पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५८५

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अन्दामान-अन्ध ५७६ है। बोस या उससे अधिक कालके बाद सुचरित्र विशेष। इस नदौके बायें किनारे रक्तगिरि गांवमें होनेसे वह सदाके लिये छुट्टी पायेगा। कैदियों के विक्रमादित्यने पहले कुछ भूमिको उत्सर्ग किया। लड़कोंको प्रारम्भिक शिक्षा ज़बरदस्ती दी जाती है। ताम्रफलक देखनेसे मालूम होता, कि यह उत्सर्ग सन् १७८८-८८ ई० में बंगाल सरकारने अन्दामानमें कोई सन् ६६४ ई० में हुवा था । कैदियोंका उपनिवेश बनाना निश्चित किया था और अन्दीपट्टी-मन्द्राज-प्रान्तके मदुरा जिलेको पर्वतश्रेणी। वहां रक्षाके हेतु एक बन्दर भी बनानेको इच्छा यह कोई साढ़े सत्ताईस कोस लम्बी है और ३००० को थौ। बंगालसे कोलबुक और बे यर नामक दो फोटसे ऊंचे कहीं नहीं उठती। कंटीली झाड़ी या चतुर अफसर यहां देख भाल करनेको भेजे गये। सन् खाली चटानकी भरमारसे लोग यहां कम ठहरते १७८८ई के सितंबरमासमें कप्तान बेयरने अन्दामानके हैं। इसमें जङ्गली भैंसे, अनेक प्रकारके हिरण, सूअर, दक्षिण-पूर्व यह निवासस्थान तयार कराया था। यहां चौते और किसी फसल पर हाथो शिकार खेलनेको बीमारी होनेके कारण उपनिवेश अन्दामानके उत्तर- खब मिलेंगे 1 पूर्व बदल दिया गया। पोर्ट-बेयरका पहला नाम अन्दु, अन्दू (स• स्त्री० ) अद्यतेऽनेन, अदि बन्धने क । पोर्ट-कार्नवालिस था । सन् १८२४ई में ब्रह्मदेशको जो अन्दु-दृम्भ -जम्बू-कफेल -कर्कन्ध-दिधिष:। उण, १९२ १ बन्धन, लड़ाई हुई, उसपर यह बंदर फौजका अड्डा बनाया लपेट। २ निगड़, लोहेको जञ्जौर, जिससे हाथीका गया था। सन् १८५५ में इन द्वीपों पर अधिकार पैर बांधते हैं। ३ भूषण-विशेष, बाजबन्द । जमानेका नियम बनाया गया, जहां कैदियोंका 'अन्दूः स्त्रियां स्यान्निगुड़े प्रभेद भूषणस्य च ।' (मंदिनी) निवासस्थान था। सन् १८५७ ई०के गदर कारण अन्दुक, अन्दूक (सं० पु०) अन्दु देखो । नियम काममें न लाया जा सका। गदर समाप्त | अन्दोलन (स. क्लो०) लटक, डुलाव, लहरका होने पर लार्ड केनिंगने अन्दामानको एक कमीशन उतार-चढ़ाव । भेजा, जो डाकर मुअटकी अध्यक्षतामें था। बेयरका अन्दौ-ब्रह्मदेशके सण्डवे ज़िलेका बौद्ध देवालय । यह बताया हुआ पहला पोर्ट कार्नवालिस ही कैदियोंके सण्डोवे नदके दक्षिण तट पर अक्षा १८° १७ १५ निवासके लिये ठीक समझा और उसका नाम उत्तर और ट्राधि ८४° २८ पूर्व खड़ा है। कहते हैं, पोर्ट-वेयर रखा गया। सन् १८५८ ई०के आदिमें कि यह देवालय गौतम बुद्ध के दांत गाड़नेको सन् इस तरह पोर्ट-बेयरको चिरस्थायौ नींव पड़ी। ७६१ ई० में बनवाया गया था। सन् १८७२ ई०के फरवरी में जब एक मुसलमान कैदीने अन्ध (सं० त्रि०) अन्ध अच्, अथवा अविद्यमानं ध्यानं लार्ड म्योका यहां मार डाला था, तबसे अन्दामानका दर्शनमस्मिन् आलोकाभावात् इति ध्यायतेनपूर्वः । नाम और भो प्रसिद्ध हो गया। उसी वर्ष अन्दामान १ चक्षुईयहोन, अन्धा, जिसे आंखोंसे देख न पड़े। और निकोबार, जो सन् १८६८ में अंगरेजोंके हाथ एक चक्षुसे देख न सकनेवाले की काणा कहते लग चुका था, दोनो मिलाकर चौफ-कमिशनरके हैं। चलती बोलीमें हम उसीको काना कहते अधीन कर दिये गये, जो पोर्ट ब्लेयरमें रहते हैं। हैं। जिसे दोनो चक्षुसे नहीं सूझता, वह अन्ध अन्दिपूर-मन्द्राज-प्रान्तके कोयम्बतूर जिलेका नगर कहाता है। विशेष। पहले यह इस ताल्लुकका प्रधान नगर अन्ध दो प्रकारका होता है। कोई-कोई लोग रहा। अब भी यहां कारबार खूब धूमधामसे जन्मान्ध होते, माढगर्भसे भूमिष्ठ होने तक वह दोनो चलता और प्रति-सप्ताह बाजार लगता है। नगरके चक्षुसे देख नहीं सकते। वैद्य बताते, कि ऋतुसे तीन • मध्य किसी प्राचीन दुर्गका भग्नावशेष देख पड़ेगा। दिनके मध्य गर्भसञ्चार होने किंवा गर्भिणीको साध अन्दिरिका-बम्बई प्रान्तके कनाड़ी ज़िलेको नदी पूरौ न पड़नेसे अन्ध सन्तान निकलेगा। युरोपीय