पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५६

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५४ अक्षरलिपि आते, सब लोग उनको वेदवाणी यह कह सुनने- के इच्छुक होते, कि वह बोल रहे हैं। कारण, वह स्थान वाक्यका दिक् बताया जाता और इसके लिये प्रख्यात है। वह उत्तरदिक् कहां है ? वह स्थान काश्मीरसे उत्तर * मेरुके पास है, जहांसे सरस्वती-नदी निकल प्रवाहित हुई है। ब्राह्मणग्रन्थोंकी तरह पारसीवालोंके आदिधर्म- ग्रन्थों अवस्तामें भी 'हरकुइति' या सरस्वती वागुत्प- त्तिका स्थान निर्दिष्ट की गई है। किन्तु आवस्तिक मतावलम्बियोंने अपने सारस्वत प्रदेशको छोड़ और अनार्योंसे भरे सुदूर उत्तर-पश्चिममें फैल स्थानीय प्रभाव और पूर्व पुरुषोंके धर्मविप्लवहेतु आदि आव- स्तिक, वैदिक वाक् या श्रुतिको कुछ-कुछ रूपान्तरित कर डाला है ; इसौसे अवस्ता, वेदको भाषा और उच्चारणमें इतना अलगाव हो गया है। किन्तु आया- वर्तक रहनेवाले वैदिक सन्तान सारस्वत-संस्रव न छोड़ और उत्तरदिक्की वही प्राचीन वाक्धारा श्रुति- में यत्नके साथ रक्षित रख पुराने भारतीय वेदों- को बनाये रखने में आज भी समर्थ हुए हैं। इससे हमारे वेद आज भी 'श्रुति'के नामसे पुकारे जाते हैं। भारतीय अक्षरमाला और लिपिको उत्पत्ति । भारतीय ज्योतिःशास्त्रके इतिहास-लेखक प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् शङ्कर बालकृष्ण दीक्षितने ज्योतिषिक प्रमाण उद्धृत कर दिखाया है, कि शुक्लयजुर्वेदके शतपथब्राह्मणमें आजसे कोई पांच हजार वर्ष पहलेका ज्योतिषिक विवरण रहा है, जिसका कितना हो अंश इस समय प्रकाशित हो गया। शतपथब्राह्मणसे भी बहुत पहले यजुःसंहिता और उससे बहुत पहले ऋक्समूह प्रकाशित हुआ था। महाराष्ट्र -पण्डित बालगङ्गाधर तिलकने तैत्तिरीयमंहिताको आलोचना कर दिखाया है, कि वामन्त विषुवदिन मृग- शिरा संक्रमित होने यानी मन् ई० मे चार हज़ार वर्ष पहले भारतीय आर्य जाति ज्यातिषिक आलोचना करती थी, और ऋक्संहिताका प्राचीनतर ज्योतिषांश गणनाकर देखनेमे स्थिर होगा, कि मन् ई० मे छ: हज़ार वर्ष पहले हिन्दुओंने कितने ही ज्योतिषिक विषय लिपिबद्ध किये थे। यह बात केवल महामति तिलकने हो नहीं कही है। प्रमिद्ध जर्मन-ज्योतिषो और पुरातत्त्वविद् जकोबी (.Jacivini)ने व दके ज्योति- षांशकी आलोचना कर सिद्धान्त किया है, कि हिन्दु- ओंने सन् ई से तीन हज़ार या इम ममयम कोई पांच हजार वर्ष पहले ध्र व नक्षत्र आविष्कार किया था। लिषदग्वी। इस उद्धत प्रमाण के बल कहा जा सकता है, कि वेदसहिता और उसके अन्तर्गत ज्योतिष-मिद्धान्तका संरक्षण करने के लिये कमसे कम पांच हजार वर्ष पहले वैदिक वर्णमाला और किमी प्रकारको लिपि- पद्धति चल पड़ी थी। कोई-कोई लोग इम जगह यह आपत्ति कर सकते हैं, कि वेदका कोई अंश यदि लिखा हुआ होता, तो उसका नाम थुति कसे रखा जाता, और वेदसंहिता या पुराने किमो वैदिक ग्रंथ- में लिपि या । प्रकारकै लिपिवाचक शब्दका प्रमाण क्यों न मिलता। हम पहले ही कह चुके हैं, कि हिमप्रलय उप- स्थित होने पर आर्यसन्तानांने आदि वाम छोड़ और श्रुतिधारण किये हुए दक्षिणक ओर मरपम (पौराणिक विन्दुसर और वर्तमान सरीकुल) इदक पाम पहुंच उपनिवेश स्थापन किया था, जो पीक वदिक और आवस्तिक जातिके निकट "प्रत्नाकम्" या प्राचीन वासभूमि गिना गया। यह ऋक्मंहिता होसे जाना जाता है, कि वेदके कितने ही मन्त्र इस स्थान में लिखे गये और इसी स्थानसे वैदिक आर्यान सिन्धु, शतद्र, आपया, गङ्गा और सरस्वतीसे प्रवाहित पञ्चनद और सारखत भूभागमें पहुंच उपनिवेश स्थापन किये थे।

  • शाड्यायन-धामणके भाष्यकार विनायक-भट्टने लिखा है,-'प्रज्ञाततरा

वागुद्यते काश्मीर सरखती कौते।' इसी तरह उन्होंने कारमौर ही सरस्वतीका स्थान बताया है। भत्स्यपुराणक मतसे सरस्वतीका उत्पत्ति- स्थान विन्दुसर (१२०६४) है, जिसे आजकल सरीकुल हद कहते हैं। एक समय इस सरोकुल हुदतक काश्मीरदेश फैला था। इसके आर्य-जाति- की वैदिको भाषा या वाक्-शिक्षाका स्थान कहे जानेसे सरस्वतीका दूसरा नाम वाक् या भाषा पड़ा है।