पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५३४

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अन्तःसत्त्वा ५२७ कभी खिलाना न चाहिये। कोई-कोई कहता, कि गर्भावस्था में सहज ही उदरके मध्य अम्ल जम जाता है। खड़िया, सोंधी मट्टो प्रभृति खानेसे वही अम्ल नष्ट हो सकेगा। किन्तु यह बात युक्तिसङ्गत नहीं सुनते। उदरामयकी चिकित्मा, अग्निमान्य और अतिसार शब्दमैं देखो। किसी-किसी स्थलमें गर्भिणौके रक्तका लालकणा अतिशय घट जाता और रक्तमें जलाधिक्य देख पड़ता है। इसौसे देह दुर्बल, सर्वाङ्ग नौरक्त और विवर्ण पड़े और क्रमसे हस्तपद, मुख सूजेगा। अनेक स्थलमें प्रसवके बाद यह शोथ कम हुवा करता है। किन्तु स्नायुमण्डल और फेफड़ा बिगड़नेसे निश्चित मृत्यु मिलती है। फ़ास्फरस् लौह और मूत्रकर द्रव्य हो -ऐसी अवस्थाके उत्कृष्ट औषध हैं। किन्तु गर्भावस्थामें अनेक लौहघटित औषध खिलाते डर जायेंगे। उनका मत है, कि लौहघटित औषध खिलानेसे गर्भ गिरता है। यह बात बेसरपैर नहीं समझते ; फिर भी रोगिणी नितान्त दुर्बल बननेपर लौह भिन्न रोग- निवारणका प्रशस्त उपाय दूसरा कहां मिलेगा ? गर्भवतौके इस प्रकार कठिन उपसर्ग उठनेसे विन्न चिकित्सकका परामर्श ले लेना चाहिये। अनेक स्त्रीका सन्तान असमयमें गर्भस्रावते नष्ट हो जाता है। क्या शीतप्रधान देश और क्या उष्ण- प्रधान स्थान सर्वत्र ही यह विघ्न अतिशय प्रबल रहेगा। जिन सकल जातिका विवाह पूर्ण यौवना- वस्थामें होता, उनके मध्य भी विस्तर गर्भस्राव पड़ता है। दूसरे, हमारे हिन्दूवोंके मध्य बाल्यविवाह प्रथा प्रचलित है; अनेक बालिका प्रायः १३।१४ वत्सरके वयःक्रममें ही गर्भवती होती, उनके मध्य भौ गर्भ स्राव कम नहीं पाते। सचराचर देखेंगे, कि अनेक- का ही प्रथम गर्भ चलना प्रायः मुश्किल पड़ जाता इधर प्रौढ़ काल पहुंचनेपर ऋतु बन्द होनेका समय लगेगा, तब भी अकालमें विस्तर स्त्रियोंका गर्भ मष्ट होगा। एक बार गर्भपात पड़नेसे इस विघ्नके पुन:पुनः होनेको सम्भावना रहती है। डाकर हेगरने ठहराया, कि प्रायः आठ-दशमें एक गर्भस्राव होगा। डाकर ह्वाइट हेडके मतसे, सौमें नब्वेका गर्भ गिर जाता है। उपदंश, नाना प्रकार योनिरोग, गर्भावस्थासे मर्मान्तिक शोक, प्रबल ज्वर, वमन, उदरामय, स्थानिक आघात प्रभृति गर्भस्रावका प्रधान कारण होगा। गर्भस्राव होनेके पहले अल्प-अल्प रक्तस्राव लगता, किञ्चित् शोणित निकल बन्द हो जाता है। दो-तीन दिन बाद फिर रजः देख पड़ेगा। इसके साथ. उदर और जङ्घामें वेदना दौड़नेसे किसी तरह गर्भ नहीं बचता। किन्तु केवल सामान्य वेदना किंवा सामान्य रक्तस्राव लगनेसे गर्भ बच सकता है। कोई-कोई चिकित्सक कहता, कि गर्भपातसे पहले अल्प ज्वर और शोत मालम पड़ेगा, उसके बाद शोणित निकलेगा। इस सकल उपसर्गके साथ मूर्छा आनेसे गर्भिणीका प्राण बचाना मी दुष्कर देखाता है। रक्तस्राव लगनेसे योनिके भीतर अङ्गुलि घुसेड़ दे। यदि जरायुका मुख फैल जाये, तो गर्भ बच नहीं सकता। ऐसी अवस्थामें शौघ्र-शीघ्र भ्रूण निकल जानेसे हो मङ्गल है। किन्तु यत्सामान्य रक्तस्रावके बाद जरायुका मुख सिकुड़ जानेसे विघ्न पड़नेकी उतनो आशङ्का नहीं रहती। गर्भिणोको यत्नपूर्वक शीतल गृहमें लेटा दे: मलमूत्रके त्याग करने के लिये भी उठना-बैठना मना है। औषधके मध्य अफौमका अरिष्ट अमृततुल्य होता, दुर्बन स्त्रीको ३।४ घण्टे बाद १०।१५ विन्दु अरिष्ट अल्प शीतल जलके साथ खिलाना चाहिये। गर्भिणी सबल रहनेसे एक-एक मात्रामें २०१३० विन्दु अरिष्ट दिया जा सकता है। कोई-कोई विज्ञ चिकित्सक क्लारोडाइनको अधिक प्रशंसा करेगा। इसे १० विन्दु मात्रामें अल्प जलके साथ ३।४ घण्टे बाद खिलानेसे रक्तस्राव रुक सकता है। स्त्रीका धातु अफोमको अच्छीतरह बरदाश्त न करेगा। अतएव यह सकल औषध खाते समय देखना चाहिये, कि मादकता पहुंचती है या नहीं। चक्षु चढ़ने और मुख सूखनेसे और भो अल्य मात्रामें अधिक विलम्बपर अफौम देना चाहिये। अफीमसे दूसरा उपसर्ग उठनेको आशङ्का है। इससे अतिशय