पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५६५

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अन्त्र ५५८ चारो दिक् पेशौसूत्रसे वेष्ठित हैं। पेशीसूत्नके सिकुड़नेसे छिद्रके मध्य भुक्त द्रव्य घुस न सकेगा। केवल परिपाकके समय उनसे अल्प-अल्प जल निकलता है। इसीसे उष्ट्र अधिक विलम्ब बाद जल पीता, उसे शीघ्र पिपासा नहीं सताती। गो मेषादिका अन्त बृहदाकार,-शरीरको अपेक्षा प्रायः तीस गुण बड़ा होता है। इनका अन्धान्त भो अतिशय बहत्-देखनेसे बिलकुल पाकस्थलीका धोखा होगा। किन्तु उसमें कमि-जैसा उपमांस जुगाली करनेका जो छिद्र जन्तुको अन्त नालीके नीचे होता, उसका गठन अति विचित्र है। गठनके गुणसे ही गो-मेषादि पशु कोई द्रव्य निगलते समय पाकस्थलोके जिस प्रकोष्ठ में चाहते, उसी में उसे उतार सकते हैं। अन्त नालोके निम्न मुखमें प्रोष्ठ. जैसा दो खण्ड मांस मिलेगा। इन दोनो ओष्ठके एकत्र मिलनेपर अन्ननालौसे तृतीय प्रकोष्ठके भीतर भुक्त द्रव्य जानेको राह साफ होती है। फिर यह दोनो ओष्ठ खुले रहनेपर प्रथम किंवा द्वितीय प्रकोष्ठ- के भीतर भुक्त द्रव्य पहुंचेगा। भूसा, धान, चावल प्रभृति शुष्क द्रव्य निगलनेसे इन दोनो ओष्ठका मुख खुलता, इसौसे यह सकल ट्रव्य सर्वाग्रपर प्रथम प्रकोष्ठमें जा पड़ता है। किन्तु जुगाली करने बाद भुक्त द्रव्य मांड-जैसा कोमल और सरस बन जाता, जिससे निगलने पर सीधे पाकस्थलीके तृतीय प्रकोष्ठ- में पहुंचता; एवं उस समय अोष्ठका मुख नहीं खुलता। हतीय प्रकोष्ठ में भुक्त द्रव्य किञ्चित् पकने- यर अन्तको चतुर्थ प्रकोष्ठ में पहुंचेगा। नहीं उठता। अन्न- पक्षी, भेक एवं अन्यान्य प्राणी जैसा द्रव्य खाता, उसका अन्तादि भी तदुपयोगी होता है। नौचे एक मुरगेके पाकयन्त का चित्र उतारेंगे। नालौके नोचे तीन गड्डे रहते हैं। यही तीन गड्डे पक्षिजातिको पाकस्थलौ होंगे। मुरगके कुछ खाने- पर प्रथम भुक्त द्रव्य ऊपरी गड्ढे में जा गिरता है। उसके बाद दूसरे गड्ढे में गिर भुक्त द्रव्य आमरससे मिल जायेगा। तृतीय गड्डा विलक्षण दृढ़ होता है। उसमें अतिशय कठिन सामग्री भी पहुंचनेसे चूर-चूर शा CT शशकको पाकस्थली और अन्व क-वक्षःस्थलका गहर । -डायफ्राय, इसी स्थानको सिकोड़नेके "लिये हमें हिचकी आती है। य- यवत् । -पाकस्थलो। ब-तुद्रान्त्र । -अन्धान्त, उद्भिदजीवीका अन्धान्त्र बहुत बड़ा होता है। प्र-निरगामी अन्धान्त । म-मलबार । ऊंटको पाकस्थलोके द्वितीय प्रकोष्ठ में छोटे-छोटे छिद्र वर्तमान हैं। उनमें जल भरा रहेगा। छिद्रको -बषको पाकस्थली और हादशाङ्ग ल्यन्त्र । -भन्ननाली। पाकस्थलीका प्रथम प्रकोष्ठ, वृणादि कठिन द्रव्य खानेसे पहले इसौ स्थानम सचित होता है। -पाकस्थलौका दितीय प्रकोष्ठ । ना-पाकस्थलीका तृतीय प्रकोष्ठ । 8-पाकस्थलौका चतुर्थ प्रकोष्ठ । -चादशाङ्ग ल्यन्न । मा-मुरगको पाकस्थली और अन्च । -अन्ननाली । क-प्रथम गड्ढा । -दितीय गड्ढा । -तृतीय गड्ढा । ए-अन्त्र । -वमिवत् उपास । हो जायगी। विशेषतः उसके मध्य छोटे-छोटे पत्थर