पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५६२

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अन्व करने पर तृणादि अच्छीतरह नहीं पचता ; जिसके लिये विधाताने उनकी पाकस्थलीमें अनेक प्रकोष्ठ बना दिये हैं। इसका विवरण आगे लिखा जायगा। अन्त्र बिलकुल नल-जैसा रहेगा। श्लैषिक, सिरस् एवं पशोके आवरणसे अन्न गठित, इसौसे देखने में श्वेतवर्णं मालूम पड़ता है। अन्वपर एक सादा और पतला आवरण पायें, जिसे अन्वावरक झिल्ली या पेटेका परदा । (peritoneum) कहेंगे। चिकित्सक- ने कार्य को सुविधाके लिये प्रथम समस्त अन्त्रको दो भागमें बांटा है। उसमें एक भागको क्षुद्रान्त्र और अपर भागको बृहदन्त्र बतायेंगे। मनुष्य एवं गो मेष प्रभृति उद्भिज्जीवी प्राणौके क्षुद्रान्त्रसे बृहदन्त्र कुछ अधिक मोटा होता और उसके भीतरको दराज़ भी अपेक्षाकृत बड़ी पड़ती है। किन्तु सिंह, व्याघ्र प्रभृति मांसाशी जन्तुका अन्त्र प्रायः नीचेसे ऊपर तक समान रहेगा। औणादिक पेटकी नाड़ी, आंत । अन्त्र शब्दका अपभ्रंश आंत है। मनुष्यका अन्त्र उदरको दक्षिण दिक् पाकस्थलोके दक्षिण मुखसे निकल और अन्तमें कितना ही घूम-फिर मलबार पर्यन्त फैला हुआ है। इसकी उत्पत्ति इसतरह कही गयी है,- "उक्ताः सा स्त्रयो व्यामा: पु'सामन्त्राणि सूरिभिः । अईव्यामन हीनानि योषितोऽन्त्राणि निर्दिशेत् ॥ साईविव्यामान्यन्त्राणि पुसा स्त्रीणाम व्यामहीनानि ।" मुश्रुत शारीर०५०) फिर देखिये,- "असृजः पाणथापि यः प्रसादः परीमतः । त' पच्यमान पित्तेन वायुश्शप्यनुधावति । तवीस्यान्वाणि जायन्ते गुद' वस्तिथ देहिनः ॥" (सुन्नुत शारौर०४ अ०) उक्त वैद्यशास्त्र के मतसे पुरुषका साढ़े तीन और स्त्रीका अन्त्र तीन व्याम दीर्घ होगा। किन्तु यह भल है। कारण, मनुष्यका अन्त्र उसके सोलह हाथ लम्बा रहता है। व्याम तीन हाथको कहते हैं। इसलिये साढ़े तीन व्याम बारह हाथसे कुछ ऊपर पड़ा। बस, सच्चा हिसाब लगानेसे कोई चार हाथका फ़क़ आता है। साधारणतः मनुष्यका अन्त्र शरीरको अपेक्षा कोई छगुना लम्बा रहेगा। हम जो सकल द्रव्य खाते, वह अबनालौसे (cesophagus) पाकस्थलोके भीतर जा गिरता है। मनुष्यको पाकस्थली देखनेमें ज्यादातर मसक-जैसी रहेगी। किञ्चित् वामपार्श्वको ऊपरी दिक उसका एक मुख होता, जो हृद्दार (cardiac orifice) कहाता है। इसी मुखसे भुक्त द्रव्य पाकस्थलीमें पहुंचेगा। पेटको दक्षिण दिक उसका दूसरा मुख देखते, जिसे अधोहार (pylorus) कहते हैं। इसी अधोहारसे अन्त्र निकला है। पाकस्थलोके भीतर आमरसमें भुक्त द्रव्य, कुछ-कुछ पकनेपर, क्रमसे अन्त्रके मध्य जा पहुंचेगा। मनुष्यको पाकस्थलोमें एक भी गहर कहीं देख नहीं पड़ता। किन्तु गाय, बकरी, भेड़ प्रभृति जो सकल जन्तु जुगाली करते हैं, उनको.पाकस्थलीमें चार-चार गह्वर मिलेंगे। उशि- ज्जीवी पश कठिन द्रव्य खाते, इसीसे जुगाली न क्षुद्रान्त्र-प्रायः २० फीट लम्बा होता है। पाक- स्थलोको दक्षिण दिक्से निकल कितना ही घूम-फिर दक्षिण कक्षके नौचे यह शेष पड़ जायगा। कार्य की सुविधाके लिये इसे तीन भागमें बांटा है। उसमें पाकस्थलीके पास जो अंश हो, वह हादशाङ्गल्यन्त्र (duodenum); मध्यस्थलमें जो अंश हो, बह शून्यान्न (jejunum); एवं दक्षिण कक्षके पास जो अंश जा बृहदन्त से मिले, वह जड़ितान्त ( ileum ) कहायेगा। यह तीनो अंश स्पष्ट रूपसे पहंचनवा देनेके लिये कोई स्वाभाविक चिह्न नहीं होता। द्वादशाङ्गुल्यन्त पाकस्थलोको दक्षिण दिक्को अल्प. वक्र पड़ जायेगा। यह प्रायः बारह अङ्गुलि (८।१० इञ्च) लम्बा होनेसे हादशाङ्गल्यन्त कहाता है। इस अन्तके वक्र प्रदेशवाले मध्यस्थल में पित्त और प्रेक्रियेटिक रस टपका करेगा। क्षुद्रान्तके बाकी अंशमैं ८२ इञ्च शून्यान्त एवं अवशिष्ट १३८ इञ्च जड़ितान्तु रहता है। मृत्यु के बाद द्वादशाङ्गुल्यन्तुसे नीचे प्रायः कुछ भी नहीं रहता, इसीसे यह शून्यान्त, कहाता है। शून्यान्तके निम् भागको कितना हो चक्कर लगा