पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५७२

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५६६ अन्वज्वर ... अतिशय हिक्का, अत्यन्त अवसन्त्रता, हस्तपदको पेशीका आक्षेप, श्वेतनेत्र, पौड़ाको चरमावस्था में कटिदेश या मुखका क्षत और कर्णमूल प्रदाह । रोगका प्रतिकार न होनेसे प्रायः १२ दिनसे २० दिनके मध्य मृत्यु आ पहुंचती है। मृत्युसे पूर्व कोई- कोई रोगी तकियेसे सरक सरक जायेगा। कोई करवट ही बदला करता है। सशब्द घर्घर खास-प्रश्वास चलेगा। आन्तरिक कष्टके कारण कोई-कोई रोगी कांखता है। किसीका मलहार खुले और रोगी अचैतन्यावस्थामें मल छोड़ेगा। हस्तपदादिका अग्र भाग शीतल पड़ता, नाड़ी क्षीण और अत्यन्त द्रुत- गामी होती किसी किसी स्थलमें तो मृत्यु से ७८ घण्टे पहले नाड़ी स्थल हो धक-धक चलती, अवशेषमें विलुप्त हो जाती है। कपालसे विन्दु-विन्दु धर्म निकले, उसके बाद प्राणप्रदीप बुझ जायगा। नहीं कह सकते, इस ज्वरका सच्चा कारण क्या है। किन्तु विज्ञ चिकित्सकोंमें नाना जन नाना बातें बतायेंगे। कोई-कोई कहते, कि इसका विष मलेरिये-जैसा होता है। जन्तुका शरीर और उद्भिद् सड़नेपर उसी गलित पदार्थसे कोई बाष्य निकलेगा। वहौ मनुष्य के शरीरमें पैठनेसे टाइफयेड ज्वर चढ़ता है। डाकर बड् बताते, कि टाईफयेड ज्वराक्रान्त रोगीक विष्ठासे विष फैल दूसरेके शरीरमें पहुंच सकेगा। किन्तु डाकर मशिनने इस मतको काट दिया है। टाइफयेड ज्वरको उपयुक्त चिकित्सा कुछ नहीं वरं नाना प्रकार कठिन औषध देनेसे रोगीको अवस्था और भी बिगड़ जाती है। अनेक विज्ञ चिकित्सक प्रथम वमन करनेका परामर्श देंगे ! पाकस्थलीमें भुक्त द्रव्य सञ्चित रहनेसे वमन करा सकते हैं। १०।१५ ग्रेन इपिक्याक चूर्ण उष्ण जलके साथ खिलाना चाहिये। डाकर टेनर आध छटांक भाइनम् इपिक्याक खिलानेका परामर्श देते हैं। हमारे वैद्य कहेंगे, कि रोगीका समस्त गात्र चालित कर, किन्तु मलभाण्ड कदापि न हिलाये, अर्थात् रोगीको विरेचक औषध न दे। वह व्यवस्था बिलकल इसी रोगके लिये होगी। टाइफयेड ज्वरमें विरेचक औषध अत्यन्त अनिष्टकर होती है। किन्तु दो-तीन दिनके जरमें उदरामय उभरनेसे पहले निम्नलिखित औषध दिया जा सकेगा,- हाइडा कमक्रिटा ३ ग्रेन मुलतानी मट्टीका चर्ण सोडा बाइकार्ब चीनी एकत्र मिला एक पुड़िया बांध लीजिये। यह औषध चार घण्टे अन्तरसे खिलानेपर पेटको अधिक उत्तेजना नहीं घटती। डाकर हाली मुलतानो मट्टोका चूर्णं न डाल अफोम पड़ौ खड़ियामट्टोका चूर्ण हो मिलाते हैं। जो हो, यह पारदधटित मृदु विरेचक औषध एक दिनसे अधिक खिलाना न चाहिये। उसके बाद हस, चेम्बर्स रिचार्डसन, मर्चिशन, टेनर, फिलण्ट प्रभृति चिकित्सक पार्थिवाम्लको विशेष प्रशंसा सुनाते हैं। नाइट्रो-मिउरिएटि एसिड ( Nitro-muriatic acid ) शुण्ठीके पाकमें मिला प्रत्यह ३।४ बार १५२२० विन्दुको मात्रामें खिलाया जा सकेगा। अन्त्रज्वरसे रक्त में अतिशय क्षार उपजता है। उपरोक्त द्रावक देनेसे यह क्षारदोष मिट जायेगा। जर्मनीमें जलसेक चिकित्साका बड़ा आदर है। डाकर फिलण्टने भी अमेरिकामें इसे आज़माया था। आज़माकर उन्होंने इसकी प्रशंसा की।रोगीके गात्रका ताप अत्यन्त बढ़ जानेसे जलसेक करना आवश्यक होगा। प्रथम घरके समस्त हार बन्द कीजिये। उसके बाद दो कम्बल शीतल जलमें भिजी दो शय्या बिछाना चाहिये। पहले एक तर कम्बलमें रोगोको लपेट पीछे दूसरा सूखा कम्बल उसे अोढाइये । १०।१५ मिनट बाद इस शय्यासे उठा रोगीको अन्य शय्यापर कम्बलमें इसीतरह ओढ़ाकर सुलाना होगा। शरीरका बल और देहका सन्ताप देख यह प्रक्रिया ३०१४० मिनट पर्यन्त की जा सकती है। अन्तमें रोगीका सर्वाङ्ग पोंछ शुष्क शय्यापर सुलाये और गात्रको सूखे कपड़ेसे ढांक दे। जलसेकके बाद शीघ्र घरका हार न खोलना चाहिये। जिस घरका होती।