पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अन्ताष्टि -अन्त्र ५५५ गतंके दोनों किनारे दो पलाशशाखा गाड़ उनका व्यवस्था दी है। बौधायनके मतसे, ढतीया, पञ्चमी अग्रभाग रस्सीसे बांध देते। प्रथम जाति बन्धु सकल या सप्तमी तिथिको ही यह काम सम्पन्न करना ही उसे कूदकर लांघते, केवल स्वयं अग्निदाताको आवश्यक होगा। अन्तमें जाना पड़ता था। सानादिके बाद घर वापस अस्थिचयन होनेपर उन्हें धोकर कुम्भके भीतर जानेका दो प्रकारसे नियम रहा। कहीं तो आकाशमें रखना पड़ता था। कोई-कोई उन्हें कृष्णसार चर्ममें तारा निकलनेसे सकल घर वापस पहुंचते ; कहीं लपेटकर रखते थे। सोमयाजीके अस्थिको जाति- सूर्योदय न होनेसे कोई लौटता न था। यह प्रथा वाले पुनर्वार जला देते रहे। किन्तु सोमयाजौका आजकल भी बहुत जगह चलती है। अस्थि न निकालनेसे उस दिन उसे पलाश या शमी- उसके बाद अस्थिचयन होगा। कहीं-कहीं साग्निक वृक्षपर लटकाते, पीछे समाहित करते थे। ब्राह्मण न मिलनेसे यह प्रथा बिलकुल उठ गयी अस्थि समाहित करना उस कालका महोत्सव प्राचीन कालके आर्य शवदाहसे तृतीय रहा। अग्निदाता, कुम्भके भीतर अस्थि, दधि एवं पञ्चम या सप्तम दिवस चितापर दुग्ध और जल सौषधि रख उसके ऊपर दूर्वा ढांक देते थे; उसके डाल यज्ञडुमुरको डालसे हटाते-हटाते अङ्गार बाद कोई स्थान चम, किवा शमी या पलाश शाखासे एवं अस्थि पृथक् कर डालते थे। इसतरह सफाई साफ कर हल द्वारा पूर्वपश्चिम लम्बे छ: गर्त होनेपर अङ्गार चिताको दक्षिण ओर फेंक दिये बनाते । उन्हीं गर्तके मध्यस्थलमें कुम्भ गाड़ना पड़ता जाते। पीछे मृतव्यक्तिको विधवा स्त्री वहां पहुंच था। कुम्भ गड़ जानेसे दाहनकर्ता उसपर बालू, सुख और आसमानो धागके छोरसे पत्थर बांध उसके पत्थर और ईट रख देता। मिश्रके मेमफिस् प्रभृति बारा वाम हाथसे अस्थि उठा लाती थी। अस्थि समाधिस्थानसे नाना प्रकारका शस्य निकला है। तीन- उठाते समय बह इसतरह पाठ पढ़ती थी। चार हज़ार वत्सर वौते, किन्तु आज भी वह शस्य "उपतिष्ठाऽतस्तणुवं सम्भरख मेह गावमवहा मा शरीरम् । नहीं बिगड़ा-बोनेपर उससे वृक्ष उत्पन्न हुवा। आर्य- यव भूम्यै हासे तब गच्छ तब त्वा देवः सविता दधातु । समाधिको चारो ओर कुश, तिल एवं भुना हुवा यव इदन्त एकम्पर उत एकं तीयेन ज्योतिषा स विशख । नमक डाल उसपर रमसर गाड़ देते थे। स'वेशनस्तनुवै चारुरधि प्रियो देवानां परमै सधस्थ ।" अस्थि के साथ दधि, मधु एवं सौषधि मिली 'यहांसे उठिये। आप शरीर धारण करें। यहां रहती। नहीं कह सकते, कि उसका कोई गूढ गात्र किंवा शरीरका कुछ फेंक न जाइयेगा। आप कारण है या नहीं। पहले बता चुके हैं, कि आसी. यहांसे जहां जाना चाहें, वहीं जायें। सवितादेव रोय प्रभृति देशके लोग शहद और मोमसे मृत. आपको वहीं रखें। यह आपका कोई अस्थि है; आप शरीरको रक्षा करते थे। मालूम होता, कि हिन्दू तीय अर्थात् अन्य अस्थि के साथ मिलकर प्रकाशमान भी वह कौशल जानते थे। इसोसे अस्थि बचानेके हों। आप उत्कृष्ट स्थानमें देवतावोंके प्रिय बने रहिये।' लिये कुम्भके भीतर मधु और सौषधि डालते थे। इस स्थलमें, "अपरास्तृतीयस्यां पञ्चम्यां सप्तम्यां था अस्थी न अन्तष्टिका अन्यान्य विवरण अनुमरण, अनुमृता, अशौचान्त, कवर, सञ्चिन्वन्ति" इसीतरह, 'तीया' 'पञ्चमी' इत्यादि शब्द शवदाह एव' सहमरण शब्दमें देखो। स्त्रीलिङ्गमें प्रयुक्त पड़े हैं। अतएव तृतीया दिवस' | अन्त्येष्टिक्रिया (स. स्त्री०) मरनेका क्रिया-कर्म, ऐसा प्रयोग किसीतरह लग नहीं सकता। अनुमान मातमी काम। अन्तष्टि देखो। होता है, इस जगह तृतीयादि तिथि ही ग्रन्थकारका अन्च (स. क्लो०) अन्त्यते देहो वध्यतेऽनेन, अति अभीष्ट था। आश्वलायनने, कृष्णपक्षको एकादशी, वन्धने करणे ष्ट्रन् ; अथवा अम्यते दुष्टवातादिना शब्दा त्रयोदशी या अमावस्याको अस्थिचयन करनेको यते रोग उत्पद्यते. इति. वा, अमि करणे व