पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५९९

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१८० नाम राज्यकाल २। कृष्णराज शातवाहन २३७। १८ 99 9 १८ २०१ ५८ १८३ १८ 99 १२७ १२ १०१ १८ १७ ८। सौदास . 91 अन्धराजवंश ५६३ साथ अन्ध वंशका पूर्व प्रभाव और प्रतिपत्ति कितनी ३० । चन्द्रवी शातकगि ही विलुप्त हो गयी। उसके बाद इस वंशके छ: नृपति ३१ । पुलुमाथि (श्य) शातकर्णि १८३ धनकटकके सिंहासनपर बैठे थे सही, किन्तु कोई भी अन्धभत्यवंश। दीर्घकाल निरापदमें राज्यसुख पा न सका। ३१वें पहले ही कह चुके हैं, कि अन्धराजवंश नृपति ३य पुलुमायौके साथ अन्ध राजवंशका अवसान और अन्ध भृत्यवंश स्वतन्त्र हैं। उभयवंशको एक होता है। समझ पुरावित् बड़े हो गड़बड़में पड़ गये हैं। शिलालेख, मुद्रालेख और पुराणोक्त नामका ब्रह्माण्ड, मत्स्य प्रभृति पुराणोंने प्रमाण लिखकर सामञ्जस्यकरके नौचे अन्धराजगणको तालिका और बताया है, कि अन्धराजोंके समकालमें हो उनके राज्यकाल दिया जाता है:- भृत्यों या कर्मचारियों में सात लोगोंको राज्य मिला आनुमानिक राज्यारम्भ था। इन अन्धभृत्योंके अन्ध सम्राटोंको अधौनता १। सिमुक (शिशुक) शातवाहन २३ वर्ष मानते भी उनका पराक्रम और शक्ति बहुत कम २४६ ई० पूर्वान्द न थी। सम्भवतः कोल्हापुर, नानाघाट प्रभृति ३। बीमल्ल शातकर्णि अञ्चलोंमें उन्होंने अन्धसम्राट्गणके राजप्रतिनिधि ४। पूर्णोत्सङ्ग रूपसे अधिकार फैलाया था। पुराणमें इन सात पोशातकर्थि अन्धभृत्यवंशीय नृपतियोंका नामोल्लेख नहीं मिलता। है। लम्बोदर किन्तु हम मुद्रा और शिलालेखके साहाय्यसे सात ७॥ पापौलक लोगों में पांचका नाम निकाल सके हैं। यथा,- अन्धभृत्यवंशीय राजा उनके समसामयिक अन्ध-सबाट । १०। स्कन्द शातकर्णि १ बिलिबायकुर १म वासिष्ठीपुत्र चकोर शातकर्णि। ११ । मृगेन्द्र वा महेन्द्र शातकर्णि २ मढरीपुत्र शकसेन शिवश्री शातकर्णि। १२ । कुन्तल शातकर्णि ३ माढरीपुत्र सेवलकुर शिवश्री शातकर्णि। १३ । औषण शातकर्णि ४ बिलिबायकूर श्य १४ । पुलुमाथि (१म) शातकर्णि गोतमीपुत्र श्रीशातकर्णि। १५ । मेघ शातकर्णि ५ चतुर्पण यजश्री शातकर्णि। १६ । परिष्टनेमि शातकणि ८ इखौ . अन्ध भृत्यवंशीय नृपतिगणको मुद्रामें उनके अन्ध १७॥ हाल अधीश्वरगणका नाम एकत्र पड़नेसे कोई-कोई .१०। मण्डल शातकणि पुरावित् समस्त अंशको एक व्यक्तिका नाम ठहरा १८ । पुरीन्द्रसेन भ्रममें पड़ गया है। * किन्तु उससे पहले डाकर २० । सौम्य शातकणि भण्डारकरने अन्ध भृत्यगणके अन्तिम चतुर्पणको २१। सुन्दर शातकणि मुद्रामें "गोतमीपूतस कुमारू जस सातकनी चतु- २२ । चकोर शातकणि पनस”-पाठ देख लिखा है, कि कोल्हापुरके अन्ध- २३। शिवस्वामी शातकर्णि भृत्य राजप्रतिनिधिगणकौ तरह यह ( सुपारा ) दो २४ । गोतमी पुब शातकर्षि २५ । वासिष्ठीपुत्र पुलुमायि (श्य) नामसे फैली है। उसमें कुमार यज्ञश्री शातकर्णि २६ । शिवश्री शातकर्णि १४३, अधीश्वर और उनके प्रतिनिधि चतुर्पण निकलते हैं। २७1 शिवस्कन्द शातकर्षि Vincent A. Smith's Early History of India, २८। यज्ञश्री शातकर्णि + R, G. Bhandarkar's Early History of Dekkan, 2nd. . २९ विजयश्री शातकर्थि Ed. p. 22. 149 ve 21 भास्कर ५ " . ३ 2 ... " ६४ १ 31 ५६ . ... ४8 " ५५ . २ २१ . २५ 11 ५ . ३३ 2 ५ 99 ३८ . २१ ४३ 8 3 97 २ २८ 20 २१ १८ 1 २४ 79 ११९ ४ 99 ८ 17 १४८, 7 १९ १५५ " १७४