पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अन्लज्वर प्राण प्रखर ज्वरके समय, या कहीं ज्वरकी शेषावस्था- में एकदिक् या किसी स्थल में दोनों दिक्का कर्णमूल फूल जायेगा। दुर्बल रागीको कर्णमूल ग्रन्थिको सूजकर पकनेपर कठिन कुलक्षणके मध्य गिनेंगे। क्योंकि उससे अधिक पोप निकलने और क्षतस्थान सड़नेपर रोगी क्रमशः दुर्बल बन छोड़ता है। उदरामय अन्त्रज्वरका प्रधान लक्षण है। प्रथम दिनके मध्य दो-तीन बार तरल मल निकले और उसका वर्ण हरिद्रा-जैसा रहेगा। किन्तु हरिद्रावण होते भी उसमें प्रायः पित्त नहीं पड़ता। किसी आधारमें मल रख छोड़नेसे अजीर्ण द्रव्य, इपिथि- लियम् कोष एवं अन्त्रके क्षतस्थानका गलित पदार्थ आधारके नीचे देखाई देगा। अनेक स्थलमें मल निकलते समय रोगो कुछ भी समझ नहीं सकता। अचैतन्यावस्था में शय्यापर हो पुनः पुनः मलत्याग करता है। इस सकल उपसर्गके साथ उदर फूल उठेगा। दक्षिण दिकका श्रोणिप्रदेश दबानेसे गड़- गड़ शब्द निकलता है। अन्नसे रक्तस्राव भी इस ज्वरका उत्कट लक्षण होगा। किन्तु यह सकल स्थलमें नहीं झलकता। कोई-कोई चिकित्सक कहता, कि अल्प परिमाणमें रक्त गिरनेपर ज्वरका विष शरीरसे निकले। अतएव इसे सुलक्षण मानना पड़ेगा। किन्तु इस बातको सकल युक्तिसङ्गत नहीं बताते। न बतानेका कारण यह है, कि यत्सामान्य रक्त स्रावके बाद भी अनेक व्यक्तियोंने दुर्बल और हिमाङ्ग बन प्राण छोड़ दिये हैं। हिचकी महा दुःखदायी है। टाइफयेड ज्वरमें यह बहुतसे रोगियोंको आने लगती है। विशेषतः अन्त्रमें छिद्र हो जानेसे पहले सकलको ही हिचकी दिन पर्यन्त कठिन द्रव्य खिलाना न चाहिये। कठिन द्रव्य खानेपर उसको उत्तेजनासे अन्तमें अकस्मात् छिद्र पड़ सकता है। छिद्र होनेपर उसके भौतरसे विष्ठादि पेरिटोनियम गह्वरमें घुसेगा। उस समय और भो अतिरिक्त आध्मान, उदरवेदना, उदरको दृढ़ता बढ़ जाती है। नाड़ी क्षोण और अतिशय चञ्चल हो जायगी। कहीं कपालपर विन्दु-विन्दु पसीना निकलता, किसी स्थलमें सर्वाङ्गसे धर-धर बहता है। रोगी बार-बार वमन करे और शौघ्र हो अवसन्न पड़ जायेगा। सचराचर अन्धान्त्र-कपाटके दो इञ्च मध्य हौ अन्तमें छिद्र होते देखते हैं। रोगीके अनेक दिन शय्यागत रहनेपर खासयन्तुमें भो प्रदाहादि पैदा होगा। कभी-कभो १३।१४ दिन बाद फेफड़े या वासनालोमें प्रदाह होता है। घर्घर खास प्रश्वासका चलना, खांसी, श्लेष्मेका निःसरण, वक्षःस्थलको वेदना और आकर्षण-बोध प्रभृति इसके वाह्य लक्षण मिलेंगे। ऐसे समय छातीपर कान लगानेसे कुक्-कुक् शब्द सुन पड़ता है। यह शब्द वासनालोके प्रदाहका लक्षण है। फिर कानके पास अपने थोड़ेसे बाल घिसनेपर जैसे चुड़-चुड़ शब्द निकले, वैसे ही फेफड़े में प्रदाह होनेसे वक्षःस्थलके भीतर भी शब्द उठेगा। कभी कभी प्रदाहसे फेफड़ा कलेज-जैसा कड़ा पड़ जाता है। उस अवस्थामें पौड़ित स्थानमें वक्षःस्थल अङ्गुलिसे ठोकनेपर दूसरा खालौ शब्द नहीं निकलता। सख्त चौजपर आघात करनेसे जैसे टप-टप होता, बिलकुल वैसे ही फेफड़ेसे भी शब्द उठा करता है। वक्षःस्थलमें किसी प्रकारका प्रदाह न होते भी रोगी यदि हांफते हांफते निश्वास छोड़े, तो वह भी अतिशय कुलक्षण समझा जायेगा। ऐसे सशब्द और उद्देगयुक्त खास-प्रश्वासके बाद अधिकांश स्थलमें रोगो हतज्ञान हो जाता है। सकल प्रकारके ही जरमें यह कठिन उपसर्ग निकलेगा। मृत्रावरोध सकल प्रकारके जुरका दूसरा कठिन उपद्रव है। किसी-किसी स्थल मूत्राशयमें पेशाब सञ्चित होता, किन्तु रोगी उसे निकाल नहीं सकता।

लगेगी। इस पोड़ासे कभी-कभी क्षुद्रान्त्रमें छिद्र पड़ेगा। जुरको शेष अवस्थामें ही इस कठिन उपसर्गके उठनेकी अधिक सम्भावना होती है। किन्तु पारोग्यके समय भी क्वचित् अन्त्र में छिद्र हो जायेगा। इसलिये अन्वजरसे नौरोग होनेपर भी रोगीको अनेक