पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५६३

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अन्त्र ५५७ ग्रन्थि ( Solitary glands) रखा गया है; एवं दूसरौ अनेक ग्रन्थि १८।२० एकत्र मिलनेसे समवेत afat (Agminated glands or Peyer's pat- ches ) कहाती हैं। इन सकल ग्रन्थिसे रस निकल 1 दक्षिणश्रोणिप्रदेशके पास जा पहुंचनेसे जड़ितान्त कहते हैं। क्षुद्रान्त से जहां बृहदन्त मिला, वहांका निर्माण- कोशल अति चमत्कार है। पीछे नीचेका विष्ठादि ऊपर उठ जाता, इसलिये विधाताने इस स्थानमें एक प्रकारके कपाट (ileo-caecal valve ) लगा दिये हैं। कपाटको बनाबट बहुत ही अनोखी है। ऊपरका भुक्त द्रव्य अनायास उसके भीतरसे निम दिक्को चला जाये, किन्तु नीचेका कोई द्रव्य कपाट खोल अन्त्रके ऊपर नहीं चढ़ सकेगा। कठिन टाइफयेड ज्वर पानेसे सचराचर इस अन्धान्त्र कपाटके दो इञ्चमें प्रायः छिद्र पड़ जाते हैं। अन्त्रज्वर देखो। इस कपाटसे किञ्चित् दूर बहदन्त्रके गानमें अन्धान्त्र (caecum) मिलेगा। अन्धावसे बिलकुल कृमि-जैसा कोई उपमांस ( vermiform appendix ) निकल पड़ता है। भाल्लुक प्रभृति जो सकल जन्तु शीतकालमें कुछ नहीं खाते-केवल सोया करते हैं, उनके अन्धान्त्र नहीं रहता। मांसाशी जन्तुका क्षुद्र ; किन्तु महिष प्रभृति जो सकल पशु जुगालो करते, उनका अन्धान्त्र कितना ही बड़ा, देखने में बिलकुल पाकस्थलो-जैसा होगा। इससे स्पष्ट हो समझा जा सकता, कि अन्धान्त्र परिपाकका कोई प्रधान सहाय है। अन्धान्त्रसे बृहदन्त्र निकल प्रथम ऊर्ध्वमुख यवत्को दिक्को उभरेगा। इसका नाम अर्ध्वगामी अङ्गान्त्र (ascending colon) है। पौछे यह दक्षिण दिक्से पेटको ऊपरी ओर घूम वामपार्खको चला जायेगा। इसे आणुप्रस्थ अङ्गान्त ( transverse colon) कहते हैं। अवशेषमें, यह वाम कक्षसे निम् दिक्को झुक मलद्वार में परिणत पड़ेगा। इस अंशको अधोमुख अङ्गाल (descending colon) नामसे पुकारते हैं। समस्त बहदन्त प्रायः पांच फीट लम्बा होता है। नीचे से ऊपरतक समस्त अन्तको भिक झिल्लीमें छोटी छोटी ग्रन्थि पड़ती हैं, क्षुद्रान्तको अनेक ग्रन्थि अलग-अलग रहती, इसीसे उनका नाम असमवेत 140 मनुष्यकै अन्त । इस जगह मनुष्य के मुख से मलबार पर्यन्त स्पष्ट रूपमें देखानको यह चित्र उतारा गया है। बा-चन्त्रनाली। -अन्वनालीसे पाकस्थलीके भौतर भुक्त द्रव्य पहुचानका हृदृहार । -पाकस्थली। न-पाक- स्थलौस भुक्त द्रव्य अन्वमें पहुचानका निम्रहार। म-हादशाङ्ग ल्यन्त्र । गि-पित्तकोष ; इसी कोषसे हादशाङ्ग ल्यन्त्रमें पित्त पहुंचता है। - इस राहस प्याक्रियेटिक रस अन्त्र में जा गिरता है। क-क्षुद्रान्त्र । वर्ष- अन्धान्त। -कमिवत् उपमांस। -ऊहंगामी अङ्गान्त्र । बाय- भानुप्रस्थ अङ्गान्त्र । नि-अधोमुख अङ्गान्त्र । -मलबार । अन्वके भीतर जा पहुंचेगा। किन्तु आजतक निश्चित नहीं हुवा, उस रससे परिपाकक्रिया किसतरह होती है। फिर भी किसी-किसी जन्तुका शरौर जांचनेसे समझ सकते, कि उस रसके साथ खेतसार मिलनेसे शर्करा बनती और वह मांस किंवा डिम्ब अथवा उन-जैसे किसी अन्य प्रोटिड द्रव्यको (protieds ) ata #Tear (peptone ) द्वादशाङ्गल्यन्त को जड़में कई ग्रन्यि पड़ेगी। यह बात कोई नहीं कह सकता, उनसे शरीरको क्या