पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अक्षरच्छन्द -अक्षरलिपि पाशान्य-मत। , अक्षरच्छन्द (सं० लो०) जो छन्द अक्षरों की गणनासे रचा जाय। वर्णवृत्त। मोक्षमूलर-प्रमुख पाश्चात्य पगिड़तीका कहना अक्षरजननी (सं० स्त्री.) १ लेखनौ। २ कलम। यही है, कि सन् ई०मे पहलेको ४थी शताब्दिमे अक्षरजौवक, अक्षरजीविक (सं० पु.) अक्षरेण जीवति । पहले भारतमें लिखना कोई बिलकुल न जानता जो लेखनी द्वारा जीविका करे। मुनीम । गुमास्ता। था ; फिर इसमे हजारो वर्ष पहले वेद के मन्त्र, ब्राह्मण राइटर। क्लार्क। लेखक । और सूत्रभाग प्रचलित हुए थे। एकमात्र ऋगवेदके अक्षरजोविन् (सं० त्रि०) अक्षरजीविक, लेखक । दश ही मगडलाम १०५८० ऋक् आर प्रायः १५३८२६ अक्षरतूलिका (सं० स्त्री०) लेखनौ । चित्रकारों को शब्द मिलते हैं । जिम ममय लिखना किमाको मालूम केश-लेखनी। बालका कलम । न था, उस समय इतने अधिक ऋक् विशद्ध और अक्षरन्यास (सं० पु०) लिखावट। लिखन। लिपि । सम्पूर्ण छन्दोबद्ध रूपमें कैम बनाये गय. और इतने तन्त्रशास्त्रको एक क्रिया, जिसमें अं, हं, कं इत्यादि दीर्घकाल तक कैसे रक्षित रह ? वह कंवन्न म्मति अक्षरोंको एक-एक करके पढ़ते और अपने शरीरके द्वारा मुखस मुखमें चले आये हैं। मं। नमूनर कहते एक-एक अङ्गको छूते हैं। हैं, कि यह बात सुननस विम्मय उत्पन्न होता है; अक्षरपंक्ति (सं० स्त्री०) एक वैदिक छन्द । वहती, पंक्ति किन्तु विस्मयका कोई कारण नहीं दे ग्व पड़ता । इत्यादि छन्द वेदमें हैं। इनके चार पादोंके वर्णीका भारतीय छात्रोंकी जमो अभाधारण म्म ति शक्ति योग २० होता है और पाठावस्था में जिस तरह की शिक्षापद्धति थो, अक्षरमुख (सं०पु०) १ शिष्य। २ छात्र । ३ तालिब-इल्म । उसकी आलोचना करनेमे फिर मन्द ह बाक़ी न अक्षरलिपि (सं० स्त्री०) अक्षरोंके लिखनेकी रीति । रहेगा। उन्होंने अपनी बातके ममर्थन के लिये मन् सभ्य जातियां अपनी-अपनी भाषामें मनोभाव ई०को ७वीं शताब्दि के अन्त में लिखी गई और चोन- और स्वर प्रकाश करने के लिये जो चिन्ह व्यवहार परिव्राजक इत्मिङ्गको बताई शिशिताको पति करती हैं, उन्हें ही हम साधारणतः वर्ण या अक्षर उद्धृत को है। इत्मिङ्गने भारतीय बालकांको शिक्षा- कहते हैं। जगत्में सभ्य जातियों की संख्या जितनी का इस प्रकार परिचय दिया है, "पहले शिशु ४८ अधिक है, भाषाभेदसे उनके बीच अक्षरका प्रकार- अक्षर सोखता , पोछे करें वर्ष ६ महनिक बीच भेद भी उतना ही अधिक है। सभ्यताको पुष्टिके साथ १०००० युक्ताक्षर अभ्याम करता है। इमम वह बत्तीस वर्णमालाको सृष्टि होती है। अक्षरात्मक तौन-सा श्लोक मोख लेता है। पछि आठवें पहले हम इसी बातको आलोचना करना चाहते वर्ष वह पाणिनि-व्याकरण पढ़ता, जिममें एक हजार हैं, कि भाषाज्ञानके साथ अक्षर या वर्णमालाको सूत्र हैं और जिमको समाप्तिमं आठ महान लगते हैं। उत्पत्ति होते भी सबसे पहिले कहां और कैसे वर्ण इसके उपरान्त धातुपाठ और तीन खिली पढ़न लगता मालाको उत्पत्ति हुई थी। है। दश वर्षको अवस्थाम प्रारम्भ हो तरह वर्षको अव- वर्तमान सभ्यताके इतिहासको आलोचना कर स्थाके बीच खिली पाठ ममान होता है; पन्द्रह वर्षको सभी स्वीकार करते हैं, कि ऋग्वैदिक सभ्यता ही अवस्था होनेपर पाणिनिका सूत्रभाष्य पढ़ते ममय एक जगत्को सबसे पुरानी सभ्यता है। भारतीय आर्य घड़ी भी आलस्य करनेमे काम नहीं चन्नता । उस रात उन्हीं वैदिक सभ्योंके वंशधर हैं। देखना चाहिये, दिन रटना या पाठ मुखाय करना होता है। यह सूत्र- कि वैदिक समयमें वर्णमालाको उत्पत्ति हुई थी या भाष्य सम्पूर्ण आयत्त न कर सकनेस दूमर शास्त्रमें नहीं, और भारतीय अक्षरलिपि किस समय उत्पन्न अच्छा अधिकार नहीं उत्पन्न होता।" इसी प्रकार हुई थी। शिक्षारीतिका उल्लेखकर इमिङ्गने लिखा है, 'इस ,