पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५७५

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अन्वज्वर-अन्नप्रदाह ५६६ यन्त्रणा क्योंकि वैसा होनेपर जीवनी शक्ति बिलकुल निस्तेज समस्त विष्ठा ग्रामके बाहर गाड़ देना उचित है। पड़ती, और रोगी संज्ञाहीन हो प्राण छोड़ देता है। परिधानका वस्त्र और शयया जला सकनेसे ख ब मद्यके साथ मांसका शोरबा हो उपयुक्त पथ्य सफाई हो जाती है। होगा। जितना शोरबा खानेसे रोगी अनायास पचा अन्तुन्धमि (सं० स्त्री० ) अजीर्ण, आंतकी सूजन । सके, १ घण्टे अथवा आध घण्टे अन्तरपर उतना ही अन्तपाच (स. क्लो०) स्थावर विषके अन्तर्गत शोरबा उसे पिलाना चाहिये। दुग्ध एवं पतले त्वक्सारनिर्यासविष। यवका दलिया भी सुपथ्य होगा। किन्तु उदरामान | अन्तपाचक ( स० पु०) वृक्षविशेष । (Eschynomene उठनेसे यह सकल पथ्य देना उचित नहीं। फिर भी, grandiflora) सामान्य रूपसे पेट फूलनेपर प्रथम सप्ताह बाद अन्त्रप्रदाह ( Enteritis) अन्तड़ियोंको जलन, सोज़िश चूनेवाले पानीके साथ गधेका दुग्ध अल्प-अल्प अमा। क्षुद्रान्त्रका प्रदाह दो प्रकार उठेगा। पिलाया जा सकता है। एक अति सहज है; उसमें विशेष इस ज्वरके चले जानेपर भी अनेक दिन पर्यन्त नहीं झेलना पड़ती, किसी विपदकी भी आशङ्का रोगीको अति सावधानतासे रखना चाहिये। नहीं होती। अनेक बार विना चिकित्सा उसका सावधानतासे न रहनेपर इस कठिन पौड़ाके पुनर्वार उपशम हो सकेगा। फिर एक जातीय अन्त्रप्रदाह आक्रमणको सम्भावना रहती है। दुर्बल रोगीको अतिशय उत्कट होता है। उसमें उदरको वेदनासे शय्यासे उठने या अधिक बैठा रहने न दे। ज्वर प्राण ओष्ठपर्यन्त पहुंचे, एवं रोगीका जीवन बचना भी छुट जानेपर भी कई दिन केवल दल और लघु दुर्घट हो जायगा। अन्त्रप्रदाह सकल वयसमें हो पथ्य खिलाना उचित है। क्यों कि पहले ही कह उठ सकता, किन्तु दुग्धपोष्थ शिशुके दांत निकलते चुके हैं, कि इस ज्वरमें अन्त्रके मध्य क्षत पड़ेगा। इस समय अधिक देख पड़ता है। लिये कठिन द्रव्य खानेपर अन्तके भीतर उत्तेजना पूर्णवयस्क व्यक्तिको अन्तप्रदाह उठनेसे पहले अतएव जिस क्षतस्थानमें नयी खाल कम्प लगाता है। उसके बाद-ज्वर, पिपासा, नाभि- जमती, उसौ सकल स्थानमें पुनर्बार क्षत पड़नेको मण्डलको चारो ओर अत्यन्त वेदनाबोध प्रभृति लक्षण सम्भावना होगी। झलकेगा। बहुतोंने देखा होगा, कि शूलवेदना इस रोगमें होमियोपथी औषध भी विशेष उठनेसे रोगी अपने पेटको अपने हाथ ही मरोरकर उपकार पहुंचाता है। पौड़ाको प्रथमावस्थापर पकड़ता, जिससे कुछ कालके लिये आराम मिलता बैपटिशिया ( Baptisia ix. dil.) दो-एक विन्दु है। किन्तु अन्तप्रदाह दौड़नेसे रोगी उदर छूने नहीं मात्रामें ३२४ घण्टे अन्तरसे देना चाहिये। विज्ञ देता। हाथसे स्वल्प दबाने पर अत्यन्त कष्ट होता चिकित्सक, बताते, कि इससे ज्वरका विष मर है। पैर फैलाकर सोनेसे पेट नुचे, इसौसे रोगी पैर सिकोड़ छातीमें लगा लेगा। जोरसे निखास छोड़ने क्षीण और द्रुत नाड़ी, उदरामान, उदरामय, अव पर भी पेटको यन्त्रणा बड़ जाती है। सन्नता, तृष्णा प्रभृति उपसर्ग,उठनेपर आसैनिक औषध टाइफयेड ज्वरको तरह अन्तप्रदाहमें भी उदरामय अच्छा, समझा जाता है। इस औषधको २४ घण्टे सर्वत्र उठेगा। रोगी बारम्बार पतला मल परित्याग अन्तरसे देना और मध्य-मध्य कार्बो भेजिटेबलिस करता है। मलका वर्ण कभी हलदी और कभौ खिलाना चाहिये । : प्रलापादि. , वर्तमान रहते मट्टो जैसा होगा। अन्तको उत्तेजनाके निमित्त मध्य वेतोडोना देनेसे उपकार पहुंच सकता है। मख्य अतिशय वमन होता है। रोगीको पथ्य टाइफ़येड़ ज्वर मंक्रामक होगा। अतएव रोगीको खिलानेसे पेटमें कुछ नहीं रुकता। दूध, मांसका 143 बढ़ सकती है। जायगा।