पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६

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४- अउघड़- -अकरोरी में विभूति लगादी जाती है फिर वस्त्र पहिना कर करते परन्तु गले में नाद और शेली पहनते हैं। उसे समाधि देदी जाती है। इसके बाद वेही तीनों गोरखपुर इनका प्रधान स्थान है। दशनामी संन्यासियों दलके मनुष्य उसके पास जो कुछ रहता है ले लेते हैं। की तरह इनके मतमें भी ज्योतिमाग में प्रवेश करके यह शिवके उपासक हैं। कनफट योगियों की तरह मद्य मांस खाने की प्रथा प्रचलित है। शिव की उपासना यह भी किया करते हैं गले में तार अंक-(सं० अङ्ग) अङ्क देखो। और शैली सदा पहिने रहते हैं। दो तीन विलस्त अंकक-(सं० अङ्गक ) अद्धक देखो। लम्बा एक काला पदार्थ डोरी में बांध कर गले अंककार-(सं० अङ्गकार) श्रद्धकार देखी। में मालाके समान पहिर लेते हैं; इसोको नाद अंकगणित-(सं० अङ्कगणित ) अङगणित देखी। कहते हैं और जिस सूत को माला में वह गुंथा जाता अंकटा-(हिं० पु०) कङ्गड़का छोटा टुकड़ा। अनाजमें है उसको शैली कहते हैं। किसी संन्यासी के गलेमें मिला हुआ ककड़का छोटा टुकड़ा जो उसमेंसे नाद और शैली देखनेसे ही समझना चाहिये कि यह चुनकर निकाल दिया जाता है। औघड़ सम्प्रदाय का मनुष्य है । यह संन्यासी शैवों को अँकटो-(हिं० स्त्री.) बहुतही छोटी कंकड़ो। तरह गेरुआ वस्त्र पहिनते हैं,माथे पर जटा रखते हैं, अँकड़ो-(हिं० स्त्री०) काटी। हुक। तौरका मुड़ा हुआ समस्त शरीर में भस्म लेपन करते हैं और ललाट में फल। बेल। लता। लग्गी। फल तोड़नका बासका विभूति लगा कर त्रिशूल का चिन्ह बनाते हैं। इस डण्डा जिसके सिर पर फंसानेके लिये एक छोटौ मत वालों में से कितने ही शिवमन्दिर में पूजन करते लकड़ो बंधी रहती है। है, कितने एक स्थान में बैठ कर शिव का ध्यान करते, अंकधारण-(सं० अङ्गधारण) अङधारण देखो। और कितने ही सदा तीर्थाटन किया करते है। अंकधारिणो-(सं० अङ्गधारिणिन् ) अधारिणी देखो। अउघड़ योगी गोरखनाथ को शिव का अवतार अंकधारी-(सं० अङ्कधारिन्) अधारी देखी । समझते हैं। गोरखनाथ हठयोगी थे अतएव इन्हें अकन-(सं० अङ्कन) अद्धन देखो। भी हठयोग के नियमानुसारही चलना पड़ता है। अँकना-(क्रि०) ऑकना अतः इन्हें भी एक प्रकारके हठयोगी कह सकते अंकनीय-(सं० अङ्कनीय) अङ्कनीय देवी हैं। हठप्रदीपिका प्रभृति ग्रन्थों में हठयोगका अंकपरिवर्तन-(सं० अङ्कपरिवर्तन ) अपरिवर्तन देखी। विषय बहुत कुछ लिखा है। इन उदासीन योगियों में अंकपलई-(हिं० स्त्री० ) [सं० अङ्कपल्लव] अङ्गपल्लव देखो ! कोई विवाह करके संसारी नहीं होता है। परन्तु अकपालिका-(सं० अङ्कपालिका) अदपाली देखो। विवाह न करने पर भी विषयवासना में बहुतेर व्याप्त अंकमाल-(सं० अङ्कमाल) अङ्कमाल देखो। हो गये हैं। इन्हें कई गुरुओंसे शिक्षा ग्रहण करनौ अंकमालिका-(सं० अङ्कमालिका) अङ्गमालिका देखो। पड़ती है। वे गुरु एक एक क्रिया करा देते हैं। कोई अँकरा-(हिं० पु०) एक प्रकारका खर जो गेहके माथा मुड़ा देता है, कोई नाद या शेली पहना देता पौधों के बीचमें उत्पन्न होता है। इसका माग बनता है। दशनामी संन्यासियोंमें जिसी तरह गिरी, पुरी, है और यह बैलोंके खिलानेके काममें आता है। आदि उपाधियां रहती हैं; उसी तरह इन योगियों इसका दाना या बीज काला, चिपटा, छोटी मूंगके को उपाधि नाथ रहती है क्योंकि वहलोग अपने को बराबरका होता है, और प्रायः गेहके साथ मिल बाबा गोरखनाथ के शिष्य समझते हैं और इसीलिये जाता है। इसे गरीब लोग खाते भी हैं। नाथ उपाधि द्वारा अपनी परिचय देते हैं। ये औघड़ अँकरी-(हिं॰ स्त्री०) अकरा कल्पार्थक प्रयोग। योगी कनफट् योगियों के समान एक मत होने पर भी अंकरोरी, अकरौरी-(हि. स्त्री०) ककड़ी। खपड़ेका उनकी तरह दोनों कान छेदवा कर मुद्रा धारण नहीं बहुत छोटा टुकड़ा।