पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५४८

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अन्तर्वेश्मिक-अन्ताजी अन्तर्वेश्मिक (सं० त्रि०) वेश्मनो गृहस्य अन्तर्मध्ये | अन्तशय्या (सं० स्त्री०) शयनं शय्या, शोङ् भावे नियुक्तः ठन् न वृद्धिः। अन्तःपुर रक्षणके निमित्त क्यप्; अन्ताय नाशाय शय्या, ४-तत्। १ मरणके नियुक्त कञ्चुको प्रभृति, जो जनानखानेको हिफाजत निमित्त भूमिशय्या, श्मशान, मरते समय ज़मौनपरका करनेको रखा जाये। लेटना, मरघट। अन्ता एव शयया शयनम् कर्मधा । अन्तहणन (सं० लो०) मध्यका आघात, बीचको शेषशया, ओखिरी बिस्तर, मरण, मौत। चोट। अन्तसद् (स० त्रि०) अन्त समीपे सौदति गच्छति, अन्तहत्य (सं० अव्य०) अन्तर्-हन-ल्यप् । मध्यमें अन्त-सद्-क्विप्। अन्तवासी, शिष्य, निकटगामी, हनन कर, बीच में चोट पहुंचा। हाजिर बाश, शागिर्द, पास रहनेवाला। अन्तहस्त (स० अव्य०) हस्तमें, हाथके नीचे, अन्तस्तप्त ( स० त्रि०) भीतरसे तपाया या चिढ़ाया दस्तके दरमियान, हाथमें, जिसे आसानीसे पा सकें। हुवा, जिसे अन्दरूनी तौरपर तपायें या छेड़ें। अन्तहस्तीन् (सं० त्रि.) जो हाथके या पहुंचके | अन्तस्ताप (सं० पु.) १ भीतरी उष्णता, अन्दरूनी बाहर न हो। गर्मी। (त्रि.) भीतर-भीतर जलता हुवा, जो अन्तर्हास (स• पु० ) अन्तर्गुप्तो हासः ; अन्तर्-हस अन्दरूनी तौरपर जोश खा रहा हो। भावे घञ्, कर्मधा० । १ गूढ़ हास्य, अप्रकाशित हास्य, अन्तस्तुषार (सं० त्रि.) भीतर-भीतर ओससे भरा छिपी हंसी, मुसकिराहट। (त्रि.) अन्तर्हासो यस्य, हुवा, जिसके अन्दर शबनम् मौजूद रहे। बहुव्रौ० । २ गूढ़ हास्यविशिष्ट, छिपी हंसी निकालने अन्तस्तोय (सं० त्रि०) अन्तर्गतं तोयं जलं यस्य, वाला, जो मुसकरा रहा हो। बहुव्री। मध्यमें जल रखनेवाला, जिसके बीच पानी अन्तहित (सं० त्रि०) अन्तर् -धा-त। गुप्त, तिरो- मौजूद रहे। हित, पोशीदा, छिपा हुवा। अन्तस्ता (सं० लो०) अन्त्र, आंत । "अन्तहिते शशिनि ।" (शकुन्तला ४।४१) अन्तस्थ (स० पु०) अन्तः स्पशीष्मवर्णयोर्मध्ये तिष्ठति, "अन्तर्हितो दुष्टात् ।” (मुग्धबोध) अन्तर-स्था-क। १ स्पर्श और ऊष्मवर्णके मध्यस्थित अन्तहृदय (सं० लो०) हृदयका भीतरी भाग, य र ल व-यह चार वर्ण। (त्रि.) २ मध्येस्थित, दिलका अन्दरूनी हिस्सा। बौचवाला। अन्तवत् (सं० त्रि०) अन्तो नाश: परिच्छेदो वा अन्तस्था (सं० पु०) अन्तः स्पर्णीष्मवर्णयोमध्ये तिष्ठति अस्त्यस्य, मतुप् मस्य वः। विनाशी, नाशविशिष्ट, अन्तर-स्था-क्विप्। क से म पर्यन्त स्पशवर्ण और श ष नेस्तनाबूद हो जानेवाला, जो मिट जाता हो। सह-यह चार ऊष्मवर्ण, इन दोनों के मध्यस्थित य र (स्त्री०) अन्तवती। ल व यह चार वर्ण। "अन्तवत्तु फलन्तेषाम् ।" (गीता ७।२३) अन्तस्ने हफला (स. स्त्री०) खेतकण्टकारो, सफेद अन्तवासिन् (स० पु.) अन्त-समीपे वसति, अन्त- वस-णिनि। शिष्य, शागिर्द, चेला। अन्तस्पथ (सं० त्रि.) ऊंचे-नीचे चलते हुवा, जिसे अन्तवेला (स. स्त्री०) अन्तस्य नाशस्य वेलासीमा समयो चलने में कभी चढ़ना और कभी उतरना पड़े। वा, ६ तत्। १ शेष सीमा, नाशका समय, मरनकाल, अन्ताजी राजे शिरकी-बम्बई प्रदेशवाले सतारा नगरक आखिरी हट, मिटनेका वक्त, मौतका जमाना। महाराष्ट्र प्रधान कर्मचारी। इन्हें साधारणतः लोग अन्ता चासौ वेला चेति, कर्मधा० १ २ अपराहू, तीसरा बाबासाहब कहते थे। सन् १८५७ ई० में सिपा- पहर। ३ शेष समय, आखिरी वक्त। ४ समुद्रका हियोवाले बलवेके समय सतारेको बड़ी रानौके तट, बहरका किनारा। कहनेसे पुलिसका प्रबन्ध बहुत ढीला कर दिया। कटया। 136