पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अन्व-अन्वज्वर पड़नेसे खाद्य द्रवा पिस जानेको और भी सुविधा लपेट देंगे। उसोसे शिकारका निचोड़ उनको देहमें पड़ती है। इसौसे विधाताने चिड़ियोंको कैसी पहुंच जाता है। अन्यान्य विवरण परिपाक शब्दमें देखो। स्वाभाविक बुद्धि दी है कि, वह आहार खुटककर सींगवाले पशुके पेट फाड़ डालने किंवा अन्य किसी खाते समय छोटे छोटे कसड़ भी हड़प जायेंगी। कारण पेटका चमै छूट अन्त निकल पड़नेसे तत्क्षणात् चिड़ियोंवाले क्षुद्रान्त और बृहदन्तके आकारमें कोई विज्ञ चिकित्सकको बुलाये। चिकित्सकके आनेसे प्रभेद नहीं। किन्तु क्षुद्रान्त और बृहदन्तका प्रभेद पहले रोगीको अच्छीतरह सुस्थिर बनाना चाहिये। यही देख समझ लेते, किसी चिड़ियेके अन्त्र समीप वह खांसने या रोने न पाये। पूर्ण-वयस्क व्यक्तिको १४ दो और किसौके एक हो उपमांस उठता है। विन्दु अफीमका अरिष्ट आध छटांक पानी में मिलाकर कौवा, कबूतर, घुग्घू प्रभृति जो सब चिड़ियां भुक्त खिलाये । दुर्बल व्यक्ति और स्त्रीके लिये ७ हौ विन्दुका द्रव्य उगल अपने-अपने शावकको खिलातीं, उनको प्रयोग उचित है। दो-एक वत्सरके शिशुको अफीम पाकस्थलीमें एक अद्भुत गुण पैदा होगा। इस सकल खिलानमें कितनी हो विज्ञता ज़रूरी होगी। किन्तु जातीय पक्षीको निम्नपाकस्थलीसे दोनो ओर दो अई किंवा एक, विन्दु अरिष्ट खानेसे कोई विघ्न नहीं कोष रहते हैं। बच्चा निकलने पर उभय पक्षी और पड़ता। सिवा इस सकल सावधानताके यह भी पक्षिणौके उसौ कोषसे दुग्धवत् कोई रस टपक भुक्त आवश्यक है, कि अन्त में कीचड़ मट्टौ न लगे। ट्रव्य में मिल जाता है। पौछ उसोको उगल कर निकटमें चिकित्सक न मिलनेसे एहस्थ स्वयं थोड़ा खिलानसे शावक शीघ्र हृष्ट-पुष्ट हो जायेगा। बच्चा साहस कर अन्तको भौतर घुसेड़ सकता है। अन्त्रको बढ़ जानेसे फिर यह रस नहीं टपकता। जो दिक् अन्तमें बाहर निकले, वही प्रथम घुसेड़ना छोटा मेंडक, जलको छोटो छोटो णलताका पड़ेगी। इसौसे जो अंश प्रथम बाहर निकल पड़ता, कोमलांश खाकर जीता है। इस अवस्थामें उसको उसोको सर्वशेषमें घुसेड़ना आवश्यक होता है। पाकस्थलीका गठन लम्बा, एवं अन्त्र भी बृहदाकार अन्त्रको घुसेड़ पेटका ऊपरौ चमड़ा सौ देना चाहिये। पाकस्थलौसे ऊपर ही ऊपर मुड़ा हुवा रहेगा। क्रमसे किन्तु उसके अभावमें सूतके धागेसे हो सो डाले। बड़ा भेक बननेपर वह कोटपतङ्गको पकड़ खा जाता चमें जुड़ जानेसे तार या सूतका धागा खोलकर उस समय अन्च भौ छोटा पड़ेगा। रख छोड़ना चाहिये। मछलोके शरीरका अन्त बहुत छोटा होता है। क्षतस्थान सौ जानसे ऊपर कोई पतला वस्त्र किसी मत्स्यका अन्त सौधा और किसीका चक्करदार लपेट दे। एवं पूर्वको तरह रोगीको अल्प-अल्प होगा। केंचुवा प्रभृति सामान्य प्राणौके मुखसे अफीम खिलाते रहे तीन-चार दिन सिवा दुग्ध, मलद्दार पर्यन्त एक सीधा छेद रहता है। किन्तु मांसका शोरबा प्रभृति तरल द्रव्यके कठिन पथ्य को यह छिद्र ऐसे कौशलसे बना, कि इसमें भुक्त द्रव्यका व्यवस्था करना उचित नहीं। कभी-कभी अन्तपर रस सहज ही शोषित हो जायेगा। अनेक प्रकारके आघात बैठनेसे अन्त प्रदाह एवं पेरिटोनाइटिस् हो छोटे-छोटे जलकौट रहते, जिनके मलबार नहीं सकता है। उसके लिये तुरन्त विज्ञ चिकित्सकका होता। सूक्ष्म सूक्ष्म कीटाणु पकड़ कर खानेपर परामर्श ले लेना चाहिये। उनका सत्व देहमें शोषित हो, पौछ असार अंश अन्वकूज (सं० पु.) १ वायुरोगविशेष। २ नाड़ी- उगल दिया जायेगा। फिर ऐसे भी अनेक जलकोट शब्द, आंतको आवाज़, पेटका बालना। होते, जिनके मुख, मलबार कुछ भी नहीं रहता, अन्नकूजन, अन्त्रविकूजन (सं० लो०) अन्नकूज देखी। शरीरके मध्य किसी प्रकार छिट् होना असम्भव है। अन्नज्वर, आन्तिकज्वर (Enteric or Typhoid fever) वह शिकार पानसे उसकी चारो ओर अपना शरीर -एक प्रकारका कठिन ज्वर, कोई सखूत बुखार ।