पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५५४

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५४८ अन्त्येष्टि

दिये थे। पौछे उन्होंने सबसे कहा,-शमीवृक्षपर शव बंधा है। लोगोंने यही समझ लिया, कि वृक्षमें शव लटकता था; उसीसे किसीने धनुर्वाणादि न चुराया। अनुमान होता है, कि पहले इस देशको कोई कोई जाति वृक्षमें शव लटका देती थी, इसीसे लोगोंने इस बातपर सहजमें विश्वास कर लिया। शव लटकानेकी प्रथा न होनेपर पाण्डवको बात कोई न सुनता, सब लोग हंसी उड़ाने लगते। कहते हैं, कि प्राचीन कलचिस्के लोग पुरुषका मृतशरीर वृक्षमें लटकाते और स्त्रीको कबमें गाड़ देते थे। अतएव ऐसा अनुमान करना असङ्गत नहीं, कि भारतवर्ष में भी वैसा कोई नियम प्रचलित रहा। इसतरह सन्देह होनेका दूसरा भी कारण विद्यमान है। समाजमें जो नियम अधिक कालतक चले, पोछे बिलकुल बन्द हो जाने- पर भी उसका कुछ आभास रहेगा। मालूम होता है, कि पहले इस देशमें वृक्षसे शव बांधनेको प्रथा थी, इसीसे वैदिक समयमें साग्निक ब्राह्मणको हड्डियां इकट्ठीकर पलाश या शमी वृक्ष लटका देते थे। उत्तर-अमेरिकाके असभ्य लोग मृत व्यक्तिके साथ भोजन बनानेका पात्र, नाना प्रकारके खाद्य द्रव्य, वसन-भूषण और धनुर्वाण रख देते हैं। प्रतलोकमें लोगोंको दीर्घकालतक रहना पड़ेगा, इसीसे परिधान- का मृगचर्म फट जानेपर कमरबन्द लगाना उचित है। इसौसे अतिरिक्त कुछ चर्म कब्रमें डाल देंगे। अफ्रीकाके अन्तर्गत जो देहोमी प्रान्त है, उसके लोग मृतव्यक्ति के पास संवाद भेजनेको क्रौतदासको जान ले लेते हैं। उसी नौकरका आत्मा लोकान्तरको घरका समाचार पहुंचायेगा। कोई-कोई हबशी सम्प्रदाय आत्मीय व्यक्तिका अस्थि रख छोड़ता है। इच्छा चलनेसे वह उसी अस्थिके साथ बातचीत करने लगेगा। आन्दामान-हौपवासौ भक्ति और स्नेह दिखानेको मृत व्यक्तिके मुण्डको माला बना गले में पहनता है। भारतवर्षका वन्य असभ्य मृतशरीरके साथ अस्त्रशस्त्र, खाद्य द्रव्य और वसन- भूषण गाड़ देगा। हम अन्त्येष्टिक्रिया करते समय मृतव्यक्तिके मुखमें पिण्डदान करते हैं। वाडके समय जलपात्र, भोजनपात्र और शय्यादि दें; इसके सिवा उसके पिटलोकोद्देशसे तर्पण और पार्वण श्राद्ध भी करेंगे। अतएव देशभेद और जातिभेदसे अन्तराष्टिक्रियाका अनुष्ठान भिन्न-भिन्न है सही किन्तु, सबका उद्देश्य एक है। एक समय वेल्समें (Wales) एक विलक्षण नियम. रहा। हमारे देश अग्रदानौ ब्राह्मण जैसे प्रेतपिण्ड, खाते हैं, वेल्स देशमें भी वैसे ही कोई सम्पदाय पाप- भोजी था। जलाते समय उस सम्प्रदायके लोग शवके हाथसे एक रोटी खाते थे, जिससे प्रेतात्माके समस्त पाप छुट जाये इस रोतिका कितना हो आभास युक्तप्रदेशके किसी-किसी स्थान एवं पञ्जाब और काश्मीरादि स्थानों में मिलता है। अशौचान्तके दिन हिन्दू जनैक ब्राह्मणको कीचड़ और मट्टोसे लपेट प्रेत बनायेंगे। पौछे पिण्डदान खिलाते. हैं। यह सब प्रेतब्राह्मण क्रियाके अन्तमें विलक्षच. दक्षिणा पायेंगे। पुरनिया जिलेमें बाइके दिन एक झोपड़ा बनाते हैं। उसके भौतर नानाविध खाद्य. भारतवर्षके पर्वतोंमें अनेक असभ्य जातियां बसती हैं। उनका देवता प्रायः एक-सा होता है; सकल ही वनस्पति, नदी, पर्वत, भूत, व्याघ्र प्रभृतिको पूजेंगी। किन्तु उनको अन्त्येष्टिक्रिया एक प्रकारसे नहीं होती। खन्द और भौल जाति पुरुषको जलाती और स्त्रीको कब्रमें गाड़ती है। नीलगिरिको तदा जातिका व्यवहार बिलकुल हमारे ही समान होगा। वह शिशुको मट्टीमें गाड़तो, वयःप्राप्त स्त्रीपुरुषको जला डालती है; हिमालयके प्रायः सब असभ्य लोग मृतशरीरको कब्रमें गाड़ते हैं। मृत व्यक्ति के प्रति मेह, ममता और भक्ति होनेसे अन्त्येष्टिक्रियाको कितनी धूमधाम और तड़क- भड़क बढ़ गयी है। उसपर फिर प्रतलोकके प्रति विश्वास भी पायेंगे। इस समस्याका मर्म, कि मनुष्य मरनेपर कहां जाता है, जिस जातिने जैसा समझा, वह प्रेतात्माको सुखस्वच्छन्दता और सद्गतिके लिये वैसा ही प्रत्येक कार्यका नियम निकाल गयो।