पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५४

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1 ५२ अक्षरलिपि तलसे प, वीणासे व, लाङ्गल या लङ्गरसे ल, हाथसे बौद्धोंका बाबेरुजातक पढ़नेसे ज्ञात होता है, कि ह, और श्रवणेन्द्रियसे श बना है। इसी तरह दूसरे बाबरुसे (IBabylon) ही भारतमें बाणिज्य प्रारम्भ अक्षरोंको बनावट भी समझना चाहिये। हुआ था । सन् ई की पहली शताब्दितक पश्चिम- इसके बाद केनेडी साहबने प्रकाश किया, कि भारतमें भरुक छ (भडोच) और सूर्पारक (सूपारा) सन् ई से पहलेको ७ वींसे ३री शताब्दितक बाबि नामक स्थान समुद्र-बाणिज्यक केन्द्र रहे। बौधायन और लनके साथ दक्षिण-भारतका बाणिज्य चला था। गौतम धर्मसूत्र में भी यात्रियांम शुल्क या कर लेने की फिनिक जाति ही सबसे पहले भारतके साथ व्यवस्था पाई जाती है । ऋग्वं दमें ममुद्रयानाकी बात बाणिज्यके काममें लगी और उसी समय भारतीय लिखी है। सिरीय बणिक् बहुत पुराने समयसे ही लिपिको उत्पत्ति हुई। ईरानको खाड़ी द्वारा भारतमं बाणिज्य करत आते थे। दोनो पक्षक मतको आलोचना कर प्रसिद्ध संस्कृत इसौ तरह ईसाके जन्मस प्रायः ८८ वर्ष पहले यानी शास्त्र जाननेवाले डाकर बूहलरने सन् १८८८ ई० कोई २७०० वर्ष हुए आने जानवाले फिनिकीय में इस तरह प्रकाश किया, कि कनिहमने भारतीय (Pha.nician) बणिकोंक यत्नम हा भारतमं से मे- चित्रलिपिको जो उत्पत्ति मानी है, वह समीचीन टिक लिपि आई और धीर-धीर वहीं मिले हुए स्वर- नहीं। दाक्षिणात्यमें भट्टिप्रोलूसे जो लिपि निकली है, वों के साथ परिपुष्ट हो सन् ईको ५वीं शताब्दिमें उसका पयावेक्षण करनेसे कभी चित्रलिपिके साथ सर्वाङ्गसुन्दर भारतीय लिपि बन गई है। उसकी बराबरी नहीं की जा सकती। बूहलरने अपना डाकर बहलरने जो मत प्रकाश किया है, उस ही मत समर्थन करने के लिये लिखा है- आजकल पाश्चात्य प्रत्नतत्वविद् और दूमर एतिहासिक सन् ई० से ८८० वर्ष पहले खोदे गये मेसाके समीचौन बता ग्रहण करते हैं; किन्तु हमने पहाड़में जो सबसे पुराने सेमेटिक अक्षरोंको ध्वन्या जहांतक आलोचना की हैं, वहांतक जान पड़ा है, त्मक (Phonetic) लिपि देखी गई, उसके साथ ब्राह्मी | कि जिस प्रमाण और युक्ति बन्नम जमानीक प्रसिद्ध लिपिके बहुतसे अक्षरोंका कितना ही सामञ्जस्य रहा पण्डितन फिनिक लिपिस भारतीय अक्षलिपिकी है, उनमें 'ह' और 'त' यह दो अक्षर दक्षिण मेसोपोटे- उत्पत्ति, मानी है, वह समीचीन बता ग्रहण नहीं मियाकै सन् ई० से पहले की प्वीं शताब्दिक मध्यभाग- किया जा सकता। कारण, फिनिक अक्षरलिपि इतनी वाले हैं' और 'तउ' इन दो फिनिक अक्षरीस निकले असम्पूर्ण और अल्पसंख्यक है, कि उनके द्वारा भारतीय हैं। इसी तरह 'श' और 'ष' यह दो अक्षर भी सन् ई०- शास्त्रीको उच्चारण-प्रक्रिया या लिखन प्रणाली किसी से पहलेको ६ठीं शताब्दिक अरमीय अक्षरीसे बने तरह सिद्ध नहीं हो सकती। उन्होंने दूसरी लिपिक मालूम होते हैं। यह भी अवश्य स्वीकार करना पड़ेगा, साथ ब्राह्मीलिपिको जो बराबरी दिखाई है, वह भी कि साहित्यिक और लिपि-शास्त्रीय प्रमाणसे सन् ई०से हमारी विवेचना ठीक नहीं। दोना लिपि पास-पास पहले पांच-छ: सौ वर्षके बीच जो अरमीय लिपि आवि- रखने से आकाश-पातालका भंद जान पड़ता है। ष्कृत हुई है, उससे ब्राह्मी लिपिको उत्पत्ति नहीं हो विशेषत: भारतवीय ४८ अक्षरांक बीच दो-एकका सकती। कितने ही विद्वानोंने इस प्रकार मत प्रगट सामञ्जस्य देख सब किसी तरह फिनिक अक्षरलिपिको किया है सही, किन्तु यह बात अच्छी तरह समझ सन्तति नहीं मान जा सकते। इमक सम्बन्धम हम पड़ती है, कि भारतभूमिमें पुरानी अरमौय लिपिके अपने युक्ति-प्रमाण आगलिखत है। अनुरूप आधुनिक स, ष, श, अक्षर बनाये गये हैं। सन् दिक-वर्णमालाका उत्पनिका । ई. से पहले ७५० और ८८० वर्षके बीच ही भारतमें बीता हुआ इतिहास घोषणा करता है, कि -सेमेटिक अक्षरलिपि प्रवेश लाभ कर सकी होगी हजारो वर्ष ; यहां तक, कि हिमप्रलयसे पहले ही । 1 -