पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५३८

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अन्तरङ्गतर-अन्तरप्रभव ५३१ आदमी। कर्मधा। अवबुद्धते, अन्तर-गम-खच् डिवात् मकार .लोपः । अन्तरण (स. क्लो०) अन्तरं व्यवधानं करोति, अन्तर- १ आत्मीय, अपना, भीतरी, अन्दरूनी हाल जानने- णिच् भावे ल्य ट्। व्यवधानका डालना, अन्तरित वाला। अथवा अन्तर निकटे अङ्ग शरीर यस्य ; करना, आड़ पहुंचाना। पृषो० अकारलोपः, बहुव्री०।२ आत्मीय व्यक्ति, घरका | अन्तरतत् (सं० त्रि.) मृत्यु या विनाश फैलाता अथवा अन्तरं भिन्न अङ्ग शरीरमात्र हुवा, जो मौत और ज़वाल लाता हो। यस्य। ३ अङ्ग भिन्न, जिसका जिस्म हो सिर्फ अलग अन्तरतम (सं० त्रि.) अतिशयन अन्तरं । सदृशं, रहे, दूसरी बातें सब एक हों। (अव्य. ) अङ्गन्देशस्य अन्तर-तमप्। १ अतिशय सदृश, अतिशय आत्मीय, अन्तर्मध्ये, अव्ययी । ४ अङ्गदेशके मध्य, अङ्ग मुल्कके निहायत नज़दीको। २ हार्दिक, दिली। दरमियान। (क्लो०) अन्तनिकटस्थं अङ्ग गुणः, अन्तरतस् (सं० अव्य०) सप्तम्यर्थे तसिल। मध्यमें, ५ व्याकरण शास्त्रको प्रक्चतिका कार्य । दरमियान्, बीचों बीच। अन्तर्भूतं अङ्गं निमित्तं यस्य यत्र वा, बहुव्रो । अन्तरतर (सं० त्रि०) अधिक आत्मोय, ज्यादातर प्रकृतिक कार्यका विधि, प्रकृति-कार्यविधायक शास्त्र, नजदीक । बहिरङ्ग प्रत्ययका कार्य। बहिरङ्ग कार्यसे अन्तरङ्ग | अन्तरद (स' त्रि०) हृदयविदारक, दिल तोड़नेवाला। कार्य बलवान् होता है। यथा,- अन्तरदिशा (सं० स्त्री०) अन्तरदेश देखी। "बहिरङ्गविधिभ्यः स्वादन्तरगविधि ली। अन्तरदृश् (सं० पु०) अन्तरे दृगवधानं यस्य, दृश- प्रत्ययाश्रितकार्यन्तु बहिरङ्गमुदाहृतम् । क्किप, बहुव्री। १ मर्मज्ञ, सूक्ष्मदर्शी, मतलब प्रकृत्याश्रितकार्य स्वादन्तरङ्गमिति ध्रुक्म् ।" समझनेवाला, बारीकबीन् । बहिरङ्गके विधिसे अन्तरङ्गका विधि हो बलवान् | अन्तरदेश (सं० पु०) कर्मधा० । मध्यदेश, दरमियानी है। प्रत्ययका कार्य बहिरङ्ग और प्रकृतिका कार्य मुल्क। इसका विवरण मध्यदेश शब्दमें देखो। अन्तरङ्ग कहायेगा। अन्तरधुरा–युक्तप्रदेशके अल्मोड़ा जिले को एक घाटी। अन्तरङ्गतर (सं. त्रि.) अतिशयन अन्तवाङ्गम्, यह तिब्बतको सीमापर ३०° २५ उ. अक्षांश, और अन्तरङ्ग-तरप्। १ अतिशय आत्मोय, निहायत ८०:११ पू. दाघिमांशमें अवस्थित है। तनकपुरसे नजदीको। (लौ०) २ प्रकृतिका प्रथम कार्य । ज्ञानिमा और गरटोकको बाजारको जो राह निकली "प्रकृतेः पूर्वपूर्वस्वादन्तरङ्गतरन्तथा ।" है, उसमें पड़नेके कारण इस घाटीका बड़प्पन अधिक 'अन्तरलता स. स्त्री०) आत्मीयता, स्वसम्पर्कीय । किन्तु यात्रियोंके लिये यह दुर्गम है। वर्षमें भाव, अपनपो, अयना होनेको हालत । ग्यारह महीने यह बरफसे ढकी रहती है। -अन्तरङ्गव स. क्लो०) अन्तरङ्गता देखो। अन्तरपुरुष, अन्तरपूरुष (सं० पु.) कर्मधा। देहके अन्तरचक्र (सं. क्लौ०) अन्तरं मध्यवर्ती चक्रम्, मध्यस्थित पुरुष, परमेश्वर, अन्तर्यामी। कर्मधा। तन्त्रोक्त देह मध्यस्थ पद्माकार छः चक्र। अन्तरपूजा (सं० स्त्री० ) अन्तरे मनोमध्ये पूजा मनः- उनके नाम यह हैं,-१ मूलाधार, २ स्वाविष्ठान, कल्पित वस्तुना अर्चना। तन्त्रोक्त मन:कल्पित द्रव्य ३ मणिपूरक, ४ अनाहत, ५ विशुद्ध और ६ आज्ञा- हारा पूजा। अन्तःपूजा शब्द देखी। चक्र। इसका विशेष विवरण षट्चक्र शब्दमें देखो। अन्तरप्रभव (सं० पु.) अन्तरेभ्यो भिन्नवर्णमातृपितृभ्यः अन्तरज (सं० त्रि.) अन्तर अन्तभूतविषय विशेष प्रभवति ; प्र-भू-अच्, ५-तत् । सङ्घीर्ण वर्ण, मूर्धाभि- वा जानाति, अन्तर-ज्ञा-क, ६-तत् । मर्मज्ञ, विशेषज्ञ, षिक्त, मिली हुयो जातिका । अन्तरप्रभव दो प्रकारका भीतरी हाल जाननेवाला, जो दिलको बात होता है। उसमें उत्तमवर्ण पुरुष और उसको अपेक्षा जान जाये। होनवर्ण स्त्रीके मिलनसे जो सन्तान जन्म ले, वह