पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५३३

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अन्तःसत्त्वा ४ मास-चतुर्थमासमें उदर स्पष्टरुपसे बड़ा देखाई देता है। इस अवस्था में पड़ दबाकर देखनेसे पिण्ड-जैसा कोई पदार्थ हाथ आयेगा। जरायुपर कान रखनसे. गर्भस्थ सन्तानका हृत्स्पन्दन सुन पड़ता है। ५ मास-पांचवें मास योनिके भीतर सन्तान अङ्गलिसे ठेलने में फिर अङ्ग लिपर आ गिरेगा। गर्भ में सन्तान भुका करता, गर्भिणी उसे ख ब समझ सकती है। इस समयसे गर्भ के सम्बन्धपर प्रायः कोई दूसरा सन्देह नहीं उठता। कभी-कभी स्त्रियोंके मिथ्या गर्भ रहेगा। मिथ्या गर्भ रहनेसे पेट बढ़ता, अरुचि उत्पन्न होती और प्रसव वेदनातक सताती है। वायुरोगग्रस्त (Hysteri- cal ) स्त्रियोंके ही ऐसा गर्भ गंठेगा। किन्तु ऐसे स्थलमें स्त्रियोंको क्लोरोफ़रम औषधके आघ्राणसे अज्ञान बनानेपर उदरका पिण्ड घट जाता है। रोगिणीके सज्ञान होनेपर फिर पेट फूल जायेगा। मिथ्या गर्भ पहंचाननेका प्रशस्त उपाय यही है। गर्भवती स्त्रीको बड़े यत्नसे रखना चाहिये। ऐसा कोई भी काम न करे, जिससे शोक, दुःख प्रभृतिक मन उद्देग उठ खड़े हों। उच्च-नीच स्थानमें गमना- गमन, यानारोहण, व्यायाम, अतिरिक्त परिश्रम, मैथुन, रात्रिजागरण, रक्तमोक्षण, अतिविरेचक औषधका सेवन प्रभृति निषिद्ध है। गर्भावस्थामें अनेक प्रकारको पौड़ा पहुंचती है। उसमें अरुचि और वमन तो प्रायः सकल स्त्रियोंको ही धर दबायेगा। अल्प अरुचि किंवा सामान्य वमन भयका कारण नहीं होता। किन्तु कभी किसौको अतिशय अरुचि और वमन भी लगा करता है। कोई द्रव्य खानेको इच्छा नहीं चलती, भोजन लेनेसे भी कुछ उदरमें सह्य नहीं पड़ता। रोगिणी दिन दिन दुर्बल हो शेषको प्राण छोड़ती है। किन्तु ऐसी घटना अति विरल होगी। गर्भ सञ्चार लगनेसे क्रममें जरायु बढ़ता, उससे उसके स्नायुमण्डलमें उत्तेजना उठती ; इसीसे गर्भ वती स्त्रियोंको वमन या वमनोहेग सताने लगता है। सचराचर सहज अवस्था में, ५ ग्रेन सोडा बाईकाब, किंवा बिस्मथ् ५ ग्रेन, सोंठका चूर्ण २ ग्रेन और बाईका ३ ग्रेन एकत्र मिला भोजनसे अव्यवहित पूर्व या पर खाना चाहिये। अथवा ५ ग्रेन पेप्सिन् भोजनके बाद खाता रहे। किंवा जल- मिश्रित हाइड्रोसायनिक एसिड ३ विन्दु या कुचिलेका अरिष्ट ३ विन्दु सेवनौय है। क्रियोजोट ३ विन्दु और घुला हुवा गोंद आध छटांक मिला डालनेसे एक मात्रा बनती है। किंवा अफीमका अरिष्ट ७ विन्दु अल्प जलके साथ खायेंगे। इन सकलके मध्य किसी-किसी औषधसे कुछ उपकार पहुंच सकता है। कोई-कोई गर्भवती स्त्री प्रातःकाल शय्या छोड़ते ही वमन करने लगती है। वैसे स्थल में रोगिणीको पहले कुछ खिलाये। भोजनके बाद शय्या छोड़नेसे प्रायः वमनोबेग नहीं लगता। वमन अनिवार्य हो जानेसे लघु पथ्यको व्यवस्था बांधना उचित है। एक- बारगी हो कोई द्रव्य अधिक खानको न दे। अनेक स्थलमें चमड़ेको थैलौ, बरफसे भर गर्भिणीके मेरुदण्ड, कोटिदेश एवं पाकस्थलोपर रखनेसे वमन रुक जाता है। ६० विन्दु अफीमके अरिष्ट और आधसेर शीतल जलको एकमें मिला, उससे कोई छोटासा बारीक कपड़ा भिजाये। पीछे उसौ वस्त्रको पाकस्थलीपर रखनेसे वमनोट्रेक घट सकता है। किन्तु पौड़ा कठिन पड़नेपर इस सकल प्रक्रियासे कोई फल नहीं निकलता। उस समय गर्भ को न गिरा देनेसे रोगिणी मर जाती है। विज्ञ चिकित्सक भिन्न इस कठिन काममें किसीको हाथ न डालना चाहिये। गर्भावस्था में अनेक स्त्री पत्ती, सोंधी मट्टी, खड़िया, मुलायम कङ्कड़, नाना प्रकारके कुखाद्य खाया करती हैं। इसीसे समय-समयपर पाण्डुरोग एवं उदरामय दौड़ पड़ता है। उदरामय उठनेसे असमयमें प्रसववेदना एवं गर्भस्राव भी हो सकेगा। अतएव अजीर्णका लक्षण पाते ही पहले गर्भवती नारीके सुपथ्यको व्यवस्था बांध दे। पत्ती, मट्टी प्रभृति अखाद्य .