पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५९३

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नहीं पड़ता। kottus ) साथ अन्ध राजवंश काल मध्य इन सप्त अन्ध भृत्यका राज्यशासनकाल जैन शब्द देखो। ऐसी अवस्थामें उभय सम्पदायके हो लगाया है, मतसे मोक्षकाल ५२७ ई०का पूर्वाब्द निकलेगा। "समा शतानि चत्वारि पञ्चषट् सप्त चव हि।" सुतरां सन् ५२७ ई०से १५५ वर्ष बाद ही अर्थात् ब्रह्माण्ड, मत्स्य और विष्णु इस पुराणत्रयके ३७२ ई०के पूर्वाब्दमें चन्द्रगुप्तका अभिषेक और मतसे शुङ्ग और काण इन उभय वंशका प्रभाव मौर्याब्दका प्रारम्भ हुवा था। पाश्चात्य पुराविदोंने मिटता एवं अन्ध्रवंशका अभ्युदय निकलता है, जिस कारण देशीय प्राचीन प्रमाण न मान चन्द्रगुप्तको "काण्वायनमथोद्ध त्य मुशर्माण' प्रसह्य तम् । ५० वर्ष परवर्ती बताया, वह समीचीन मालूम शुङ्गानां चैव यच्छेष क्षपयित्वा बली तथा ॥" वह मकदूनियाके वोर सिकन्दरके इस पुराणवचनसे ही आभास होता है, कि शुङ्ग सामयिक प्राच्य भारताधिप सण्ड्रोकोट्टसको (Sandro- और काणवंशके अधिकारकालमें ही अन्धवंशने प्रथम मौर्यराज चन्द्रगुप्तके स्वाधौनता का डङ्का बजाया था। अभिन्न रूप माननेको भी झमेलमें आ गये हैं। कटक ज़िलेके खण्डगिरिको हाथा-गुम्फासे निकले पाश्चात्य ऐतिहासिक जष्टिनने लिखा है, कि सण्डो- हुवे कलिङ्गाधिपति भौखूराज खारबेलके त्रयोदश कोटसने ( राजा बननेसे पहले) सिकन्दरका खौमा राज्यात या १६५ मौर्याब्दमें उत्कीर्ण शिलालेखसे जाकर देखा था। उनकी बातसे महावीर सिकन्दर- मालूम पड़ता कि उनके अभिषेकके द्वितीय वर्ष ही ने रुष्ट हो उनके प्राणदण्डका आदेश किया। अर्थात् १५४ मौर्याब्दमें पश्चिम दिशाके अधिपति अन्तमें उन्होंने कैदसे ही भाग अपने प्राण बचा लिये। अन्ध राज शातकर्णि उनके सहायक बने थे। इस (Justinus xv. 4. ) प्लुटर्कने बताया, कि उस समय शिलालेखसे ही हमें सर्वप्रथम अन्ध राजका निर्दिष्ट सेण्ड्रोकोटस्का अधिक वयस न हुआ था। ३२७ काल मिलता है। प्रथम यही देखना आवश्यक ई०के पूर्वाब्दमें सिकन्दरने पञ्जाबमें पैर रखा। जैन, होगा, मौर्याब्द किस समय लगा था। बूल्हर प्रभृति बौद्ध और पौराणिक कालके निर्णयानुसार उस समय पुराविद्गणक मतसे मौर्यराज चन्द्रगुप्त के अभिषेकसे प्रथम चन्द्रगुप्तके पुत्र विन्दुसार या नन्दसार मगधर्म मौर्याब्द आरम्भ हुवा। बूलहरके मतसे सन् ई०से आधिपत्य करते और अशोक उस समय पञ्जाबमें पहले ३२२ से ३१२ अब्दके मध्य चन्द्रगुप्तका अभिषेक निर्वासित अवस्थामें दिन गुजारते थे। अशोक शब्दमें आता है। सुतरां उसी समय मौर्याब्द लगा था। विस्तारित विवरण देखो। इस हिसाबसे १६८ से १५८ खुष्ट पूर्वाब्द मध्य भारतीय विभिन्न प्राचीन वंशलता विचारनेसे कलिङ्गाधिपति खारवेल और अन्ध राज शातकर्णि मालम होता, कि पितामह और पौत्रका एक हो ऊँचे उठे। * किन्तु हेमाचार्यरचित त्रिषष्टिशलाका नाम अनेक स्थलमें लिखा गया है। अन्ध, या शात- पुरुषचरितके परिशिष्टपर्वमें लिखा है,- वाहन वंश, गुप्तवंश, वनभोवंश, चालुक्यवंश प्रभृति "एवं च योमहावीरमुक्त वर्षशत गते। हिन्दू राजाओंको नामावली विचारनेसे सहज हो पञ्चपञ्चाशदधिके चन्द्रगुप्तोऽभवन्नृपः ॥" (८३३१) इसका समर्थक प्रमाण मिलेगा। आज भी यह प्रथा अर्थात् महावीरके मोक्षलाभ बाद १५५ वर्ष पश्चिम भारतसे नहीं उठी। ऐसी अवस्थामें यूनानी वीतनेपर चन्द्रगुप्त राजा बने थे। खेताम्बर जैनियों के ऐतिहासिकोंने जिसे सेण्डोकोटस् बताया, उसे हम मतसे विक्रमसे. ४७० वर्ष पहले एवं दिगम्बर प्रथम मौर्यसम्राट चन्द्रगुप्तका पौत्र अशोक-प्रियदर्शी सम्प्रदायके मतसे शकराजसे ६०५ वर्ष पहले तीर्थङ्कर समझते हैं। जैसे- भारतके नानास्थानसे निकले महावीर स्वामीको मोक्ष मिला। महावीरस्वामी पौर Vincent Smith's Early History of India, 2nd Ede Epigraphia Indica, Vol. II. p. 88. + p. 157.