पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५५६

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५५० अन्त्यष्टि शरीरके मध्य जा पहुंचेगा। किन्तु शरीर बिगड़ निकलेगा, कि कारीगर अनेक औषध शिरके भीतर जानेसे फिर वह नहीं घुस सकते। इसीसे मिश्रवासी भर देते, इससे कोई स्थान बिगड़ता न था। यह यत्नपूर्वक मृतदेहको रख छोड़ते थे । सकल प्रक्रिया समाप्त होनेपर निम्नश्रेणीके कोई मृतदेह बना देनेके लिये उस समय मिश्रमें सात सम्प्रदाय पुरोहित उसी शरीरका प्रत्येक अङ्ग कपड़ेसे आठ सौ कारीगर रहै। कोई मैल-वैल निकालता, लपेट देते। कोई खारौ पानीमें शरीर डुबाता, कोई औषध लगाता और कोई रङ्ग चढ़ाता था। मिश्री पुरुष मरते ही मृतदेह कारीगरों के पास पहुंचायी जाती थी। स्त्रीके मरनेसे मुर्दा थोड़े दिन घरमें रखते। हिरोदोतस् और दिओदोरस्ने इस बातका विशेष अनुसन्धान किया था, मृत शरीरको कैसे रक्षा की जाती है। उनके मतमें, जिस प्रणालीसे धनवान व्यक्तिको देह बने, उसमें व्यय अधिक पड़ेगा। प्रत्येक शरीरको मसालेसे बनाने और सजानेमें कमसे कम ७२५०) रुपये का खर्च रहा। मिश्रमें मुर्दा-फ़रोशोंके सदृश कोई नौच जातीय कारीगर भी थे। वह मृत मित्रके रक्षित मृतदेहको ममी कहते हैं। यहां दो ममौका चिव देहको वाम दिक्के पञ्जरके नीचे नश्तर लगा पेटको खींचा गया है। प्रांत पोते निकाल डालते रहे। दूसरे प्रकारके मिश्रके एक-एक मृतदेहसे चार इञ्च चौड़ा और मुदोफरोश छातीको काट फेफड़ा और गुर्दा निकालते ढाई सौ हाथ लम्बा कपड़ा निकाला गया है। थे। तृतीय प्रकारके लोग नाकमें लाहेको टेढ़ी कहते हैं, कि मर जानेपर मृतदेहका जाड़ा छुड़ाने- सलाई डाल मस्तिष्क खींच लेते रहे। अन्तको को कपड़ा लगनेसे सभी लोग जीवद्दशामें अपना- पिचकारीमें तालको ताड़ी डाल उदर, वक्षःस्थल और अपना जीर्ण वस्त्र सञ्चय कर रखते थे। हिरोदोतसने मस्तक पुनःपुनः धो देनेसे सब जगहका गलित द्रव्य लिखा है, कि मृतशरीरको मसालेसे भरने और छूट जाता था। उसके बाद पेटमें हीराबोल प्रभृति वस्त्रसे लपेटनेमें ३४१३५ दिन लगते रहे। अतएव मसाला भर ऊपरी चर्म सो जानेसे, दूसरे कारीगरीके ७०।७२ दिनसे कम समय किसी शरीरके बनाने में न पास वही देह पहुंचायी जाती। मृतदेहको चीरना लगता था। न चाहिये, उसपर आघात करना भी अयोग्य है; द्वितीय उपाय अपेक्षाकृत सरल और सुलभ होता इसीसे वह सकल प्रक्रिया समाप्त होनेपर मृतव्यक्तिके था। उसमें २४३०) रुपयेसे अधिक व्यय न पड़ते। बन्धुबान्धव कपट रागसे मुर्दाफरोशीको पत्थर कारीगर पेटमें मसाला न डाल केवल अलकतरेसे मारते थे। उसे भर देते थे। उसके बाद क्षार जलमें भिगोकर अन्न, मस्तिष्क प्रभृति परिष्कार करने में प्रायः रखनेसे समस्त. गलित पदार्थ आप ही बाहर निकल १६॥१७ दिन लगते रहे। उसके बाद क्षार कर्म जाता। किया जाता। यह काम किसी अन्यके हाथ दरिद्र लोगोंके पास अर्थ नहीं होता। इससे था। कारीगर क्षार-जलमें १८२० दिन मृतदेहको निर्धन व्यक्ति के शरीरको प्रांतें. निकाल.. उसे जलमें भिगो रखते थे। मिथके अनेक शवका..मांस भिगो देते थे। उसके बाद सर्वाङ्गमें कपड़ा लपेट नया-जैसा देख पड़ता है। उसका. कारण.. यह देनेसे . फिर . शरीर बिगड़ता न था। इस तरह