पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

3B रक्तवर्ण ५७० अन्त्रप्रदाह शोरबा प्रभृति तरल द्रव्य पेटमें पहुंचनेसे निकल कारण-बहुत गर्म होने पर शरीर शीतल करने पड़ेगा। उद्गीर्ण पदार्थके साथ कभी-कभी विष्ठा भौ किंवा हिम लगनेसे अन्तप्रदाह हो सकेगा। देखी गयी है। किन्तु विष्ठा न रहते भी सहज उष्ण दुग्धादि पीकर उसपर शीतल ट्रव्य खानेसे वमनमें इतना दुर्गन्ध आये, कि रोगौके पास कोई अन्त प्रदाह उठता है। फल, मूल एवं उद्भिज्जा- बैठ न सकेगा। दिका वीज किंवा त्वक् खानेसे अन्तमें उत्तेजना अन्त्रप्रदाहमें प्रलाप अतिशय कुलक्षण है। अधिक उठे, जिससे प्रदाह दौड़ सकेगा। उग्र सुराका प्रलापसे रोगीका जीवन बचना एक प्रकार असाध्य सेवन भी इस रोगका कारण ठहरता है। कृमि हो जायगा। पौड़ाको प्रथमावस्थामें नाड़ी कठिन एवं इसका दूसरा कारण होगा। द्रावक किंवा सूखा स्थल पड़ती ; क्रमसे अत्यन्त क्षीण और द्रुतगामी विष खानेसे भी अन्तप्रदाह उठ खड़ा होता है। होती ; अन्तमें अङ्गलिसे दबानेपर फिर कुछ भी शिशुके दांत निकलते समय सचराचर यह पीड़ा मालम नहीं पड़ती। दौड़ते देख पड़ेगी। शैशवावस्थामें अन्त्रकी श्लैष्मिक झिल्लीका प्रदाह निदान-प्रदाह पड़नेसे अन्त पड़ता; उसो ( Muco enteritis) भी दिखाई देगा। दांत रक्तवर्णमें कुछ काला रङ्ग मिला रहता ; जिसपर निकलते समय पहले शिशुको उदरामय दबाता है। अधिक श्लेष्मा लग जाता है। पहले उदरामय उसके बाद क्रमसे आध्मान, ज्वर प्रभृति टाइफयेड उठनेसे अन्त के स्थान स्थानमें विस्तर क्षत देख पड़ेंगे। लक्षण झलकेगा। रोगौ सर्वदा हो अस्थिर रहता; टाइफयेड ज्वरको तरह अन्तप्रदाहके भी क्षतस्थानमें यन्त्रणासे चिल्लाता; अवशेषमें नाड़ी क्षीण और कभी कभी छिद्र होगा। अधिककाल उदरामय द्रुतगामी हो जाती है। अन्त्रप्रदाहमें रातभर झेलनेसे अन्त का परदा चौड़ा पड़ जाता है। ज्वरका अल्प विश्राम होगा। किन्तु टाइफयेड अन्त प्रदाह उठनेसे इसका कृमिवत् आकुञ्चन ज्वरमें प्रातःकाल अल्प विश्राम मिलता है। रुकेगा। अन्त्र शब्दमें इस पाकुञ्चनका विवरण देखो। अन्त का रोगनिर्णय-टाइफयेड ज्वर, स्वल्पविरामज्वर, अन्व आकुञ्चन रुकनेसे ही उदरामय उठता है। वृद्धि, अन्चावरोध, शूलवेदना प्रभृति पौड़ाके साथ एलोपेथीको अपेक्षा इस रोगमें होमियोपैथी अन्तप्रदाह रोगका धोका हो सकता है। दक्षिण औषध अधिक प्रशस्त पड़ेगा। रोगी दुबैल होने श्रोणिदेशका गुड़गुड़ शब्द, रातको ज्वरको वृद्धि, एवं अत्यन्त वमन और नाभिको चारो ओर वेदना शरीरमें गुलाबी चिह्न प्रभृति लक्षण न झलकनेसे उठनेपर आर्सेनिक १२ ड्राम एक विन्दु के हिसाबसे अन्तप्रदाह सरलतापूर्वक पहचानेंगे। खल्पविराम ३६४ घण्टे अन्तरमें खिलाये। उदराध्मान, कड़ा पेट, ज्वरमें उदरामय होना कुछ आवश्यक नहीं। दुर्गन्ध तरल मल, मलमें रक्त और श्लेमा रहनेस सिवा उसके पेटको वेदना और आध्मान रहते भी वह मार्किउरियास देनेपर उपकार पहुंचता है। ऐट अन्तप्रदाह जैसा कैसे होगा! इस पौड़ा और अन्त्र अत्यन्त फल जाने एवं अतिशय उदरवेदना उठनेसे वृद्धिका प्रभेद हाथसे देखते हो मालूम पड़ता, किसी कलसिन्थका व्यवहार ठोक रहेगा। विशेष स्थानमें अन्त उभर कर पहुंचा है या नहीं। एलोपेथी-इस मतसे चिकित्सा करने पर कभी अन्तावरोध पड़नेसे कोष्ठ बंधे, किन्तु अन्तप्रदाहका विरेचक औषध न खिलाये। किन्तु अमेरिकाके उदरामय प्रबल लक्षण होगा। शूलवेदनामें भौ डाकर फिलण्ट प्रथमावस्थामें विरेचक औषध कोष्ठबद्ध पड़ता एवं रोगीका पेट दबानेसे खस्ति खिलानेका परामर्श देते हैं। अनुमान है, कि यह आती; किन्तु अन्तप्रदाहमें पेट दबानेसे अत्यन्त कष्ट व्यवस्था हमारे देशकै पक्षमें हितकर नहीं ठहरती। मिलता है। डाकर टेनरने भी जुलाब देनेको रोका है। अत्यन्त