पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२ द्यूत- क्रीड़ा। ६ कैतव, बीमारी। अन्धु अन्धमूषा-अन्धराजवंश ५८३ अन्धमूषा (सं० स्त्री०) वज्रमूषापर नामक औषधके खुल-टाप् इत्वम् । १ रात्रि, शब, रात। पाकाथै यन्त्र विशेष इसका लक्षण यह है,- ३ आंखमिचोली। ४ सषेपो, खञ्जनिका, "अन्धमूषा तु कर्तव्या गोस्तनाकारसन्निभा। एक छोटी चिड़िया। ५ छल, चालाकी। सेवाच्छिद्रान्विता मध्ये गम्भीरा सारणोचिता ॥ धोकेबाजी। ७ सिद्ध । ८ मिश्र। ८ स्त्रीविशेष, ख़ास हौ भागौ तुषदग्धस्य एका वलीकमृत्तिका। किस्मको औरत। १० चक्षुरोगविशेष, आंखको एक लौहकिङ्गस्य भाग के तपाषाणभागिकम् ॥ नरकेशसम किञ्चित् छागौचरिण पेषयेत् । यामय' दृढ़' मद्यं तेन मूषां सुसम्प टाम् ॥ 'अन्धिका कैतवेऽपि स्यात् सर्ष पौ सिक्योरपि।' (हेमचन्द्र) शोषयित्वा रस क्षिा तत्कल्क : स निरोधयेत् । अन्धीकृत (सं० त्रि०) अन्धा हुवा या बनाया गया। वञ्चमूषा समाख्याता सम्यकपारदसाधिका ॥” (रसेन्द्रसारसंग्रह) अन्धीकृतात्मन् (स' त्रि०) विचारान्ध । अन्धमूषिका (स० स्त्रो०) अन्धं दृष्टयभावं मुष्णाति, अन्धोभूत ( स० त्रि०) अन्धा बना हुआ, जो अन्धा मुष-खुल् दीर्घः टाप् इत्वम् । १ देवताड़ वृक्ष। २ हो गया हो। तृणविशेष, एक खास किस्मको घास । (सं० पु.) अम्-उण कु धुमागमश्च । १ कूप, अन्धम्भविष्णु (सं० त्रि०) अनन्धाऽन्धा भवति, भू कुवां। २ पुचिह्न, लिङ्ग । च्यर्थे खिष्णुच् । अन्धा बनते हुवा, जा नाबाना हो अन्धुल ( स० पु०) अन्ध-उलच् । शिरीषवृक्ष, सरसोंका रहा हो। फूल। शिरीष फूल देखने में अन्धप्राय हौता, जिससे अन्धम्भावुक (सं० वि०) अनन्धोऽन्धो भवति, यर्थे इसका नाम 'अन्धल' पड़ा है। भू खुकङ। अन्धम्भविष्णु देखो। अन्ध (सं० पु०) अन्ध-रन्। १ वृषलदेश। पहले अन्धरात्रि (सं० त्रि०) अंधरी रात। उड़ीसा, तेलिङ्गन प्रभृति देश अन्ध कहाते थे । अन्धवमन् (सं० पु०) अन्धं अन्धकारमयं वत्मन् २ कारावर स्त्रीके गर्भ एवं वैदेह पुरुषके औरससे पन्था यस्मिन्। १ सूर्य किरण न पहुंचनेका स्थान, उत्पन्न अन्त्यज जाति विशेष, व्याधविशेष । जिस जगह आफ़ताबकी रोशनी न पहुंचे। अन्धराजवंश-दाक्षिणात्यका सुप्रसिद्ध राजवंश। अन्ध, अन्धस् (सं० क्लो०) अद्यते भक्ष्यते, अद-उण्-असुन् आन्ध, शातकर्णि, सातकणि या सातवाहन और शालि- नुम् दस्य धश्च। प्रदेनुम् धौ च। उण ४।२०५। १ अब, वाहन प्रभृति नामसे भी पुकारा जाता है। प्राचीन अोदन, अनाज, दाना। २सोमलता। ३वणा पुराण, संस्कृत और प्राकृत साहित्य, प्राचीन शिलालेख च्छादित भूमि, जिस जमौनमें घास लगी हो। एवं मुद्रालेखमें इस वंशवाले बहुतसे नृपतियोंके नाम ४ अंधेरा, तारोकी। मिले हैं। इस वंशक नृपतियों की शातकर्णि अन्धालजी (सं० स्त्री०) अन्धाफोड़ा, जिस फोड़ेसे उपाधि रहने और पुराणादिमें वंशपरिचयके केवल- पीब न बहे। मात्र शातकणि नामसे पुकारे जानेपर इस वंशका अन्धाहि (सं० पु० स्त्री०) अन्धे जले अन्धस्य धारावाहिक इतिहास उद्धार करना बड़ा ही कठिन जलस्य वा अहिः सर्प इव, ७ वा ६-तत्। कुचिका होगा। विशेषत: प्राचीन पुराणसमूहमें परवर्ती नामक मीन विशेष, एक किस्मकी मछलौ। यह लेखकके दोष और मुद्राकरके प्रमादसे एक ही सांपकी तरह पानी में पड़ी रहती है। २ अन्धा सांप, राजाका नाम भिन्न रूपसे लिखे जानेपर और भी गड़- जो सांप ज़हरीला नहीं होता। बड़ पड़ गया है। इसलिये एकाधिक हस्तलिखित अन्धाहुली (स स्त्री०) आहुली नामक शिम्बीफल, पुस्तकके साहाय्यपर यथायथ पाठ मिलाकर नौचे वनस्पतिविशेष। ब्रह्माण्ड और मत्स्यपुराणसे अन्धवंशका परिचय अन्धिका (स. स्त्री०) अन्धयति, अन्ध प्रेरण णिच- उद्धृत करते हैं,