पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५९६

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अन्धराजवंश मौर्याब्दमें गङ्गातौर पर्यन्त दौड़ लगा मगधपर आक्रमण किया। सारांश यह है, कि ऐसे समय मगध शुङ्गवशके अधिकारमें था। सेनापति पुष्यमित्र उस समय पाटलिपुत्रके सिंहासन पर अधिष्ठित थे। कलिङ्गाधिप और अन्धराज शातकणि के साथ उन्हें घोरतर युद्ध करना पड़ा। अल्प दिन बाद ही शुङ्ग- वंशने प्राधान्य जमा लिया। पुष्पमित्रका अखमेध यज्ञ उसोका फल था। नासिक और नानाघाटसे आविष्कृत शातवाहन- वंशीय नृपतिगणका शिलालेख देखनेसे मालूम होता है, कि सिमुक, कृष्णराज और प्रथम शातकर्णिके बाद यह अञ्चल अर्थात् उत्तरांश कुछ दिन अन्धराज- गणके अधिकारसे निकल गया था। क्योंकि, उसके बाद इस अञ्चलसे दीर्घकाल उनके वंशधरगणका दूसरा कोई बोधक शिलालेख नहीं मिलता। इधर अधिकारच्युत होते भी पूर्वीशमें कलिङ्गपतिगणके सहयोगसे वह शुङ्गों और काण्खोंके साथ चिरकालतक युद्धमें लिप्त रहे। ऐसे समय उनके दक्षिणा- पथके अधिकारमें कभी शुङ्ग, कभी काख, या कभी अन्धवंश हो आधिपत्य करता था। सकल महा- पुराणके मतसे शुङ्गवंशने ११२ और काणवंशने ४५ अर्थात् उभयवंशने कुल १५७ वर्ष राज किया। पहले ही लिखा जा चुका है, कि १५३ मौर्याब्द या २१८ ई०के पूर्वाब्दमें शुङ्गवंशीय पुष्पमित्र या पुष्य- मित्रका अभ्युदय हुवा था। शुङ्गवंशीय शेष नृपति अति व्यसनासक्त रहे। उसौ सुयोगमें उनके कर्मचारी वसुदेवने उन्हें मार (प्रायः १०७ ई०का पूर्वाब्दमें ) पाटलिपुत्रका सिंहासन छौना। ऐसे ही समय निःसन्देह शुङ्ग और काणों में दारुण विद्देष- वह्नि जल उठा था। जिस समय शुङ्ग और काण- वंशने अपना-अपना प्राधान्य रखनेके लिये समरानल ज्वलित किया उसो अवसरपर अन्ध या शातवाहन ख व प्रनष्ट गौरव उद्दार करनेके लिये धीरे-धीरे शुङ्गों और काणों के विषय अधिकार करते थे। गृहविवादमें लिप्त रहते शुङ्ग और काण हिज शातवाहनगणके साथ युद्दमें कभी हारे और कभी जीते।. अवशेषमें काणोंके शेष नृपति सुधर्मा या सुशर्मा राज्यपट छोड़ गये। उसौके साथ मगधसिंहासनपर ( प्रायः ६२ ई०के पूर्वाब्दमें ) अन्धवंशको नींव पड़ी। पुराणकारने प्रथम अन्ध-न्टपति सिमुकको वह यशोमाल्य पहनाया है। वास्तविक सिमुक या सिन्धुक कभी पाटलिपुत्रके सिंहासनपर नहीं बैठे। वह कर्णाटक और महाराष्ट्राञ्चलपर आधिपत्य करते थे। नानाघाटके शिलालेखसे यह प्रमाणित हुवा है। पुराणसमूहको वंशतालिका और अन्धवंशके राज्य- कालको आलोचना करनेसे मालूम होता है, कि काणपति सुशर्माके समय अन्धराज कुन्तल शातकर्णिका अभ्युदय हुआ था। सम्भवतः यही प्रथम मगधराज्य- पर अधिकार करनेसे द्वितीय सिमुक या सिन्धुक नामसे भी पुकारे गये। इसी सिमुक नामके सादृश्य- से कदाचित् पुराणमें भूल पड़ी है। कोई-कोई पुराविद् कहते है कि मगधके थोड़े दिन अन्ध- वंशके अधिकारमुक्त होते भी वहां पहुंच उनके कुछ दिन राजत्व रखनेको बात किसी प्राचीन मुद्रा या पुराकोर्तिसे आजतक नहीं निकली। * उत्तरा- जलसे एकमात्र 'सात' नामयुक्त अन्ध मुद्रा मिली है। यह शेष काणराज्यके पराभवकारी हो सकेंगे। वात्सायनने+मगधर्म रह वहांके अधिवासियोंका आचार-व्यवहार देख कर कामसूत्र बनाया था। इसी कामसूत्र में कहा है, “कर्तर्या कुन्तल: शातकणि: शातवाहनो महादेवी मलयवती (जघान)।" अर्थात् शातवाहनराज कुन्तल शातकर्णिने (कामकेलिये प्रसङ्गमें) कटारसे राजमहिषौ मलय- वतीको मार डाला था। पहले 'सात' नामक उत्तर- भा जिस अन्ध मुद्राका उल्लेख है, वही शात- वाहन कुन्तल शातकर्णिको मुद्रा समझ पड़ती है। इन्हीं कुन्तलके समय अन्ध वंशका प्रभाव और V. A. Smith's Early History of India, 2nd Ed. p. 193. + कामसूत्रकार वात्स्यायन प्राच्य या मंगधवासी थे, उन्होंने जो निज देशाचारविरुद्ध कोई बात लिखी, उसे 'पाश्चात्य षु प्रसिद्ध' बताने- में न सके।