पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५७१

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अन्नज्वर ५६५ टाइफस ज्वरका दाग कुछ काला पड़ेगा। टाइफयेड ज्वरका ७ से १४ दिनके और टाइफस ज्वरका चित्र ४से ७ दिनके भीतर निकलता है। टाइफस ज्वरमें उदरामय किंवा अन्वसे रक्तस्राव प्रायः न हो; किन्तु अन्तज्वरमें सर्वत्र ही उदरामय उठेगा, तद्भिन्न दक्षिण श्रोणिप्रदेश दबानसे वेदना बढ़े और बज बज जैसा शब्द निकलेगा। यही टाइफयेड ज्वरका प्रधान लक्षण समझिये। ऐसा लक्षण किसी दूसरी पौड़ामें नहीं देखते। इस ज्वरमें अनेक रोगोके अन्त्रसे रक्तस्राव भी होने लगेगा। अन्त्रज्वर बालक और युवा व्यक्तिको ही अधिक आता है। चालीस वर्षको आयुके बाद यह पौड़ा प्रायः देख न पड़ेगी। किन्तु मोहक ज्वर कभी आ सकता है। टाइफयैड ज्वर प्रायः २१ दिनसे ३०१४० दिन पर्यन्त रहेगा टाइफस ज्वर २१ दिनसे अधिक नहीं ठहरता। इसके बीच रोगी नीरोग होता किंवा प्राण ही छोड़ देता है। इसकी सच्ची जांच करना कठिन है, अन्व- ज्वरमें सैकड़े पीछे कितने मनुष्य मरते हैं। भिन्न भिन्न देशमें विज्ञ चिकित्सकोंने जो सारा हिसाब उतारा, उसका फल सर्वत्र समान न हुआ। समान न होनेका कारण यह है,-किसी वत्सर पौड़ाका प्रकोप अति दुरूह होता, फिर किसी वत्सर उतना कठिन नहीं मालूम देता। दूसरे किसी किसी रोगी पर नाना प्रकार उत्कट उपसर्ग पड़ सकता, किसी स्थल में अति सामान्य और सहज ही उपसर्ग उठता है। तद्भिन्न चिकित्साके प्रणाली-भेदसे भो मृत्यु संख्या घट-बढ़ जायेगी। कहीं ऐसा भी होता, कि रोगोको नितान्त मृतप्राय दशामें देख चिकित्सालय भेज देते हैं। इससे जो, चिकित्सा कराने नहीं, मरने पहुंचे, वह मृत्यु भिन्न और क्या लाभ उठाये- गा? इस सकल कारणसे टाइफयेड ज्वरका शुभाशुभ फल ठीक-ठीक मालूम नहीं पड़ता। डाकर मशिनने. चौदह वत्सरको जांच में १८५८२. रोगीका हिसाब लगा रखा है। उसमें सैकड़े पोछ १८७८ आदमो मरे अर्थात् ५.२० 142 रोगीके मध्य एक आदमोने प्राण छोड़े। इस रोगमें पुरुषको अपेक्षा स्त्रीको मृत्यु संख्या बहुत कम पड़ेगी। बालकके पक्षमें भी यह उतना घातक नहीं होता। सचराचर सबलकाय युवाव्यक्तिको हो मृत्यु अधिक होती है। हमारी साम्रान्नी क्वीन विकोरियाके खामी प्रिन्स अलबर्टने इस ज्वरमें बराबर इक्कीस दिन तकलीफ उठायौ थी। वह अतुल ऐश्वर्यके पति थे ; कितनी चिकित्सा, कितना यत्न किया गया ! किन्तु किसीसे फल न निकला अन्तमें सन् १८६१ ई.को १४ वीं दिसम्बरको वह पुण्यधामको चलते बने। भाविफल-यद्यपि शुभलक्षणके मध्य ज्वरको प्रखरता और उपसर्गको अल्पता गिनी जाती, तथापि नाडीका स्पन्दन प्रति मिनट १२० बार और देहका सन्ताप १०३° या उससे कम होना चाहिये ; उदरामय सामान्य उठे; एवं अन्त्र में यदि छिद्र न पड़े, प्रलाप न बढ़े, तो निश्चित आरोग्यलाभको सम्भावना होती है। अशुभ लक्षणमें यह बात होगी,-१०५. से अधिक देहका सन्ताप, पहले ही प्रति मिनट १२० बारसे अधिक नाडीका स्पन्दन, अत्यन्त क्षीण नाड़ी, उसका वक्र और दबानेसे मालूम न पड़ना, क्षण क्षण उसके स्पन्दनका लोप, किवा केचुये-जैसी मोटी पड़ उसका पीछे हट-हटकर चलना। यदि नाड़ी- मानयन्त्रमें जांचनेसे ऊर्ध्व रेखा तिरछी पड़ छोटी और निम्नरेखा बड़ी हों; आधारपर दो किवा तीन कुञ्चित रेखा खिचें, तो इसे अत्यन्त कुलक्षण कहना चाहिये। हृदयका स्पन्दन भी यदि बहुत ज़ोर पकड़े और उसी समय नाड़ी क्षीण, क्षुद्र एव द्रुतगामी बने, तो रोगी निश्चित रूपसे मर जायेगा। हृदयका प्रतिघात न लगने एवं उसी समय हृपिण्डका द्वितीय शब्द सुन न पड़नेसे रोगीको. प्राणरक्षा दुर्घट हो जाती है। सकल हो ज्वर रोगके अतिशय कुलक्षण यह होंगे-मूत्रावरोध, अत्यन्त प्रलाप, श्वासयन्त्रका प्रदाह, उसके साथ निद्राभाव, प्रलाप ; कठिन, शुष्क एवं पाण्डुवर्ण किंवा कृष्णवर्ण जिता,