ्यादितत्त्वं तत्प्रौत्यै ।" (स्मार्त ) वृत्त- अनुष्ठानशरीर (स. क्लो०) सांख्यमतसे-लिङ्ग रत्नाकरमें प्रथम अनुष्टुप् छन्द उठा उसके मध्य चित्र अथवा सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीरके मध्यका शरीर, पदा, मानवक, विद्युन्माला, समानिका, प्रमाणिका जो शरीर सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर दोनोके और जगती-यह छः प्रकारके छन्दका लक्षण लगा; बीच रहे। फिर छन्दोमञ्जरीमें इसके भीतर वक्त्र और पथ्यावक्त्रका अनुष्ठानस्मारक (सं० वि०) धार्मिक कार्यका स्मरण भो नाम पड़ा है। इनक लक्षण अपने-अपने शब्दमें देखो। दिलाते हुवा, जिसे देख मज़हबी फ़ज. याद आ जाये। अनेक पण्डित, श्लोक या छन्दः-शास्त्र में वक्त्रका अनुष्ठापक (सं० वि०) अनुष्ठान करनेवाला, जो नाना प्रकार लगायां करते हैं। किन्तु कामका अञ्जाम लगाये। साधारण लोगोंके समीप वह अनुष्ट प् नामसे ही अनुष्ठापन ( स० क्लो) कार्यको पूरा कराना, प्रसिद्ध है। अनुष्टुप् छन्दमें आठ अक्षर आते हैं। कामको अञ्जाम दिलाना। उसमें न्यूनाधिक पड़नेसे विषमाक्षर बनता है। लोग अनुष्ठायिन् (सं० त्रि०) करते हुवा, जो कामको उसे 'गाथा' कहते हैं। विषमाक्षर पाद अर्थात् गाथा अञ्जाम दे रहा हो। यों रहती है,-'मधुकैटभी दुरात्मनौ।' इसमें नौ अक्षर अनुष्ठि (वै० स्त्री०) उचित नियम, मुनासिब कायदा । वर्तमान हैं, अर्थात् अनुष्टुप् छन्दसे एक अक्षर बढ़ अनुष्ठित (सं० त्रि०) अनु-स्था-कमणि त। १ कत, गया है। अभ्यसित, किया हुवा, जिसका महावरा पड़ गया अनुष्टोभन (स.ली.) अनुप्रशंसा, पोहेकी तारीफ़ । हो। २ पूरे पहुचाया हुवा, जो अञ्जाम दिया गया अनुष्ट्र (स० पु०) अयोग्य उष्ट्र, खराब ऊंट। हो। ३ पश्चादगत, पीछा किया हुवा। ४. प्रमाणित अनुष्ठ (सं० त्रि०) यथाक्रमेण तिष्ठति, अनु-स्था-क किया जानेवाला, जिसका सुबूत देना हो। (क्लो०) यत्वम् । यथाक्रम स्थितिशील, कायदेसे खड़ा हुवा। ५ अनुष्ठान, धर्मकार्य, मज हबो काम । अनुष्ठमान (सं० वि०) पश्चाद्गामी, पीछे पड़ते अनुष्ठ, (सं० अव्य) अनु-स्था-बाहुलकात् कु हुवा, पूर्ण करनेवाला, जो कामको अञ्जाम दे, समोप औणादिकः। १ सम्यक्, सुन्दर, खूब, अच्छौतरह। उपस्थित, हाज़िरबाश। (वै० क्लो)२ नियमित विधान, कायदेको तरतीब । लक्षण भावे तो।